1. [QS]याहवेह, मैं संपूर्ण हृदय से आपका आभार मानूंगा; [QE][QS2]मैं आपके हर एक आश्चर्य कर्मों का वर्णन करूंगा. [QE]
2. [QS]मैं आप में उल्लसित होकर आनंद मनाता हूं; [QE][QS2]सर्वोच्च प्रभु, मैं आपका भजन गाता हूं. [QE][PBR]
3. [QS]जब मेरे शत्रु पीठ दिखाकर भागे; [QE][QS2]वे आपकी उपस्थिति के कारण नाश होकर लड़खड़ा कर गिर पड़े. [QE]
4. [QS]आपने न्याय किया और मेरे पक्ष में निर्णय दिया, [QE][QS2]आपने अपने सिंहासन पर बैठ सच्चाई में न्याय किया. [QE]
5. [QS]आपने जनताओं को डांटा और दुष्टों को नष्ट कर दिया; [QE][QS2]आपने सदा के लिए उनका नाम मिटा दिया. [QE]
6. [QS]कोई भी शत्रु शेष न रहा, [QE][QS2]उनके नगर अब स्थायी विध्वंस मात्र रह गए हैं; [QE][QS2]शत्रु का नाम भी शेष न रहा. [QE][PBR]
7. [QS]परंतु याहवेह सदैव सिंहासन पर विराजमान हैं; [QE][QS2]उन्होंने अपना सिंहासन न्याय के लिए स्थापित किया है. [QE]
8. [QS]वह संसार का न्याय [QE][QS2]तथा राष्ट्रों का निर्णय धार्मिकता से करते हैं. [QE]
9. [QS]याहवेह ही दुःखित को शरण देते हैं, [QE][QS2]संकट के समय वही ऊंचा गढ़ हैं. [QE]
10. [QS]जिन्होंने आपकी महिमा को पहचान लिया है, वे आप पर भरोसा करेंगे, [QE][QS2]याहवेह, जिन्होंने आपसे प्रार्थना की, आपने उन्हें निराश न होने दिया. [QE][PBR]
11. [QS]याहवेह का गुणगान करो, जो ज़ियोन में सिंहासन पर विराजमान हैं; [QE][QS2]राष्ट्रों में उनके आश्चर्य कार्यों की उद्घोषणा करो. [QE]
12. [QS]वह, जो पीड़ितों के बदला लेनेवाले हैं, उन्हें स्मरण रखते हैं; [QE][QS2]दीनों की वाणी को वह अनसुनी नहीं करते. [QE][PBR]
13. [QS]हे याहवेह, मुझ पर कृपादृष्टि कीजिए! मेरी पीड़ा पर दृष्टि कीजिए. [QE][QS2]आप ही हैं, जो मुझे मृत्यु-द्वार के निकट से झपटकर उठा सकते हैं, [QE]
14. [QS]कि मैं ज़ियोन की पुत्री के द्वारों [QE][QS2]के भीतर आपके हर एक गुण का वर्णन करूं, [QE][QS2]कि मैं आपके द्वारा किए उद्धार में उल्लसित होऊं. [QE][PBR]
15. [QS]अन्य जनता उसी गड्ढे में जा गिरे, जिसे स्वयं उन्हीं ने खोदा था; [QE][QS2]उनके पैर उसी जाल में जा फंसे, जिसे उन्होंने बिछाया था. [QE]
16. [QS]याहवेह ने स्वयं को प्रकट किया, उन्होंने न्याय सम्पन्न किया; [QE][QS2]दुष्ट अपने ही फंदे में उलझ कर रह गए. [QE]
17. [QS]दुष्ट अधोलोक में लौट जाएंगे, यही नियति है उन सभी राष्ट्रों की भी, [QE][QS2]जिन्होंने परमेश्वर की उपेक्षा की है. [QE]
18. [QS]दीन दरिद्र सदा भुला नहीं दिए जाएंगे; [QE][QS2]पीड़ितों की आशा सदा के लिए चूर नहीं होगी. [QE][PBR]
19. [QS]याहवेह, आप उठ जाएं, कि कोई मनुष्य प्रबल न हो जाए; [QE][QS2]जनताओं का न्याय आपके सामने हो. [QE]
20. [QS]याहवेह, आप उन्हें भयभीत कर दें; [QE][QS2]जनताओं को यह बोध हो जाए कि वे मात्र मनुष्य हैं. [QE]