HOV
43. धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए।
ERVHI
43. वह सेवक धन्य है जिसे उसका स्वामी जब आये तो उसे वैसा ही करते पाये।
IRVHI
43. धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए।
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