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हबक्कूक 2
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यूहन्ना 21:20 (09 27 am)
यिर्मयाह 48:29 (09 27 am)
हबक्कूक 2:0 (09 27 am)
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हबक्कूक 2
1
मैं
अपने
पहरे
पर
खड़ा
रहूंगा,
और
गुम्मट
पर
चढ़
कर
ठहरा
रहूंगा,
और
ताकता
रहूंगा
कि
मुझ
से
वह
क्या
कहेगा?
और
मैं
अपने
दिए
हुए
उलाहने
के
विषय
में
उत्तर
दूं?
2
यहोवा
ने
मुझ
से
कहा,
दर्शन
की
बातें
लिख
दे;
वरन
पटियाओं
पर
साफ
साफ
लिख
दे
कि
दौड़ते
हुए
भी
वे
सहज
से
पढ़ी
जाएं।
3
क्योंकि
इस
दर्शन
की
बात
नियत
समय
में
पूरी
होने
वाली
है,
वरन
इसके
पूरे
होने
का
समय
वेग
से
आता
है;
इस
में
धोखा
न
होगा।
चाहे
इस
में
विलम्ब
भी
हो,
तौभी
उसकी
बाट
जोहते
रहना;
क्योंकि
वह
निश्चय
पूरी
होगी
और
उस
में
देर
न
होगी।
4
देख,
उसका
मन
फूला
हुआ
है,
उसका
मन
सीधा
नहीं
है;
परन्तु
धर्मी
अपने
विश्वास
के
द्वारा
जीवित
रहेगा।
5
दाखमधु
से
धोखा
होता
है;
अहंकारी
पुरूष
घर
में
नहीं
रहता,
और
उसकी
लालसा
अधोलोक
के
समान
पूरी
नहीं
होती,
और
मृत्यु
की
नाईं
उसका
पेट
नहीं
भरता।
वह
सब
जातियों
को
अपने
पास
खींच
लेता,
और
सब
देशों
के
लोगों
को
अपने
पास
इकट्ठे
कर
रखता
है॥
6
क्या
वे
सब
उसका
दृष्टान्त
चला
कर,
और
उस
पर
ताना
मार
कर
न
कहेंगे
कि
हाय
उस
पर
जो
पराया
धल
छीन
छीनकर
धनवान
हो
जाता
है?
कब
तक?
हाय
उस
पर
जो
अपना
घर
बन्धक
की
वस्तुओं
से
भर
लेता
है।
7
जो
तुझ
से
कर्ज
लेते
हैं,
क्या
वे
लोग
अचानक
न
उठेंगे?
और
क्या
वे
न
जागेंगे
जो
तुझ
को
संकट
में
डालेंगे?
8
और
क्या
तू
उन
से
लूटा
न
जाएगा?
तू
ने
बहुत
सी
जातियों
को
लूट
लिया
है,
सो
सब
बचे
हुए
लोग
तुझे
भी
लूट
लेंगे।
इसका
कारण
मनुष्यों
की
हत्या,
और
वह
अपद्रव
भी
जो
तू
ने
इस
देश
और
राजधानी
और
इसके
सब
रहने
वालों
पर
किया
है॥
9
हाय
उस
पर,
जो
अपने
घर
के
लिये
अन्याय
के
लाभ
का
लोभी
है
ताकि
वह
अपना
घोंसला
ऊंचे
स्थान
में
बनाकर
विपत्ति
से
बचे।
10
तू
ने
बहुत
सी
जातियों
को
काट
कर
अपने
घर
लिये
लज्जा
की
युक्ति
बान्धी,
और
अपने
ही
प्राण
का
दोषी
ठहरा
है।
11
क्योंकि
घर
की
भीत
का
पत्थर
दोहाई
देता
है,
और
उसके
छत
की
कड़ी
उनके
स्वर
में
स्वर
मिलाकर
उत्तर
देती
हैं।
12
हाय
उस
पर
जो
हत्या
कर
के
नगर
को
बनाता,
और
कुटिलता
कर
के
गढ़
को
दृढ़
करता
है।
13
देखो,
क्या
सेनाओं
के
यहोवा
की
ओर
से
यह
नहीं
होता
कि
देश
देश
के
लोग
परिश्रम
तो
करते
हैं
परन्तु
वे
आग
का
कौर
होते
हैं;
और
राज्य-राज्य
के
लोगों
का
परिश्रम
व्यर्थ
ही
ठहरता
है?
14
क्योंकि
पृथ्वी
यहोवा
की
महिमा
के
ज्ञान
से
ऐसी
भर
जाएगी
जैसे
समुद्र
जल
से
भर
जाता
है॥
15
हाय
उस
पर,
जो
अपने
पड़ोसी
को
मदिरा
पिलाता,
और
उस
में
विष
मिलाकर
उसको
मतवाला
कर
देता
है
कि
उसको
नंगा
देखे।
16
तू
महिमा
की
सन्ती
अपमान
ही
से
भर
गया
है।
तू
भी
पी,
और
अपने
को
खतनाहीन
प्रगट
कर!
जो
कटोरा
यहोवा
के
दाहिने
हाथ
में
रहता
है,
सो
घूम
कर
तेरी
ओर
भी
जाएगा,
और
तेरा
वैभव
तेरी
छांट
से
अशुद्ध
हो
जाएगा।
17
क्योंकि
लबानोन
में
तेरा
किया
हुआ
उपद्रव
और
वहां
के
पशुओं
पर
तेरा
किया
हुआ
उत्पात,
जिन
से
वे
भयभीत
हो
गए
थे,
तुझी
पर
आ
पड़ेंगे।
यह
मनुष्यों
की
हत्या
और
उस
उपद्रव
के
कारण
होगा,
जो
इस
देश
और
राजधानी
और
इसके
सब
रहने
वालों
पर
किया
गया
है॥
18
खुदी
हुई
मूरत
में
क्या
लाभ
देख
कर
बनाने
वाले
ने
उसे
खोदा
है?
फिर
झूठ
सिखाने
वाली
और
ढली
हुई
मूरत
में
क्या
लाभ
देख
कर
ढालने
वाले
ने
उस
पर
इतना
भरोसा
रखा
है
कि
न
बोलने
वाली
और
निकम्मी
मूरत
बनाए?
19
हाय
उस
पर
जो
काठ
से
कहता
है,
जाग,
वा
अबोल
पत्थर
से,
उठ!
क्या
वह
सिखाएगा?
देखो,
वह
सोने
चान्दी
में
मढ़ा
हुआ
है,
परन्तु
उस
में
आत्मा
नहीं
है॥
20
परन्तु
यहोवा
अपने
पवित्र
मन्दिर
में
है;
समस्त
पृथ्वी
उसके
साम्हने
शान्त
रहे॥
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