1. [QS]परमेश्वर! आपने क्यों हमें सदा के लिए शोकित छोड़ दिया है? [QE][QS2]आपकी चराई की भेड़ों के प्रति आपके क्रोध की अग्नि का धुआं क्यों उठ रहा है? [QE]
2. [QS]स्मरण कीजिए उन लोगों को, जिन्हें आपने मोल लिया था, [QE][QS2]उस कुल को, आपने अपना भागी बनाने के लिए जिसका उद्धार किया था; [QE][QS2]स्मरण कीजिए ज़ियोन पर्वत को, जो आपका आवास है. [QE]
3. [QS]इन चिरस्थाई विध्वंस अवशेषों के मध्य चलते फिरते रहिए, [QE][QS2]पवित्र स्थान में शत्रु ने सभी कुछ नष्ट कर दिया है. [QE][PBR]
4. [QS]एक समय जहां आप हमसे भेंटकरते थे, वहां शत्रु के जयघोष के नारे गूंज रहे हैं; [QE][QS2]उन्होंने वहां प्रमाण स्वरूप अपने ध्वज गाड़ दिए हैं. [QE]
5. [QS]उनका व्यवहार वृक्षों और झाड़ियों पर [QE][QS2]कुल्हाड़ी चलाते हुए आगे बढ़ते पुरुषों के समान होता है. [QE]
6. [QS]उन्होंने कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से [QE][QS2]द्वारों के उकेरे गए नक़्कशीदार कामों को चूर-चूर कर डाला है. [QE]
7. [QS]उन्होंने आपके मंदिर को भस्म कर धूल में मिला दिया है; [QE][QS2]उस स्थान को, जहां आपकी महिमा का वास था, उन्होंने भ्रष्ट कर दिया है. [QE]
8. [QS]उन्होंने यह कहते हुए संकल्प किया, “इन्हें हम पूर्णतः कुचल देंगे!” [QE][QS2]संपूर्ण देश में ऐसे स्थान, जहां-जहां परमेश्वर की वंदना की जाती थी, भस्म कर दिए गए. [QE][PBR]
9. [QS]अब कहीं भी आश्चर्य कार्य नहीं देखे जा रहे; [QE][QS2]कहीं भी भविष्यद्वक्ता शेष न रहे, [QE][QS2]हममें से कोई भी यह नहीं बता सकता, कि यह सब कब तक होता रहेगा. [QE]
10. [QS]परमेश्वर, शत्रु कब तक आपका उपहास करता रहेगा? [QE][QS2]क्या शत्रु आपकी महिमा पर सदैव ही कीचड़ उछालता रहेगा? [QE]
11. [QS]आपने क्यों अपना हाथ रोके रखा है, आपका दायां हाथ? [QE][QS2]अपने वस्त्रों में छिपे हाथ को बाहर निकालिए और कर दीजिए अपने शत्रुओं का अंत! [QE][PBR]
12. [QS]परमेश्वर, आप युग-युग से मेरे राजा रहे हैं; [QE][QS2]पृथ्वी पर उद्धार के काम करनेवाले आप ही हैं. [QE][PBR]
13. [QS]आप ही ने अपनी सामर्थ्य से समुद्र को दो भागों में विभक्त किया था; [QE][QS2]आप ही ने विकराल जल जंतु के सिर कुचल डाले. [QE]
14. [QS]लिवयाथान[† बड़ा मगरमच्छ हो सकता है ] के सिर भी आपने ही कुचले थे, [QE][QS2]कि उसका मांस वन के पशुओं को खिला दिया जाए. [QE]
15. [QS]आपने ही झरने और धाराएं प्रवाहित की; [QE][QS2]और आपने ही सदा बहने वाली नदियों को सुखा दिया. [QE]
16. [QS]दिन तो आपका है ही, साथ ही रात्रि भी आपकी ही है; [QE][QS2]सूर्य, चंद्रमा की स्थापना भी आपके द्वारा की गई है. [QE]
17. [QS]पृथ्वी की समस्त सीमाएं आपके द्वारा निर्धारित की गई हैं; [QE][QS2]ग्रीष्मऋतु एवं शरद ऋतु दोनों ही आपकी कृति हैं. [QE][PBR]
18. [QS]याहवेह, स्मरण कीजिए शत्रु ने कैसे आपका उपहास किया था, [QE][QS2]कैसे मूर्खों ने आपकी निंदा की थी. [QE]
19. [QS]अपने कबूतरी का जीवन हिंसक पशुओं के हाथ में न छोड़िए; [QE][QS2]अपनी पीड़ित प्रजा के जीवन को सदा के लिए भूल न जाइए. [QE]
20. [QS]अपनी वाचा की लाज रख लीजिए, [QE][QS2]क्योंकि देश के अंधकारमय स्थान हिंसा के अड्डे बन गए हैं. [QE]
21. [QS]दमित प्रजा को लज्जित होकर लौटना न पड़े; [QE][QS2]कि दरिद्र और दुःखी आपका गुणगान करें. [QE]
22. [QS]परमेश्वर, उठ जाइए और अपने पक्ष की रक्षा कीजिए; [QE][QS2]स्मरण कीजिए कि मूर्ख कैसे निरंतर आपका उपहास करते रहे हैं. [QE]
23. [QS]अपने विरोधियों के आक्रोश की अनदेखी न कीजिए, [QE][QS2]आपके शत्रुओं का वह कोलाहल, जो निरंतर बढ़ता जा रहा है. [QE]