HOV
32. क्योंकि अन्त में वह सर्प की नाईं डसता है, और करैत के समान काटता है।
ERVHI
32. तेरी आँखों में विचित्र दृष्य तैरने लगेगें, तेरा मन उल्टी—सीधी बातों में उलझेगा।
IRVHI
32. क्योंकि अन्त में वह सर्प के समान डसता है, और करैत के समान काटता है।
KJV
AMP
KJVP
YLT
ASV
WEB
NASB
ESV
RV
RSV
NKJV
MKJV
AKJV
NRSV
NIV
NIRV
NLT
MSG
GNB
NET
ERVEN