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आमोस
ओबद्दाह
योना
मीका
नहूम
हबक्कूक
सपन्याह
हाग्गै
जकर्याह
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मत्ती
मरकुस
लूका
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फिलिप्पियों 1
1
मसीह
यीशु
के
दास
पौलुस
और
तीमुथियुस
की
ओर
से
सब
पवित्र
लोगों
के
नाम,
जो
मसीह
यीशु
में
होकर
फिलिप्पी
में
रहते
हैं,
अध्यक्षों
और
सेवकों
समेत।
2
हमारे
पिता
परमेश्वर
और
प्रभु
यीशु
मसीह
की
ओर
से
तुम्हें
अनुग्रह
और
शान्ति
मिलती
रहे॥
3
मैं
जब
जब
तुम्हें
स्मरण
करता
हूं,
तब
तब
अपने
परमेश्वर
का
धन्यवाद
करता
हूं।
4
और
जब
कभी
तुम
सब
के
लिये
बिनती
करता
हूं,
तो
सदा
आनन्द
के
साथ
बिनती
करता
हूं।
5
इसलिये,
कि
तुम
पहिले
दिन
से
लेकर
आज
तक
सुसमाचार
के
फैलाने
में
मेरे
सहभागी
रहे
हो।
6
और
मुझे
इस
बात
का
भरोसा
है,
कि
जिस
ने
तुम
में
अच्छा
काम
आरम्भ
किया
है,
वही
उसे
यीशु
मसीह
के
दिन
तक
पूरा
करेगा।
7
उचित
है,
कि
मैं
तुम
सब
के
लिये
ऐसा
ही
विचार
करूं
क्योंकि
तुम
मेरे
मन
में
आ
बसे
हो,
और
मेरी
कैद
में
और
सुसमाचार
के
लिये
उत्तर
और
प्रमाण
देने
में
तुम
सब
मेरे
साथ
अनुग्रह
में
सहभागी
हो।
8
इस
में
परमेश्वर
मेरा
गवाह
है,
कि
मैं
मसीह
यीशु
की
सी
प्रीति
करके
तुम
सब
की
लालसा
करता
हूं।
9
और
मैं
यह
प्रार्थना
करता
हूं,
कि
तुम्हारा
प्रेम,
ज्ञान
और
सब
प्रकार
के
विवेक
सहित
और
भी
बढ़ता
जाए।
10
यहां
तक
कि
तुम
उत्तम
से
उत्तम
बातों
को
प्रिय
जानो,
और
मसीह
के
दिन
तक
सच्चे
बने
रहो;
और
ठोकर
न
खाओ।
11
और
उस
धामिर्कता
के
फल
से
जो
यीशु
मसीह
के
द्वारा
होते
हैं,
भरपूर
होते
जाओ
जिस
से
परमेश्वर
की
महिमा
और
स्तुति
होती
रहे॥
12
हे
भाइयों,
मैं
चाहता
हूं,
कि
तुम
यह
जान
लो,
कि
मुझ
पर
जो
बीता
है,
उस
से
सुसमाचार
ही
की
बढ़ती
हुई
है।
13
यहां
तक
कि
कैसरी
राज्य
की
सारी
पलटन
और
शेष
सब
लोगों
में
यह
प्रगट
हो
गया
है
कि
मैं
मसीह
के
लिये
कैद
हूं।
14
और
प्रभु
में
जो
भाई
हैं,
उन
में
से
बहुधा
मेरे
कैद
होने
के
कारण,
हियाव
बान्ध
कर,
परमेश्वर
का
वचन
निधड़क
सुनाने
का
और
भी
हियाव
करते
हैं।
15
कितने
तो
डाह
और
झगड़े
के
कारण
मसीह
का
प्रचार
करते
हैं
और
कितने
भली
मनसा
से।
16
कई
एक
तो
यह
जान
कर
कि
मैं
सुसमाचार
के
लिये
उत्तर
देने
को
ठहराया
गया
हूं
प्रेम
से
प्रचार
करते
हैं।
17
और
कई
एक
तो
सीधाई
से
नहीं
पर
विरोध
से
मसीह
की
कथा
सुनाते
हैं,
यह
समझ
कर
कि
मेरी
कैद
में
मेरे
लिये
क्लेश
उत्पन्न
करें।
18
सो
क्या
हुआ?
केवल
यह,
कि
हर
प्रकार
से
चाहे
बहाने
से,
चाहे
सच्चाई
से,
मसीह
की
कथा
सुनाई
जाती
है,
और
मैं
इस
से
आनन्दित
हूं,
और
आनन्दित
रहूंगा
भी।
19
क्योंकि
मैं
जानता
हूं,
कि
तुम्हारी
बिनती
के
द्वारा,
और
यीशु
मसीह
की
आत्मा
के
दान
के
द्वारा
इस
का
प्रतिफल
मेरा
उद्धार
होगा।
20
मैं
तो
यही
हादिर्क
लालसा
और
आशा
रखता
हूं,
कि
मैं
किसी
बात
में
लज्ज़ित
न
होऊं,
पर
जैसे
मेरे
प्रबल
साहस
के
कारण
मसीह
की
बड़ाई
मेरी
देह
के
द्वारा
सदा
होती
रही
है,
वैसा
ही
अब
भी
हो
चाहे
मैं
जीवित
रहूं
या
मर
जाऊं।
21
क्योंकि
मेरे
लिये
जीवित
रहना
मसीह
है,
और
मर
जाना
लाभ
है।
22
पर
यदि
शरीर
में
जीवित
रहना
ही
मेरे
काम
के
लिये
लाभदायक
है
तो
मैं
नहीं
जानता,
कि
किस
को
चुनूं।
23
क्योंकि
मैं
दोनों
के
बीच
अधर
में
लटका
हूं;
जी
तो
चाहता
है
कि
कूच
करके
मसीह
के
पास
जा
रहूं,
क्योंकि
यह
बहुत
ही
अच्छा
है।
24
परन्तु
शरीर
में
रहना
तुम्हारे
कारण
और
भी
आवश्यक
है।
25
और
इसलिये
कि
मुझे
इस
का
भरोसा
है
सो
मैं
जानता
हूं
कि
मैं
जीवित
रहूंगा,
वरन
तुम
सब
के
साथ
रहूंगा
जिस
से
तुम
विश्वास
में
दृढ़
होते
जाओ
और
उस
में
आनन्दित
रहो।
26
और
जो
घमण्ड
तुम
मेरे
विषय
में
करते
हो,
वह
मेरे
फिर
तुम्हारे
पास
आने
से
मसीह
यीशु
में
अधिक
बढ़
जाए।
27
केवल
इतना
करो
कि
तुम्हारा
चाल-चलन
मसीह
के
सुसमाचार
के
योग्य
हो
कि
चाहे
मैं
आकर
तुम्हें
देखूं,
चाहे
न
भी
आऊं,
तुम्हारे
विषय
में
यह
सुनूं,
कि
तुम
एक
ही
आत्मा
में
स्थिर
हो,
और
एक
चित्त
होकर
सुसमाचार
के
विश्वास
के
लिये
परिश्रम
करते
रहते
हो।
28
और
किसी
बात
में
विरोधियों
से
भय
नहीं
खाते
यह
उन
के
लिये
विनाश
का
स्पष्ट
चिन्ह
है,
परन्तु
तुम्हारे
लिये
उद्धार
का,
और
यह
परमेश्वर
की
ओर
से
है।
29
क्योंकि
मसीह
के
कारण
तुम
पर
यह
अनुग्रह
हुआ
कि
न
केवल
उस
पर
विश्वास
करो
पर
उसके
लिये
दुख
भी
उठाओ।
30
और
तुम्हें
वैसा
ही
परिश्रम
करना
है,
जैसा
तुम
ने
मुझे
करते
देखा
है,
और
अब
भी
सुनते
हो,
कि
मैं
वैसा
ही
करता
हूं॥
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