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मरकुस
लूका
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प्रेरितों के काम
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1 कुरिन्थियों
2 कुरिन्थियों
गलातियों
इफिसियों
फिलिप्पियों
कुलुस्सियों
1 थिस्सलुनीकियों
2 थिस्सलुनीकियों
1 तीमुथियुस
2 तीमुथियुस
तीतुस
फिलेमोन
इब्रानियों
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3 यूहन्ना
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मत्ती 5:7
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मत्ती 5:7 (06 20 am)
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मत्ती 5:7
1
वह
इस
भीड़
को
देखकर,
पहाड़
पर
चढ़
गया;
और
जब
बैठ
गया
तो
उसके
चेले
उसके
पास
आए।
2
और
वह
अपना
मुंह
खोलकर
उन्हें
यह
उपदेश
देने
लगा,
3
धन्य
हैं
वे,
जो
मन
के
दीन
हैं,
क्योंकि
स्वर्ग
का
राज्य
उन्हीं
का
है।
4
धन्य
हैं
वे,
जो
शोक
करते
हैं,
क्योंकि
वे
शांति
पाएंगे।
5
धन्य
हैं
वे,
जो
नम्र
हैं,
क्योंकि
वे
पृथ्वी
के
अधिकारी
होंगे।
6
धन्य
हैं
वे
जो
धर्म
के
भूखे
और
प्यासे
हैं,
क्योंकि
वे
तृप्त
किये
जाएंगे।
7
धन्य
हैं
वे,
जो
दयावन्त
हैं,
क्योंकि
उन
पर
दया
की
जाएगी।
8
धन्य
हैं
वे,
जिन
के
मन
शुद्ध
हैं,
क्योंकि
वे
परमेश्वर
को
देखेंगे।
9
धन्य
हैं
वे,
जो
मेल
करवाने
वाले
हैं,
क्योंकि
वे
परमेश्वर
के
पुत्र
कहलाएंगे।
10
धन्य
हैं
वे,
जो
धर्म
के
कारण
सताए
जाते
हैं,
क्योंकि
स्वर्ग
का
राज्य
उन्हीं
का
है।
11
धन्य
हो
तुम,
जब
मनुष्य
मेरे
कारण
तुम्हारी
निन्दा
करें,
और
सताएं
और
झूठ
बोल
बोलकर
तुम्हरो
विरोध
में
सब
प्रकार
की
बुरी
बात
कहें।
12
आनन्दित
और
मगन
होना
क्योंकि
तुम्हारे
लिये
स्वर्ग
में
बड़ा
फल
है
इसलिये
कि
उन्होंने
उन
भविष्यद्वक्ताओं
को
जो
तुम
से
पहिले
थे
इसी
रीति
से
सताया
था॥
13
तुम
पृथ्वी
के
नमक
हो;
परन्तु
यदि
नमक
का
स्वाद
बिगड़
जाए,
तो
वह
फिर
किस
वस्तु
से
नमकीन
किया
जाएगा?
फिर
वह
किसी
काम
का
नहीं,
केवल
इस
के
कि
बाहर
फेंका
जाए
और
मनुष्यों
के
पैरों
तले
रौंदा
जाए।
14
तुम
जगत
की
ज्योति
हो;
जो
नगर
पहाड़
पर
बसा
हुआ
है
वह
छिप
नहीं
सकता।
15
और
लोग
दिया
जलाकर
पैमाने
के
नीचे
नहीं
परन्तु
दीवट
पर
रखते
हैं,
तब
उस
से
घर
के
सब
लोगों
को
प्रकाश
पहुंचता
है।
16
उसी
प्रकार
तुम्हारा
उजियाला
मनुष्यों
के
साम्हने
चमके
कि
वे
तुम्हारे
भले
कामों
को
देखकर
तुम्हारे
पिता
की,
जो
स्वर्ग
में
हैं,
बड़ाई
करें॥
17
यह
न
समझो,
कि
मैं
व्यवस्था
था
भविष्यद्वक्ताओं
की
पुस्तकों
को
लोप
करने
आया
हूं।
18
लोप
करने
नहीं,
परन्तु
पूरा
करने
आया
हूं,
क्योंकि
मैं
तुम
से
सच
कहता
हूं,
कि
जब
तक
आकाश
और
पृथ्वी
टल
न
जाएं,
तब
तक
व्यवस्था
से
एक
मात्रा
या
बिन्दु
भी
बिना
पूरा
हुए
नहीं
टलेगा।
19
इसलिये
जो
कोई
इन
छोटी
से
छोटी
आज्ञाओं
में
से
किसी
एक
को
तोड़े,
और
वैसा
ही
लोगों
को
सिखाए,
वह
स्वर्ग
के
राज्य
में
सब
से
छोटा
कहलाएगा;
परन्तु
जो
कोई
उन
का
पालन
करेगा
और
उन्हें
सिखाएगा,
वही
स्वर्ग
के
राज्य
में
महान
कहलाएगा।
20
क्योंकि
मैं
तुम
से
कहता
हूं,
कि
यदि
तुम्हारी
धामिर्कता
शास्त्रियों
और
फरीसियों
की
धामिर्कता
से
बढ़कर
न
हो,
तो
तुम
स्वर्ग
के
राज्य
में
कभी
प्रवेश
करने
न
पाओगे॥
21
तुम
सुन
चुके
हो,
कि
पूर्वकाल
के
लोगों
से
कहा
गया
था
कि
हत्या
न
करना,
और
जो
कोई
हत्या
करेगा
वह
कचहरी
में
दण्ड
के
योग्य
होगा।
22
परन्तु
मैं
तुम
से
यह
कहता
हूं,
कि
जो
कोई
अपने
भाई
पर
क्रोध
करेगा,
वह
कचहरी
में
दण्ड
के
योग्य
होगा:
और
जो
कोई
अपने
भाई
को
निकम्मा
कहेगा
वह
महासभा
में
दण्ड
के
योग्य
होगा;
और
जो
कोई
कहे
“अरे
मूर्ख”
वह
नरक
की
आग
के
दण्ड
के
योग्य
होगा।
23
इसलिये
यदि
तू
अपनी
भेंट
वेदी
पर
लाए,
और
वहां
तू
स्मरण
करे,
कि
मेरे
भाई
के
मन
में
मेरी
ओर
से
कुछ
विरोध
है,
तो
अपनी
भेंट
वहीं
वेदी
के
साम्हने
छोड़
दे।
24
और
जाकर
पहिले
अपने
भाई
से
मेल
मिलाप
कर;
तब
आकर
अपनी
भेंट
चढ़ा।
25
जब
तक
तू
अपने
मुद्दई
के
साथ
मार्ग
ही
में
हैं,
उस
से
झटपट
मेल
मिलाप
कर
ले
कहीं
ऐसा
न
हो
कि
मुद्दई
तुझे
हाकिम
को
सौंपे,
और
हाकिम
तुझे
सिपाही
को
सौंप
दे
और
तू
बन्दीगृह
में
डाल
दिया
जाए।
26
मैं
तुम
से
सच
कहता
हूं
कि
जब
तक
तू
कौड़ी
कौड़ी
भर
न
दे
तब
तक
वहां
से
छूटने
न
पाएगा॥
27
तुम
सुन
चुके
हो
कि
कहा
गया
था,
कि
व्यभिचार
न
करना।
28
परन्तु
मैं
तुम
से
यह
कहता
हूं,
कि
जो
कोई
किसी
स्त्री
पर
कुदृष्टि
डाले
वह
अपने
मन
में
उस
से
व्यभिचार
कर
चुका।
29
यदि
तेरी
दाहिनी
आंख
तुझे
ठोकर
खिलाए,
तो
उसे
निकालकर
अपने
पास
से
फेंक
दे;
क्योंकि
तेरे
लिये
यही
भला
है
कि
तेरे
अंगों
में
से
एक
नाश
हो
जाए
और
तेरा
सारा
शरीर
नरक
में
न
डाला
जाए।
30
और
यदि
तेरा
दाहिना
हाथ
तुझे
ठोकर
खिलाए,
तो
उस
को
काटकर
अपने
पास
से
फेंक
दे,
क्योंकि
तेरे
लिये
यही
भला
है,
कि
तेरे
अंगों
में
से
एक
नाश
हो
जाए
और
तेरा
सारा
शरीर
नरक
में
न
डाला
जाए॥
31
यह
भी
कहा
गया
था,
कि
जो
कोई
अपनी
पत्नी
को
त्याग
दे
तो
उसे
त्यागपत्र
दे।
32
परन्तु
मैं
तुम
से
यह
कहता
हूं
कि
जो
कोई
अपनी
पत्नी
को
व्यभिचार
के
सिवा
किसी
और
कारण
से
छोड़
दे,
तो
वह
उस
से
व्यभिचार
करवाता
है;
और
जो
कोई
उस
त्यागी
हुई
से
ब्याह
करे,
वह
व्यभिचार
करता
है॥
33
फिर
तुम
सुन
चुके
हो,
कि
पूर्वकाल
के
लोगों
से
कहा
गया
था
कि
झूठी
शपथ
न
खाना,
परन्तु
प्रभु
के
लिये
अपनी
शपथ
को
पूरी
करना।
34
परन्तु
मैं
तुम
से
यह
कहता
हूं,
कि
कभी
शपथ
न
खाना;
न
तो
स्वर्ग
की,
क्योंकि
वह
परमेश्वर
का
सिंहासन
है।
35
न
धरती
की,
क्योंकि
वह
उसके
पांवों
की
चौकी
है;
न
यरूशलेम
की,
क्योंकि
वह
महाराजा
का
नगर
है।
36
अपने
सिर
की
भी
शपथ
न
खाना
क्योंकि
तू
एक
बाल
को
भी
न
उजला,
न
काला
कर
सकता
है।
37
परन्तु
तुम्हारी
बात
हां
की
हां,
या
नहीं
की
नहीं
हो;
क्योंकि
जो
कुछ
इस
से
अधिक
होता
है
वह
बुराई
से
होता
है॥
38
तुम
सुन
चुके
हो,
कि
कहा
गया
था,
कि
आंख
के
बदले
आंख,
और
दांत
के
बदले
दांत।
39
परन्तु
मैं
तुम
से
यह
कहता
हूं,
कि
बुरे
का
सामना
न
करना;
परन्तु
जो
कोई
तेरे
दाहिने
गाल
पर
थप्पड़
मारे,
उस
की
ओर
दूसरा
भी
फेर
दे।
40
और
यदि
कोई
तुझ
पर
नालिश
करके
तेरा
कुरता
लेना
चाहे,
तो
उसे
दोहर
भी
ले
लेने
दे।
41
और
जो
कोई
तुझे
कोस
भर
बेगार
में
ले
जाए
तो
उसके
साथ
दो
कोस
चला
जा।
42
जो
कोई
तुझ
से
मांगे,
उसे
दे;
और
जो
तुझ
से
उधार
लेना
चाहे,
उस
से
मुंह
न
मोड़॥
43
तुम
सुन
चुके
हो,
कि
कहा
गया
था;
कि
अपने
पड़ोसी
से
प्रेम
रखना,
और
अपने
बैरी
से
बैर।
44
परन्तु
मैं
तुम
से
यह
कहता
हूं,
कि
अपने
बैरियों
से
प्रेम
रखो
और
अपने
सताने
वालों
के
लिये
प्रार्थना
करो।
45
जिस
से
तुम
अपने
स्वर्गीय
पिता
की
सन्तान
ठहरोगे
क्योंकि
वह
भलों
और
बुरों
दोनो
पर
अपना
सूर्य
उदय
करता
है,
और
धमिर्यों
और
अधमिर्यों
दोनों
पर
मेंह
बरसाता
है।
46
क्योंकि
यदि
तुम
अपने
प्रेम
रखने
वालों
ही
से
प्रेम
रखो,
तो
तुम्हारे
लिये
क्या
फल
होगा?
क्या
महसूल
लेने
वाले
भी
ऐसा
ही
नहीं
करते?
47
और
यदि
तुम
केवल
अपने
भाइयों
ही
को
नमस्कार
करो,
तो
कौन
सा
बड़ा
काम
करते
हो?
क्या
अन्यजाति
भी
ऐसा
नहीं
करते?
48
इसलिये
चाहिये
कि
तुम
सिद्ध
बनो,
जैसा
तुम्हारा
स्वर्गीय
पिता
सिद्ध
है॥
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