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नीतिवचन 11:1
उत्पत्ति
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रूत
1 शमूएल
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नीतिवचन 11:1 (10 47 am)
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नीतिवचन 11:1
1
छल
के
तराजू
से
यहोवा
को
घृणा
आती
है,
परन्तु
वह
पूरे
बटखरे
से
प्रसन्न
होता
है।
2
जब
अभिमान
होता,
तब
अपमान
भी
होता
है,
परन्तु
नम्र
लोगों
में
बुद्धि
होती
है।
3
सीधे
लोग
अपनी
खराई
से
अगुवाई
पाते
हैं,
परन्तु
विश्वासघाती
अपने
कपट
से
विनाश
होते
हैं।
4
कोप
के
दिन
धन
से
तो
कुछ
लाभ
नहीं
होता,
परन्तु
धर्म
मृत्यु
से
भी
बचाता
है।
5
खरे
मनुष्य
का
मार्ग
धर्म
के
कारण
सीधा
होता
है,
परन्तु
दुष्ट
अपनी
दुष्टता
के
कारण
गिर
जाता
है।
6
सीधे
लोगों
को
बचाव
उनके
धर्म
के
कारण
होता
है,
परन्तु
विश्वासघाती
लोग
अपनी
ही
दुष्टता
में
फंसते
हैं।
7
जब
दुष्ट
मरता,
तब
उसकी
आशा
टूट
जाती
है,
और
अधर्मी
की
आशा
व्यर्थ
होती
है।
8
धर्मी
विपत्ति
से
छूट
जाता
है,
परन्तु
दुष्ट
उसी
विपत्ति
में
पड़
जाता
है।
9
भक्तिहीन
जन
अपने
पड़ोसी
को
अपने
मुंह
की
बात
से
बिगाड़ता
है,
परन्तु
धर्मी
लोग
ज्ञान
के
द्वारा
बचते
हैं।
10
जब
धर्मियों
का
कल्याण
होता
है,
तब
नगर
के
लोग
प्रसन्न
होते
हैं,
परन्तु
जब
दुष्ट
नाश
होते,
तब
जय-जयकार
होता
है।
11
सीधे
लोगों
के
आशीर्वाद
से
नगर
की
बढ़ती
होती
है,
परन्तु
दुष्टों
के
मुंह
की
बात
से
वह
ढाया
जाता
है।
12
जो
अपने
पड़ोसी
को
तुच्छ
जानता
है,
वह
निर्बुद्धि
है,
परन्तु
समझदार
पुरूष
चुपचाप
रहता
है।
13
जो
लुतराई
करता
फिरता
वह
भेद
प्रगट
करता
है,
परन्तु
विश्वासयोग्य
मनुष्य
बात
को
छिपा
रखता
है।
14
जहां
बुद्धि
की
युक्ति
नहीं,
वहां
प्रजा
विपत्ति
में
पड़ती
है;
परन्तु
सम्मति
देने
वालों
की
बहुतायत
के
कारण
बचाव
होता
है।
15
जो
परदेशी
का
उत्तरदायी
होता
है,
वह
बड़ा
दु:ख
उठाता
है,
परन्तु
जो
उत्तरदायित्व
से
घृणा
करता,
वह
निडर
रहता
है।
16
अनुग्रह
करने
वाली
स्त्री
प्रतिष्ठा
नहीं
खोती
है,
और
बलात्कारी
लोग
धन
को
नहीं
खोते।
17
कृपालु
मनुष्य
अपना
ही
भला
करता
है,
परन्तु
जो
क्रूर
है,
वह
अपनी
ही
देह
को
दु:ख
देता
है।
18
दुष्ट
मिथ्या
कमाई
कमाता
है,
परन्तु
जो
धर्म
का
बीज
बोता,
उस
को
निश्चय
फल
मिलता
है।
19
जो
धर्म
में
दृढ़
रहता,
वह
जीवन
पाता
है,
परन्तु
जो
बुराई
का
पीछा
करता,
वह
मृत्यु
का
कौर
हो
जाता
है।
20
जो
मन
के
टेढ़े
है,
उन
से
यहोवा
को
घृणा
आती
है,
परन्तु
वह
खरी
चाल
वालों
से
प्रसन्न
रहता
है।
21
मैं
दृढ़ता
के
साथ
कहता
हूं,
बुरा
मनुष्य
निर्दोष
न
ठहरेगा,
परन्तु
धर्मी
का
वंश
बचाया
जाएगा।
22
जो
सुन्दर
स्त्री
विवेक
नहीं
रखती,
वह
थूथन
में
सोने
की
नथ
पहिने
हुए
सूअर
के
समान
है।
23
धर्मियों
की
लालसा
तो
केवल
भलाई
की
होती
है;
परन्तु
दुष्टों
की
आशा
का
फल
क्रोध
ही
होता
है।
24
ऐसे
हैं,
जो
छितरा
देते
हैं,
तौभी
उनकी
बढ़ती
ही
होती
है;
और
ऐसे
भी
हैं
जो
यथार्थ
से
कम
देते
हैं,
और
इस
से
उनकी
घटती
ही
होती
है।
25
उदार
प्राणी
हृष्ट
पुष्ट
हो
जाता
है,
और
जो
औरों
की
खेती
सींचता
है,
उसकी
भी
सींची
जाएगी।
26
जो
अपना
अनाज
रख
छोड़ता
है,
उस
को
लोग
शाप
देते
हैं,
परन्तु
जो
उसे
बेच
देता
है,
उस
को
आशीर्वाद
दिया
जाता
है।
27
जो
यत्न
से
भलाई
करता
है
वह
औरों
की
प्रसन्नता
खोजता
है,
परन्तु
जो
दूसरे
की
बुराई
का
खोजी
होता
है,
उसी
पर
बुराई
आ
पड़ती
है।
28
जो
अपने
धन
पर
भरोसा
रखता
है
वह
गिर
जाता
है,
परन्तु
धर्मी
लोग
नये
पत्ते
की
नाईं
लहलहाते
हैं।
29
जो
अपने
घराने
को
दु:ख
देता,
उसका
भाग
वायु
ही
होगा,
और
मूढ़
बुद्धिमान
का
दास
हो
जाता
है।
30
धर्मी
का
प्रतिफल
जीवन
का
वृक्ष
होता
है,
और
बुद्धिमान
मनुष्य
लोगों
के
मन
को
मोह
लेता
है।
31
देख,
धर्मी
को
पृथ्वी
पर
फल
मिलेगा,
तो
निश्चय
है
कि
दुष्ट
और
पापी
को
भी
मिलेगा॥
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