पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता
1. [QS]मात्र परमेश्वर में मेरे प्राणों की विश्रान्ति है; [QE][QS2]वही मेरे उद्धार के कारण हैं. [QE]
2. [QS]वही मेरे लिए एक स्थिर चट्टान और मेरा उद्धार हैं; [QE][QS2]वह मेरे सुरक्षा-दुर्ग हैं, अब मेरा विचलित होना संभव नहीं. [QE][PBR]
3. [QS]तुम कब तक उस पुरुष पर प्रहार करते रहोगे, [QE][QS2]मैं जो झुकी हुई दीवार अथवा गिरते बाड़े समान हूं? [QE][QS2]क्या तुम मेरी हत्या करोगे? [QE]
4. [QS]उन्होंने मुझे मेरी उन्‍नत जगह से [QE][QS2]उखाड़ डालने का निश्चय कर लिया है. [QE][QS2]झूठाचार में ही उनका संतोष मगन होता है. [QE][QS]अपने मुख से वे आशीर्वचन उच्चारते तो हैं, [QE][QS2]किंतु मन ही मन वे उसे शाप देते रहते हैं. [QE][PBR]
5. [QS]मेरे प्राण, शांत होकर परमेश्वर के उठने की प्रतीक्षा कर; [QE][QS2]उन्हीं में तुम्हारी एकमात्र आशा मगन है. [QE]
6. [QS]वही मेरे लिए एक स्थिर चट्टान और मेरा उद्धार हैं; [QE][QS2]वह मेरे सुरक्षा-रच हैं, अब मेरा विचलित होना संभव नहीं. [QE]
7. [QS]मेरा उद्धार और मेरा सम्मान परमेश्वर पर अवलंबित हैं; [QE][QS2]मेरे लिए वह सुदृढ़ चट्टान तथा आश्रय-स्थल है. [QE]
8. [QS]मेरे लोगो, हर एक परिस्थिति में उन्हीं पर भरोसा रखो; [QE][QS2]उन्हीं के सम्मुख अपना हृदय उंडेल दो, [QE][QS2]क्योंकि परमेश्वर ही हमारा आश्रय-स्थल हैं. [QE][PBR]
9. [QS]साधारण पुरुष श्वास मात्र हैं, [QE][QS2]विशिष्ट पुरुष मात्र भ्रान्ति. [QE][QS]इन्हें तुला पर रखकर तौला जाए तो वे नगण्य उतरेंगे; [QE][QS2]एक श्वास मात्र. [QE]
10. [QS]न तो हिंसा-अत्याचार से कुछ उपलब्ध होगा, [QE][QS2]न लूटमार से प्राप्‍त संपत्ति कोई गर्व का विषय है; [QE][QS]जब तुम्हारी समृद्धि में बढ़ती होने लगे, [QE][QS2]तो संपत्ति से मन न जोड़ लेना. [QE][PBR]
11. [QS]परमेश्वर ने एक बात प्रकाशित की, [QE][QS2]मैंने दो बातें ग्रहण की: [QE][QS]“परमेश्वर, आप सर्वसामर्थ्यी हैं. [QE]
2. [QS2]तथा प्रभु, आपका प्रेम अमोघ”; [QE][QS]इसमें संदेह नहीं, “आप हर एक पुरुष को [QE][QS2]उसके कर्मों के अनुरूप प्रतिफल प्रदान करेंगे.” [QE]
Total 150 अध्याय, Selected अध्याय 62 / 150
1 मात्र परमेश्वर में मेरे प्राणों की विश्रान्ति है; वही मेरे उद्धार के कारण हैं. 2 वही मेरे लिए एक स्थिर चट्टान और मेरा उद्धार हैं; वह मेरे सुरक्षा-दुर्ग हैं, अब मेरा विचलित होना संभव नहीं. 3 तुम कब तक उस पुरुष पर प्रहार करते रहोगे, मैं जो झुकी हुई दीवार अथवा गिरते बाड़े समान हूं? क्या तुम मेरी हत्या करोगे? 4 उन्होंने मुझे मेरी उन्‍नत जगह से उखाड़ डालने का निश्चय कर लिया है. झूठाचार में ही उनका संतोष मगन होता है. अपने मुख से वे आशीर्वचन उच्चारते तो हैं, किंतु मन ही मन वे उसे शाप देते रहते हैं. 5 मेरे प्राण, शांत होकर परमेश्वर के उठने की प्रतीक्षा कर; उन्हीं में तुम्हारी एकमात्र आशा मगन है. 6 वही मेरे लिए एक स्थिर चट्टान और मेरा उद्धार हैं; वह मेरे सुरक्षा-रच हैं, अब मेरा विचलित होना संभव नहीं. 7 मेरा उद्धार और मेरा सम्मान परमेश्वर पर अवलंबित हैं; मेरे लिए वह सुदृढ़ चट्टान तथा आश्रय-स्थल है. 8 मेरे लोगो, हर एक परिस्थिति में उन्हीं पर भरोसा रखो; उन्हीं के सम्मुख अपना हृदय उंडेल दो, क्योंकि परमेश्वर ही हमारा आश्रय-स्थल हैं. 9 साधारण पुरुष श्वास मात्र हैं, विशिष्ट पुरुष मात्र भ्रान्ति. इन्हें तुला पर रखकर तौला जाए तो वे नगण्य उतरेंगे; एक श्वास मात्र. 10 न तो हिंसा-अत्याचार से कुछ उपलब्ध होगा, न लूटमार से प्राप्‍त संपत्ति कोई गर्व का विषय है; जब तुम्हारी समृद्धि में बढ़ती होने लगे, तो संपत्ति से मन न जोड़ लेना. 11 परमेश्वर ने एक बात प्रकाशित की, मैंने दो बातें ग्रहण की: “परमेश्वर, आप सर्वसामर्थ्यी हैं. 2 तथा प्रभु, आपका प्रेम अमोघ”; इसमें संदेह नहीं, “आप हर एक पुरुष को उसके कर्मों के अनुरूप प्रतिफल प्रदान करेंगे.”
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