HOV
25. ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।
ERVHI
25. ताकि देह में कहीं कोई फूट न पड़े बल्कि देह के अंग परस्पर एक दूसरे का समान रूप से ध्यान रखें।
IRVHI
25. ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।
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