1. {#1स्वर्गीय येरूशलेम } [PS]तब मैंने एक नया स्वर्ग और एक नई पृथ्वी देखी,[* यशा 65:17 ] अब पहले का स्वर्ग और पहले की पृथ्वी का अस्तित्व न रहा था. समुद्र का अस्तित्व भी न रहा था.
2. तब मैंने पवित्र नगरी, नई येरूशलेम को स्वर्ग से, परमेश्वर की ओर से उतरते हुए देखा. वह अपने वर के लिए खुबसूरती से सजाई गई वधू के जैसे सजी थी.
3. तब मैंने सिंहासन से एक ऊंचे शब्द में यह कहते सुना, “देखो! मनुष्यों के बीच में परमेश्वर का निवास! अब परमेश्वर उनके बीच निवास करेंगे. वे उनकी प्रजा होंगे तथा स्वयं परमेश्वर उनके बीच होंगे.
4. परमेश्वर उनकी आंखों से हर एक आंसू पोंछ देंगे.[† यशा 25:8 ] अब से मृत्यु मौजूद न रहेगी. अब न रहेगा विलाप, न रोना और न पीड़ा क्योंकि जो पहली बातें थी, अब वे न रहीं.” [PE]
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6. [PS]उन्होंने, जो सिंहासन पर विराजमान हैं, कहा, “देखो! अब मैं नई सृष्टि की रचना कर रहा हूं!” तब उन्होंने मुझे संबोधित करते हुए कहा, “लिखो, क्योंकि जो कुछ कहा जा रहा है, सच और विश्वासयोग्य है.” [PE][PS]तब उन्होंने आगे कहा, “सब पूरा हो चुका! मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूं—आदि तथा अंत. मैं उसे, जो प्यासा है, जीवन-जल के सोतों से मुफ्त में पीने को दूंगा.
7. जो विजयी होगा, उसे यह उत्तराधिकार प्राप्त होगा: मैं उसका परमेश्वर होऊंगा, और वह मेरी संतान.
8. किंतु डरपोकों, अविश्वासियों, भ्रष्टों, हत्यारों, व्यभिचारियों, टोन्हों, मूर्तिपूजकों और सभी झूठ बोलने वालों का स्थान उस झील में होगा, जो आग तथा गंधक से धधकती रहती है. यही है दूसरी मृत्यु.” [PE]
9. {#1मसीहिक येरूशलेम } [PS]तब जिन सात स्वर्गदूतों के पास सात अंतिम विपत्तियों से भरे सात कटोरे थे, उनमें से एक ने मेरे पास आकर मुझसे कहा, “आओ, मैं तुम्हें वधू—मेमने की पत्नी दिखाऊं.”
10. तब वह मुझे मेरी आत्मा में ध्यानमग्न अवस्था में एक बड़े पहाड़ के ऊंचे शिखर पर ले गया और मुझे परमेश्वर की ओर से स्वर्ग से उतरता हुआ पवित्र नगर येरूशलेम दिखाया.
11. परमेश्वर की महिमा से सुसज्जित उसकी आभा पारदर्शी स्फटिक जैसे बेशकीमती रत्न सूर्यकांत के समान थी.
12. नगर की शहरपनाह ऊंची तथा विशाल थी. उसमें बारह द्वार थे तथा बारहों द्वारों पर बारह स्वर्गदूत ठहराए गए थे. उन द्वारों पर इस्राएल के बारह गोत्रों के नाम लिखे थे.
13. तीन द्वार पूर्व दिशा की ओर, तीन उत्तर की ओर, तीन दक्षिण की ओर तथा तीन पश्चिम की ओर थे.
14. नगर की शहरपनाह की बारह नीवें थी. उन पर मेमने के बारहों प्रेरितों के नाम लिखे थे. [PE]
15. [PS]जो स्वर्गदूत, मुझे संबोधित कर रहा था, उसके पास नगर, उसके द्वार तथा उसकी शहरपनाह को मापने के लिए सोने का एक मापक-दंड था.
16. नगर की संरचना वर्गाकार थी—उसकी लंबाई उसकी चौड़ाई के बराबर थी. उसने नगर को इस मापदंड से मापा. नगर 2,220 किलोमीटर लंबा, इतना ही चौड़ा और इतना ही ऊंचा था.
17. तब उसने शहरपनाह को मापा. वह सामान्य मानवीय मापदंड के अनुसार पैंसठ मीटर थी. यही माप स्वर्गदूत का भी था.
18. शहरपनाह सूर्यकांत मणि की तथा नगर शुद्ध सोने का बना था, जिसकी आभा निर्मल कांच के समान थी.
19. शहरपनाह की नींव हर एक प्रकार के कीमती पत्थरों से सजायी गयी थी: पहला पत्थर था सूर्यकांत, दूसरा नीलकांत, तीसरा स्फटिक, चौथा पन्ना
20. पांचवां गोमेद, छठा माणिक्य, सातवां स्वर्णमणि; आठवां हरितमणि; नवां पुखराज; दसवां चन्द्रकांत; ग्यारहवां धूम्रकांत और बारहवां नीलम.
21. नगर के बारहों द्वार बारह मोती थे—हर एक द्वार एक पूरा मोती था तथा नगर का प्रधान मार्ग शुद्ध सोने का बना था, जिसकी आभा निर्मल कांच के समान थी. [PE]
22. [PS]इस नगर में मुझे कोई मंदिर दिखाई न दिया क्योंकि स्वयं सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर और मेमना इसका मंदिर हैं.
23. नगर को रोशनी देने के लिए न तो सूर्य की ज़रूरत है न चंद्रमा की क्योंकि परमेश्वर का तेज उसे उजियाला देता है तथा स्वयं मेमना इसका दीपक है.
24. राष्ट्र उसकी रोशनी में वास करेंगे तथा पृथ्वी के राजा इसमें अपना वैभव ले आएंगे.
25. दिन की समाप्ति पर नगर द्वार कभी बंद न किए जाएंगे क्योंकि रात यहां कभी होगी ही नहीं.
26. सभी राष्ट्रों का वैभव और आदर इसमें लाया जाएगा.
27. कोई भी अशुद्ध वस्तु इस नगर में न तो प्रवेश हो सकेगी और न ही वह, जिसका स्वभाव लज्जास्पद और बातें झूठ से भरी है, इसमें प्रवेश वे ही कर पाएंगे, जिनके नाम मेमने की जीवन-पुस्तक में लिखे हैं. [PE]