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तीतुस
फिलेमोन
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मरकुस 9:6
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मरकुस 9:6 (09 30 am)
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मरकुस 9:6
1
और
उस
ने
उन
से
कहा;
मैं
तुम
से
सच
कहता
हूं,
कि
जो
यहां
खड़े
हैं,
उन
में
से
कोई
कोई
ऐसे
हैं,
कि
जब
तक
परमेश्वर
के
राज्य
को
सामर्थ
सहित
आता
हुआ
न
देख
लें,
तब
तक
मृत्यु
का
स्वाद
कदापि
न
चखेंगे॥
2
छ:
दिन
के
बाद
यीशु
ने
पतरस
और
याकूब
और
यूहन्ना
को
साथ
लिया,
और
एकान्त
में
किसी
ऊंचे
पहाड़
पर
ले
गया;
और
उन
के
साम्हने
उसका
रूप
बदल
गया।
3
और
उसका
वस्त्र
ऐसा
चमकने
लगा
और
यहां
तक
अति
उज्ज़वल
हुआ,
कि
पृथ्वी
पर
कोई
धोबी
भी
वैसा
उज्ज़वल
नहीं
कर
सकता।
4
और
उन्हें
मूसा
के
साथ
एलिय्याह
दिखाई
दिया;
और
वे
यीशु
के
साथ
बातें
करते
थे।
5
इस
पर
पतरस
ने
यीशु
से
कहा;
हे
रब्बी,
हमारा
यहां
रहना
अच्छा
है:
इसलिये
हम
तीन
मण्डप
बनाएं;
एक
तेरे
लिये,
एक
मूसा
के
लिये,
और
एक
एलिय्याह
के
लिये।
6
क्योंकि
वह
न
जानता
था,
कि
क्या
उत्तर
दे;
इसलिये
कि
वे
बहुत
डर
गए
थे।
7
तब
एक
बादल
ने
उन्हें
छा
लिया,
और
उस
बादल
में
से
यह
शब्द
निकला,
कि
यह
मेरा
प्रिय
पुत्र
है;
उस
की
सुनो।
8
तब
उन्होंने
एकाएक
चारों
ओर
दृष्टि
की,
और
यीशु
को
छोड़
अपने
साथ
और
किसी
को
न
देखा॥
9
पहाड़
से
उतरते
हुए,
उस
ने
उन्हें
आज्ञा
दी,
कि
जब
तक
मनुष्य
का
पुत्र
मरे
हुओं
में
से
जी
न
उठे,
तब
तक
जो
कुछ
तुम
ने
देखा
है
वह
किसी
से
न
कहना।
10
उन्होंने
इस
बात
को
स्मरण
रखा;
और
आपस
में
वाद-विवाद
करने
लगे,
कि
मरे
हुओं
में
से
जी
उठने
का
क्या
अर्थ
है?
11
और
उन्होंने
उस
से
पूछा,
शास्त्री
क्यों
कहते
हैं,
कि
एलिय्याह
का
पहिले
आना
अवश्य
है?
12
उस
ने
उन्हें
उत्तर
दिया
कि
एलिय्याह
सचमुच
पहिले
आकर
सब
कुछ
सुधारेगा,
परन्तु
मनुष्य
के
पुत्र
के
विषय
में
यह
क्यों
लिखा
है,
कि
वह
बहुत
दुख
उठाएगा,
और
तुच्छ
गिना
जाएगा?
13
परन्तु
मैं
तुम
से
कहता
हूं,
कि
एलिय्याह
तो
आ
चुका,
और
जैसा
उसके
विषय
में
लिखा
है,
उन्होंने
जो
कुछ
चाहा
उसके
साथ
किया॥
14
और
जब
वह
चेलों
के
पास
आया,
तो
देखा
कि
उन
के
चारों
ओर
बड़ी
भीड़
लगी
है
और
शास्त्री
उन
के
साथ
विवाद
कर
रहें
हैं।
15
और
उसे
देखते
ही
सब
बहुत
ही
आश्चर्य
करने
लगे,
और
उस
की
ओर
दौड़कर
उसे
नमस्कार
किया।
16
उस
ने
उन
से
पूछा;
तुम
इन
से
क्या
विवाद
कर
रहे
हो?
17
भीड़
में
से
एक
ने
उसे
उत्तर
दिया,
कि
हे
गुरू,
मैं
अपने
पुत्र
को,
जिस
में
गूंगी
आत्मा
समाई
है,
तेरे
पास
लाया
था।
18
जहां
कहीं
वह
उसे
पकड़ती
है,
वहीं
पटक
देती
है:
और
वह
मुंह
में
फेन
भर
लाता,
और
दांत
पीसता,
और
सूखता
जाता
है:
और
मैं
ने
चेलों
से
कहा
कि
वे
उसे
निकाल
दें
परन्तु
वह
निकाल
न
सके।
19
यह
सुनकर
उस
ने
उन
से
उत्तर
देके
कहा:
कि
हे
अविश्वासी
लोगों,
मैं
कब
तक
तुम्हारे
साथ
रहूंगा
और
कब
तक
तुम्हारी
सहूंगा?
उसे
मेरे
पास
लाओ।
20
तब
वे
उसे
उसके
पास
ले
आए:
और
जब
उस
ने
उसे
देखा,
तो
उस
आत्मा
ने
तुरन्त
उसे
मरोड़ा;
और
वह
भूमि
पर
गिरा,
और
मुंह
से
फेन
बहाते
हुए
लोटने
लगा।
21
उस
ने
उसके
पिता
से
पूछा;
इस
की
यह
दशा
कब
से
है?
22
उस
ने
कहा,
बचपन
से:
उस
ने
इसे
नाश
करने
के
लिये
कभी
आग
और
कभी
पानी
में
गिराया;
परन्तु
यदि
तू
कुछ
कर
सके,
तो
हम
पर
तरस
खाकर
हमारा
उपकार
कर।
23
यीशु
ने
उस
से
कहा;
यदि
तू
कर
सकता
है;
यह
क्या
बता
है
विश्वास
करने
वाले
के
लिये
सब
कुछ
हो
सकता
है।
24
बालक
के
पिता
ने
तुरन्त
गिड़िगड़ाकर
कहा;
हे
प्रभु,
मैं
विश्वास
करता
हूं,
मेरे
अविश्वास
का
उपाय
कर।
25
जब
यीशु
ने
देखा,
कि
लोग
दौड़कर
भीड़
लगा
रहे
हैं,
तो
उस
ने
अशुद्ध
आत्मा
को
यह
कहकर
डांटा,
कि
हे
गूंगी
और
बहिरी
आत्मा,
मैं
तुझे
आज्ञा
देता
हूं,
उस
में
से
निकल
आ,
और
उस
में
फिर
कभी
प्रवेश
न
कर।
26
तब
वह
चिल्लाकर,
और
उसे
बहुत
मरोड़
कर,
निकल
आई;
और
बालक
मरा
हुआ
सा
हो
गया,
यहां
तक
कि
बहुत
लोग
कहने
लगे,
कि
वह
मर
गया।
27
परन्तु
यीशु
ने
उसका
हाथ
पकड़
के
उसे
उठाया,
और
वह
खड़ा
हो
गया।
28
जब
वह
घर
में
आया,
तो
उसके
चेलों
ने
एकान्त
में
उस
से
पूछा,
हम
उसे
क्यों
न
निकाल
सके?
29
उस
ने
उन
से
कहा,
कि
यह
जाति
बिना
प्रार्थना
किसी
और
उपाय
से
निकल
नहीं
सकती॥
30
फिर
वे
वहां
से
चले,
और
गलील
में
होकर
जा
रहे
थे,
और
वह
नहीं
चाहता
था
कि
कोई
जाने॥
31
क्योंकि
वह
अपने
चेलों
को
उपदेश
देता
और
उन
से
कहता
था,
कि
मनुष्य
का
पुत्र
मनुष्यों
के
हाथ
में
पकड़वाया
जाएगा,
और
वे
उसे
मार
डालेंगे,
और
वह
मरने
के
तीन
दिन
बाद
जी
उठेगा।
32
पर
यह
बात
उन
की
समझ
में
नहीं
आई,
और
वे
उस
से
पूछने
से
डरते
थे॥
33
फिर
वे
कफरनहूम
में
आए;
और
घर
में
आकर
उस
ने
उन
से
पूछा
कि
रास्ते
में
तुम
किस
बात
पर
विवाद
करते
थे?
34
वे
चुप
रहे,
क्योंकि
मार्ग
में
उन्होंने
आपस
में
यह
वाद-विवाद
किया
था,
कि
हम
में
से
बड़ा
कौन
है?
35
तब
उस
ने
बैठकर
बारहों
को
बुलाया,
और
उन
से
कहा,
यदि
कोई
बड़ा
होना
चाहे,
तो
सब
से
छोटा
और
सब
का
सेवक
बने।
36
और
उस
ने
एक
बालक
को
लेकर
उन
के
बीच
में
खड़ा
किया,
और
उसे
गोद
में
लेकर
उन
से
कहा।
37
जो
कोई
मेरे
नाम
से
ऐसे
बालकों
में
से
किसी
एक
को
भी
ग्रहण
करता
है,
वह
मुझे
ग्रहण
करता
है;
और
जो
कोई
मुझे
ग्रहण
करता,
वह
मुझे
नहीं,
वरन
मेरे
भेजने
वाले
को
ग्रहण
करता
है॥
38
तब
यूहन्ना
ने
उस
से
कहा,
हे
गुरू
हम
ने
एक
मनुष्य
को
तेरे
नाम
से
दुष्टात्माओं
को
निकालते
देखा
और
हम
उसे
मना
करने
लगे,
क्योंकि
वह
हमारे
पीछे
नहीं
हो
लेता
था।
39
यीशु
ने
कहा,
उस
को
मत
मना
करो;
क्योंकि
ऐसा
कोई
नहीं
जो
मेरे
नाम
से
सामर्थ
का
काम
करे,
और
जल्दी
से
मुझे
बुरा
कह
सके।
40
क्योंकि
जो
हमारे
विरोध
में
नहीं,
वह
हमारी
ओर
है।
41
जो
कोई
एक
कटोरा
पानी
तुम्हें
इसलिये
पिलाए
कि
तुम
मसीह
के
हो
तो
मैं
तुम
से
सच
कहता
हूं
कि
वह
अपना
प्रतिफल
किसी
रीति
से
न
खोएगा।
42
पर
जो
कोई
इन
छोटों
में
से
जो
मुझ
पर
विश्वास
करते
हैं,
किसी
को
ठोकर
खिलाए
तो
उसके
लिये
भला
यह
है
कि
एक
बड़ी
चक्की
का
पाट
उसके
गले
में
लटकाया
जाए
और
वह
समुद्र
में
डाल
दिया
जाए।
43
यदि
तेरा
हाथ
तुझे
ठोकर
खिलाए
तो
उसे
काट
डाल
टुण्डा
होकर
जीवन
में
प्रवेश
करना,
तेरे
लिये
इस
से
भला
है
कि
दो
हाथ
रहते
हुए
नरक
के
बीच
उस
आग
में
डाला
जाए
जो
कभी
बुझने
की
नहीं।
44
.जहां
उन
का
कीड़ा
नहीं
मरता
और
आग
नहीं
बुझती।
45
और
यदि
तेरा
पांव
तुझे
ठोकर
खिलाए
तो
उसे
काट
डाल।
46
लंगड़ा
होकर
जीवन
में
प्रवेश
करना
तेरे
लिये
इस
से
भला
है,
कि
दो
पांव
रहते
हुए
नरक
में
डाला
जाए।
47
और
यदि
तेरी
आंख
तुझे
ठोकर
खिलाए
तो
उसे
निकाल
डाल,
काना
होकर
परमेश्वर
के
राज्य
में
प्रवेश
करना
तेरे
लिये
इस
से
भला
है,
कि
दो
आंख
रहते
हुए
तू
नरक
में
डाला
जाए।
48
जहां
उन
का
कीड़ा
नहीं
मरता
और
आग
नहीं
बुझती।
49
क्योंकि
हर
एक
जन
आग
से
नमकीन
किया
जाएगा।
50
नमक
अच्छा
है,पर
यदि
नमक
की
नमकीनी
जाती
रहे,
तो
उसे
किस
से
स्वादित
करोगे?
अपने
में
नमक
रखो,
और
आपस
में
मेल
मिलाप
से
रहो॥
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