HOV
31. मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था॥
ERVHI
31. उसकी पूरी दुनिया से मैं आनन्दित थी। मेरी खुशी समूची मानवता थी।
IRVHI
31. मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था।
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