पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता
3. {#3चतुर्थ पुस्तक [BR]स्तोत्र 90–106 }[PS]*परमेश्वर के प्रिय पात्र मोशेह की एक प्रार्थना *[PE][QS]प्रभु, समस्त पीढ़ियों में [QE][QS2]आप हमारे आश्रय-स्थल बने रहे हैं. [QE]
2. [QS]इसके पूर्व कि पर्वत अस्तित्व में आते [QE][QS2]अथवा पृथ्वी तथा संसार की रचना की जाती, [QE][QS2]अनादि से अनंत तक परमेश्वर आप ही हैं. [QE][PBR]
3. [QS]आप मनुष्य को यह कहकर पुनः धूल में लौटा देते हैं, [QE][QS2]“मानव-पुत्र, लौट जा.” [QE]
4. [QS]आपके लिए एक हजार वर्ष वैसे ही होते हैं, [QE][QS2]जैसे गत कल का दिन; [QE][QS2]अथवा रात्रि का एक प्रहर. [QE]
5. [QS]आप मनुष्यों को ऐसे समेट ले जाते हैं, जैसे बाढ़; वे स्वप्न मात्र होते हैं— [QE][QS2]प्रातःकाल में बढ़ने वाली कोमल घास के समान: [QE]
6. [QS]जो प्रातःकाल फूलती है, उसमें बढ़ती है, [QE][QS2]किंतु संध्या होते-होते यह मुरझाती और सूख जाती है. [QE][PBR]
7. [QS]आपका कोप हमें मिटा डालता है, [QE][QS2]आपकी अप्रसन्‍नता हमें घबरा देती है. [QE]
8. [QS]हमारे अपराध आपके सामने खुले हैं, [QE][QS2]आपकी उपस्थिति में हमारे गुप्‍त पाप प्रकट हो जाते हैं. [QE]
9. [QS]हमारे जीवन के दिन आपके क्रोध की छाया में ही व्यतीत होते हैं; [QE][QS2]हम कराहते हुए ही अपने वर्ष पूर्ण करते हैं. [QE]
10. [QS]हमारी जीवन अवधि सत्तर वर्ष है—संभवतः [QE][QS2]अस्सी वर्ष, यदि हम बलिष्ठ हैं; [QE][QS]हमारी आयु का अधिकांश हम दुःख और कष्ट में व्यतीत करते हैं, [QE][QS2]हां, ये तीव्र गति से समाप्‍त हो जाते हैं और हम कूच कर जाते हैं. [QE]
11. [QS]आपके कोप की शक्ति की जानकारी कौन ले सका है! [QE][QS2]आपका कोप उतना ही व्यापक है जितना कि लोगों के द्वारा आपका भय मानना. [QE]
12. [QS]हमें जीवन की न्यूनता की धर्ममय विवेचना करने की अंतर्दृष्टि प्रदान कीजिए, [QE][QS2]कि हमारा हृदय बुद्धिमान हो जाए. [QE][PBR]
13. [QS]याहवेह! मृदु हो जाइए, और कितना विलंब? [QE][QS2]कृपा कीजिए-अपने सेवकों पर. [QE]
14. [QS]प्रातःकाल में ही हमें अपने करुणा-प्रेम[* करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द के अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये सब शामिल हैं ] से संतुष्ट कर दीजिए, [QE][QS2]कि हम आजीवन उल्‍लसित एवं हर्षित रहें. [QE]
15. [QS]हमारे उतने ही दिनों को आनंद से तृप्‍त कर दीजिए, जितने दिन आपने हमें ताड़ना दी थी, [QE][QS2]उतने ही दिन, जितने वर्ष हमने दुर्दशा में व्यतीत किए हैं. [QE]
16. [QS]आपके सेवकों के सामने आपके महाकार्य स्पष्ट हो जाएं [QE][QS2]और उनकी संतान पर आपका वैभव. [QE][PBR]
17. [QS]हम पर प्रभु, हमारे परमेश्वर की मनोहरता स्थिर रहे; [QE][QS2]तथा हमारे लिए हमारे हाथों के परिश्रम को स्थायी कीजिए— [QE][QS2]हां, हमारे हाथों का परिश्रम स्थायी रहे. [QE]
Total 150 अध्याय, Selected अध्याय 90 / 150
चतुर्थ पुस्तक
स्तोत्र 90–106

3 परमेश्वर के प्रिय पात्र मोशेह की एक प्रार्थना प्रभु, समस्त पीढ़ियों में आप हमारे आश्रय-स्थल बने रहे हैं. 2 इसके पूर्व कि पर्वत अस्तित्व में आते अथवा पृथ्वी तथा संसार की रचना की जाती, अनादि से अनंत तक परमेश्वर आप ही हैं. 3 आप मनुष्य को यह कहकर पुनः धूल में लौटा देते हैं, “मानव-पुत्र, लौट जा.” 4 आपके लिए एक हजार वर्ष वैसे ही होते हैं, जैसे गत कल का दिन; अथवा रात्रि का एक प्रहर. 5 आप मनुष्यों को ऐसे समेट ले जाते हैं, जैसे बाढ़; वे स्वप्न मात्र होते हैं— प्रातःकाल में बढ़ने वाली कोमल घास के समान: 6 जो प्रातःकाल फूलती है, उसमें बढ़ती है, किंतु संध्या होते-होते यह मुरझाती और सूख जाती है. 7 आपका कोप हमें मिटा डालता है, आपकी अप्रसन्‍नता हमें घबरा देती है. 8 हमारे अपराध आपके सामने खुले हैं, आपकी उपस्थिति में हमारे गुप्‍त पाप प्रकट हो जाते हैं. 9 हमारे जीवन के दिन आपके क्रोध की छाया में ही व्यतीत होते हैं; हम कराहते हुए ही अपने वर्ष पूर्ण करते हैं. 10 हमारी जीवन अवधि सत्तर वर्ष है—संभवतः अस्सी वर्ष, यदि हम बलिष्ठ हैं; हमारी आयु का अधिकांश हम दुःख और कष्ट में व्यतीत करते हैं, हां, ये तीव्र गति से समाप्‍त हो जाते हैं और हम कूच कर जाते हैं. 11 आपके कोप की शक्ति की जानकारी कौन ले सका है! आपका कोप उतना ही व्यापक है जितना कि लोगों के द्वारा आपका भय मानना. 12 हमें जीवन की न्यूनता की धर्ममय विवेचना करने की अंतर्दृष्टि प्रदान कीजिए, कि हमारा हृदय बुद्धिमान हो जाए. 13 याहवेह! मृदु हो जाइए, और कितना विलंब? कृपा कीजिए-अपने सेवकों पर. 14 प्रातःकाल में ही हमें अपने करुणा-प्रेम* करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द के अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये सब शामिल हैं से संतुष्ट कर दीजिए, कि हम आजीवन उल्‍लसित एवं हर्षित रहें. 15 हमारे उतने ही दिनों को आनंद से तृप्‍त कर दीजिए, जितने दिन आपने हमें ताड़ना दी थी, उतने ही दिन, जितने वर्ष हमने दुर्दशा में व्यतीत किए हैं. 16 आपके सेवकों के सामने आपके महाकार्य स्पष्ट हो जाएं और उनकी संतान पर आपका वैभव. 17 हम पर प्रभु, हमारे परमेश्वर की मनोहरता स्थिर रहे; तथा हमारे लिए हमारे हाथों के परिश्रम को स्थायी कीजिए— हां, हमारे हाथों का परिश्रम स्थायी रहे.
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