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मत्ती
मरकुस
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यूहन्ना
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रोमियो
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1 राजा 8:0 (12 18 am)
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1 राजा 8
1
तब
सुलैमान
ने
इस्राएली
पुरनियों
को
और
गोत्रों
के
सब
मुख्य
पुरुष
जो
इस्राएलियों
के
पूर्वजों
के
घरानों
के
प्रधान
थे,उन
को
भी
यरूशलेम
में
अपने
पास
इस
मनसा
से
इकट्ठा
किया,
कि
वे
यहोवा
की
वाचा
का
सन्दूक
दाऊदपुर
अर्थात
सियोन
से
ऊपर
ले
आएं।
2
सो
सब
इस्राएली
पुरुष
एतानीम
नाम
सातवें
महीने
कें
पर्व
के
समय
राजा
सुलैमान
के
पास
इकट्ठे
हुए।
3
जब
सब
इस्राएली
पुरनिये
आए,
तब
याजकों
ने
सन्दूक
को
उठा
लिया।
4
और
यहोवा
का
सन्दूक,
और
मिलाप
का
तम्बू,
और
जितने
पवित्र
पात्र
उस
तम्बू
में
थे,
उन
सभों
को
याजक
और
लेवीय
लोग
ऊपर
ले
गए।
5
और
राजा
सुलैमान
और
समस्त
इस्राएली
मंडली,
जो
उसके
पास
इकट्ठी
हुई
थी,
वे
सब
सन्दूक
के
साम्हने
इतनी
भेड़
और
बैल
बलि
कर
रहे
थे,
जिनकी
गिनती
किसी
रीति
से
नहीं
हो
सकती
थी।
6
तब
याजकों
ने
यहोवा
की
वाचा
का
सन्दूक
उसके
स्थान
को
अर्थात
भवन
के
दर्शन-स्थान
में,
जो
परमपवित्र
स्थान
है,
पहुंचाकर
करूबों
के
पंखों
के
तले
रख
दिया।
7
करूब
तो
सन्दूक
के
स्थान
के
ऊपर
पंख
ऐसे
फैलाए
हुए
थे,
कि
वे
ऊपर
से
सन्दूक
और
उसके
डंडों
को
ढांके
थे।
8
डंडे
तो
ऐसे
लम्बे
थे,
कि
उनके
सिरे
उस
पवित्र
स्थान
से
जो
दर्शन-स्थान
के
साम्हने
था
दिखाई
पड़ते
थे
परन्तु
बाहर
से
वे
दिखाई
नहीं
पड़ते
थे।
वे
आज
के
दिन
तक
यहीं
वर्तमान
हैं।
9
सन्दूक
में
कुछ
नहीं
था,
उन
दो
पटरियों
को
छोड़
जो
मूसा
ने
होरेब
में
उसके
भीतर
उस
समय
रखीं,
जब
यहोवा
ने
इस्राएलियों
के
मिस्र
से
निकलने
पर
उनके
साथ
वाचा
बान्धी
थी।
10
जब
याजक
पवित्रस्थान
से
निकले,
तब
यहोवा
के
भवन
में
बादल
भर
आया।
11
और
बादल
के
कारण
याजक
सेवा
टहल
करने
को
खड़े
न
रह
सके,
क्योंकि
यहोवा
का
तेज
यहोवा
के
भवन
में
भर
गया
था।
12
तब
सुलैमान
कहने
लगा,
यहोवा
ने
कहा
था,
कि
मैं
घोर
अंधकार
में
वास
किए
रहूंगा।
13
सचमुच
मैं
ने
तेरे
लिये
एक
वासस्थान,
वरन
ऐसा
दृढ़
स्थान
बनाया
है,
जिस
में
तू
युगानुयुग
बना
रहे।
14
और
राजा
ने
इस्राएल
की
पूरी
सभा
की
ओर
मुंह
फेरकर
उसको
आशीर्वाद
दिया;
और
पूरी
सभा
खड़ी
रही।
15
और
उसने
कहा,
धन्य
है
इस्राएल
का
परमेश्वर
यहोवा!
जिसने
अपने
मुंह
से
मेरे
पिता
दाऊद
को
यह
वचन
दिया
था,
और
अपने
हाथ
से
उसे
पूरा
किया
है,
16
कि
जिस
दिन
से
मैं
अपनी
प्रजा
इस्राएल
को
मिस्र
से
निकाल
लाया,
तब
से
मैं
ने
किसी
इस्राएली
गोत्र
का
कोई
नगर
नहीं
चुना,
जिस
में
मेरे
नाम
के
निवास
के
लिये
भवन
बनाया
जाए;
परन्तु
मैं
ने
दाऊद
को
चुन
लिया,
कि
वह
मेरी
प्रजा
इस्राएल
का
अधिकारी
हो।
17
मेरे
पिता
दाऊद
की
यह
मनसा
तो
थी
कि
इस्राएल
के
परमेश्वर
यहोवा
के
नाम
का
एक
भवन
बनाए।
18
परन्तु
यहोवा
ने
मेरे
पिता
दाऊद
से
कहा,
यह
जो
तेरी
मनसा
है,
कि
यहोवा
के
नाम
का
एक
भवन
बनाए,
ऐसी
मनसा
करके
तू
ने
भला
तो
किया;
19
तौभी
तू
उस
भवन
को
न
बनाएगा;
तेरा
जो
निज
पुत्र
होगा,
वही
मेरे
नाम
का
भवन
बनाएगा।
20
यह
जो
वचन
यहोवा
ने
कहा
था,
उसे
उसने
पूरा
भी
किया
है,
और
मैं
अपने
पिता
दाऊद
के
स्थान
पर
उठ
कर,
यहोवा
के
वचन
के
अनुसार
इस्राएल
की
गद्दी
पर
विराजमान
हूँ,
और
इस्राएल
के
परमेश्वर
यहोवा
के
नाम
से
इस
भवन
को
बनाया
है।
21
और
इस
में
मैं
ने
एक
स्थान
उस
सन्दूक
के
लिये
ठहराया
है,
जिस
में
यहोवा
की
वह
वाचा
है,
जो
उसने
हमारे
पुरखाओं
को
मिस्र
देश
से
निकालने
के
समय
उन
से
बान्धी
थी।
22
तब
सुलैमान
इस्राएल
की
पूरी
सभा
के
देखते
यहोवा
की
वेदी
के
साम्हने
खड़ा
हुआ,
और
अपने
हाथ
स्वर्ग
की
ओर
फैलाकर
कहा,
हे
यहोवा!
23
हे
इस्राएल
के
परमेश्वर!
तेरे
समान
न
तो
ऊपर
स्वर्ग
में,
और
न
नीचे
पृथ्वी
पर
कोई
ईश्वर
है:
तेरे
जो
दास
अपने
सम्पूर्ण
मन
से
अपने
को
तेरे
सम्मुख
जानकर
चलते
हैं,
उनके
लिये
तू
अपनी
वाचा
पूरी
करता,
और
करुणा
करता
रहता
है।
24
जो
वचन
तू
ने
मेरे
पिता
दाऊद
को
दिया
था,
उसका
तू
ने
पालन
किया
है,
जैसा
तू
ने
अपने
मुंह
से
कहा
था,
वैसा
ही
अपने
हाथ
से
उसको
पूरा
किया
है,
जैसा
आज
है।
25
इसलिये
अब
हे
इस्राएल
के
परमेश्वर
यहोवा!
इस
वचन
को
भी
पूरा
कर,
जो
तू
ने
अपने
दास
मेरे
पिता
दाऊद
को
दिया
था,
कि
तेरे
कुल
में,
मेरे
साम्हने
इस्राएल
की
गद्दी
पर
विराजने
वाले
सदैव
बने
रहेंगे:
इतना
हो
कि
जैसे
तू
स्वयं
मुझे
सम्मुख
जानकर
चलता
रहा,
वैसे
ही
तेरे
वंश
के
लोग
अपनी
चालचलन
में
ऐसी
ही
चौकसी
करें।
26
इसलिये
अब
हे
इस्राएल
के
परमेश्वर
अपना
जो
वचन
तू
ने
अपने
दास
मेरे
पिता
दाऊद
को
दिया
था
उसे
सच्चा
सिद्ध
कर।
27
क्या
परमेश्वर
सचमुच
पृथ्वी
पर
वास
करेगा,
स्वर्ग
में
वरन
सब
से
ऊंचे
स्वर्ग
में
भी
तू
नहीं
समाता,
फिर
मेरे
बनाए
हुए
इस
भवन
में
क्योंकर
समाएगा।
28
तौभी
हे
मेरे
परमेश्वर
यहोवा!
अपने
दास
की
प्रार्थना
और
गिड़गिड़ाहट
की
ओर
कान
लगाकर,
मेरी
चिल्लाहट
और
यह
प्रार्थना
सुन!
जो
मैं
आज
तेरे
साम्हने
कर
रहा
हूँ;
29
कि
तेरी
आंख
इस
भवन
की
ओर
अर्थात
इसी
स्थान
की
ओर
जिसके
विषय
तू
ने
कहा
है,
कि
मेरा
नाम
वहां
रहेगा,
रात
दिन
खुली
रहें:
और
जो
प्रार्थना
तेरा
दास
इस
स्थान
की
ओर
करे,
उसे
तू
सुन
ले।
30
और
तू
अपने
दास,
और
अपनी
प्रजा
इस्राएल
की
प्रार्थना
जिस
को
वे
इस
स्थान
की
ओर
गिड़गिड़ा
के
करें
उसे
सुनना,
वरन
स्वर्ग
में
से
जो
तेरा
निवासस्थान
है
सुन
लेना,
और
सुनकर
क्षमा
करना।
31
जब
कोई
किसी
दूसरे
का
अपराध
करे,
और
उसको
शपथ
खिलाई
जाए,
और
वह
आकर
इस
भवन
में
तेरी
वेदी
के
साम्हने
शपथ
खाए,
32
तब
तू
स्वर्ग
में
सुन
कर,
अर्थात
अपने
दासों
का
न्याय
करके
दुष्ट
को
दुष्ट
ठहरा
और
उसकी
चाल
उसी
के
सिर
लौटा
दे,
और
निर्दोष
को
निर्दोष
ठहराकर,
उसके
धर्म
के
अनुसार
उसको
फल
देना।
33
फिर
जब
तेरी
प्रजा
इस्राएल
तेरे
विरुद्ध
पाप
करने
के
कारण
अपने
शत्रुओं
से
हार
जाए,
और
तेरी
ओर
फिर
कर
तेरा
नाम
ले
और
इस
भवन
में
तुझ
से
गिड़गिड़ाहट
के
साथ
प्रार्थना
करे,
34
तब
तू
स्वर्ग
में
से
सुनकर
अपनी
प्रजा
इस्राएल
का
पाप
क्षमा
करना:
और
उन्हें
इस
देश
में
लौटा
ले
आना,
जो
तू
ने
उनके
पुरुखाओं
को
दिया
था।
35
जब
वे
तेरे
विरुद्ध
पाप
करें,
और
इस
कारण
आकाश
बन्द
हो
जाए,
कि
वर्षा
न
होए,
ऐसे
समय
यदि
वे
इस
स्थान
की
ओर
प्रार्थना
करके
तेरे
नाम
को
मानें
जब
तू
उन्हें
दु:ख
देता
है,
और
अपने
पाप
से
फिरें,
तो
तू
स्वर्ग
में
से
सुनकर
क्षमा
करना,
36
और
अपने
दासों,
अपनी
प्रजा
इस्राएल
के
पाप
को
क्षमा
करना;
तू
जो
उन
को
वह
भला
मार्ग
दिखाता
है,
जिस
पर
उन्हें
चलना
चाहिये,
इसलिये
अपने
इस
देश
पर,
जो
तू
ने
अपनी
प्रजा
का
भाग
कर
दिया
है,
पानी
बरसा
देना।
37
जब
इस
देश
में
काल
वा
मरी
वा
झुलस
हो
वा
गेरुई
वा
टिड्डियां
वा
कीड़े
लगें
वा
उनके
शत्रु
उनके
देश
के
फाटकों
में
उन्हें
घेर
रखें,
अथवा
कोई
विपत्ति
वा
रोग
क्यों
न
हों,
38
तब
यदि
कोई
मनुष्य
वा
तेरी
प्रजा
इस्राएल
अपने
अपने
मन
का
दु:ख
जान
लें,
और
गिड़गिड़ाहट
के
साथ
प्रार्थना
करके
अपने
हाथ
इस
भवन
की
ओर
फैलाएं;
39
तो
तू
अपने
स्वगींय
निवासस्थान
में
से
सुनकर
क्षमा
करना,
और
ऐसा
करना,
कि
एक
एक
के
मन
को
जानकर
उसकी
समस्त
चाल
के
अनुसार
उसको
फल
देना:
तू
ही
तो
सब
आदमियों
के
मन
के
भेदों
का
जानने
वाला
है।
40
तब
वे
जितने
दिन
इस
देश
में
रहें,
जो
तू
ने
उनके
पुरखाओं
को
दिया
था,
उतने
दिन
तक
तेरा
भय
मानते
रहें।
41
फिर
परदेशी
भी
जो
तेरी
प्रजा
इस्राएल
का
न
हो,
जब
वह
तेरा
नाम
सुनकर,
दूर
देश
से
आए,
42
वह
तो
तेरे
बड़े
नाम
और
बलवन्त
हाथ
और
बढ़ाई
हुई
भुजा
का
समाचार
पाए;
इसलिये
जब
ऐसा
कोई
आकर
इस
भवन
की
ओर
प्रार्थना
करें,
43
तब
तू
अपने
स्वगींय
निवासस्थान
में
से
सुन,
और
जिस
बात
के
लिये
ऐसा
परदेशी
तुझे
पुकारे,
उसी
के
अनुसार
व्यवहार
करना
जिस
से
पृथ्वी
के
सब
देशों
के
लोग
तेरा
नाम
जानकर
तेरी
प्रजा
इस्राएल
की
नाईं
तेरा
भय
मानें,
और
निश्चय
जानें,
कि
यह
भवन
जिसे
मैं
ने
बनाया
है,
वह
तेरा
ही
कहलाता
है।
44
जब
तेरी
प्रजा
के
लोग
जहां
कहीं
तू
उन्हें
भेजे,
वहां
अपने
शत्रुओं
से
लड़ाई
करने
को
निकल
जाएं,
और
इस
नगर
की
ओर
जिसे
तू
ने
चुना
है,
और
इस
भवन
की
ओर
जिसे
मैं
ने
तेरे
नाम
पर
बनाया
है,
यहोवा
से
प्रार्थना
करें,
45
तब
तू
स्वर्ग
में
से
उनकी
प्रार्थना
और
गिड़गिड़ाहट
सुनकर
उनका
न्याय
कर।
46
निष्पाप
तो
कोई
मनुष्य
नहीं
है:
यदि
ये
भी
तेरे
विरुद्ध
पाप
करें,
और
तू
उन
पर
कोप
करके
उन्हें
शत्रओं
के
हाथ
कर
दे,
और
वे
उन
को
बन्धुआ
करके
अपने
देश
को
चाहे
वह
दूर
हो,
चाहे
निकट
ले
जाएं,
47
तो
यदि
वे
बन्धुआई
के
देश
में
सोच
विचार
करें,
और
फिर
कर
अपने
बन्धुआ
करने
वालों
के
देश
में
तुझ
से
गिड़गिड़ाकर
कहें
कि
हम
ने
पाप
किया,
और
कुटिलता
ओर
दुष्टता
की
है;
48
और
यदि
वे
अपने
उन
शत्रुओं
के
देश
में
जो
उन्हें
बन्धुआ
करके
ले
गए
हों,
अपने
सम्पूर्ण
मन
और
सम्पूर्ण
प्राण
से
तेरी
ओर
फिरें
और
अपने
इस
देश
की
ओर
जो
तू
ने
उनके
पुरुखाओं
को
दिया
था,
और
इस
नगर
की
ओर
जिसे
तू
ने
चुना
है,
और
इस
भवन
की
ओर
जिसे
मैं
ने
तेरे
नाम
का
बनाया
है,
तुझ
से
प्रार्थना
करें,
49
तो
तू
अपने
स्वगींय
निवासस्थान
में
से
उनकी
प्रार्थना
और
गिड़गिड़ाहट
सुनना;
और
उनका
न्याय
करना,
50
और
जो
पाप
तेरी
प्रजा
के
लोग
तेरे
विरुद्ध
करेंगे,
और
जितने
अपराध
वे
तेरे
विरुद्ध
करेंगे,
सब
को
क्षमा
करके,
उनके
बन्धुआ
करने
वालों
के
मन
में
ऐसी
दया
उपजाना
कि
वे
उन
पर
दया
करें।
51
क्योंकि
वे
तो
तेरी
प्रजा
और
तेरा
निज
भाग
हैं
जिन्हें
तू
लोहे
के
भट्ठे
के
मध्य
में
से
अर्थात
मिस्र
से
निकाल
लाया
है।
52
इसलिये
तेरी
आंखें
तेरे
दास
की
गिड़गिड़ाहट
और
तेरी
प्रजा
इस्राएल
की
गिड़गिड़ाहट
की
ओर
ऐसी
खुली
रहें,
कि
जब
जब
वे
तुझे
पुकारें,
तब
तब
तू
उनकी
सुन
ले;
53
क्योंकि
हे
प्रभु
यहोवा
अपने
उस
वचन
के
अनुसार,
जो
तू
ने
हमारे
पुरखाओं
को
मिस्र
से
निकालने
के
समय
अपने
दास
मूसा
के
द्वारा
दिया
था,
तू
ने
इन
लोगों
को
अपना
निज
भाग
होने
के
लिये
पृथ्वी
की
सब
जातियों
से
अलग
किया
है।
54
जब
सुलैमान
यहोवा
से
यह
सब
प्रार्थना
गिड़गिड़ाहट
के
साथ
कर
चुका,
तब
वह
जो
घुटने
टेके
और
आकाश
की
ओर
हाथ
फैलाए
हुए
था,
सो
यहोवा
की
वेदी
के
साम्हने
से
उठा,
55
और
खड़ा
हो,
समस्त
इस्राएली
सभा
को
ऊंचे
स्वर
से
यह
कहकर
आशीर्वाद
दिया,
कि
धन्य
है
यहोवा,
56
जिसने
ठीक
अपने
कयन
के
अनुसार
अपनी
प्रजा
इस्राएल
को
विश्राम
दिया
है,
जितनी
भलाई
की
बातें
उसने
अपने
दास
मूसा
के
द्वारा
कही
थीं,उन
में
से
एक
भी
बिना
पूरी
हुए
नहीं
रही।
57
हमारा
परमेश्वर
यहोवा
जैसे
हमारे
पुरखाओं
के
संग
रहता
था,
वैसे
ही
हमारे
संग
भी
रहे,
वह
हम
को
त्याग
न
दे
और
न
हम
को
छोड़
दे।
58
वह
हमारे
मन
अपनी
ओर
ऐसा
फिराए
रखे,
कि
हम
उसके
सब
मार्गों
पर
चला
करें,
और
उसकी
आज्ञाएं
और
विधियां
और
नियम
जिन्हें
उसने
हमारे
पुरखाओं
को
दिया
था,
नित
माना
करें।
59
और
मेरी
ये
बातें
जिनकी
मैं
ने
यहोवा
के
साम्हने
बिनती
की
है,
वह
दिन
और
रात
हमारे
परमेश्वर
यहोवा
के
मन
में
बनी
रहें,
और
जैसा
दिन
दिन
प्रयोजन
हो
वैसा
ही
वह
अपने
दास
का
और
अपनी
प्रजा
इस्राएल
का
भी
न्याय
किया
करे,
60
और
इस
से
पृथ्वी
की
सब
जातियां
यह
जान
लें,
कि
यहोवा
ही
परमेश्वर
है;
और
कोई
दूसरा
नहीं।
61
तो
तुम्हारा
मन
हमारे
परमेश्वर
यहोवा
की
ओर
ऐसी
पूरी
रीति
से
लगा
रहे,
कि
आज
की
नाईं
उसकी
विधियों
पर
चलते
और
उसकी
आज्ञाएं
मानते
रहो।
62
तब
राजा
समस्त
इस्राएल
समेत
यहोवा
के
सम्मुख
मेलबलि
चढ़ाने
लगा।
63
और
जो
पशु
सुलैमान
ने
मेलबलि
में
यहोवा
को
चढ़ाए,
सो
बाईस
हजार
बैल
और
एक
लाख
बीस
हजार
भेड़ें
थीं।
इस
रीति
राजा
ने
सब
इस्राएलियों
समेत
यहोवा
के
भवन
की
प्रतिष्ठा
की।
64
उस
दिन
राजा
ने
यहोवा
के
भवन
के
साम्हने
वाले
आंगन
के
मध्य
भी
एक
स्थान
पवित्र
किया
और
होमबलि,
और
अन्नबलि
और
मेलबलियों
की
चरबी
वहीं
चढ़ाई;
क्योंकि
जो
पीतल
की
वेदी
यहोवा
के
साम्हने
थी,
वह
उनके
लिये
छोटी
थी।
65
और
सुलैमान
ने
और
उसके
संग
समस्त
इस्राएल
की
एक
बड़ी
सभा
ने
जो
हमात
की
घाटी
से
ले
कर
मिस्र
के
नाले
तक
के
सब
देशों
से
इकट्ठी
हुई
थी,
दो
सप्ताह
तक
अर्थात
चौदह
दिन
तक
हमारे
परमेश्वर
यहोवा
के
साम्हने
पर्व
को
माना।
फिर
आठवें
दिन
उसने
प्रजा
के
लोगों
को
विदा
किया।
66
और
वे
राजा
को
धन्य,
धन्य,
कहकर
उस
सब
भलाई
के
कारण
जो
यहोवा
ने
अपने
दास
दाऊद
और
अपनी
प्रजा
इस्राएल
से
की
थी,
आनन्दित
और
मगन
हो
कर
अपने
अपने
डेरे
को
चले
गए।
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