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लूका
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गलातियों
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1 तीमुथियुस
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तीतुस
फिलेमोन
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प्रेरितों के काम 25:7
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1 शमूएल
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प्रेरितों के काम 25:7 (06 56 am)
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प्रेरितों के काम 25:7
1
फेस्तुस
उस
प्रान्त
में
पहुंचकर
तीन
दिन
के
बाद
कैसरिया
से
यरूशलेम
को
गया।
2
तब
महायाजकों
ने,
और
यहूदियों
के
बड़े
लोगों
ने,
उसके
साम्हने
पौलुस
की
नालिश
की।
3
और
उसे
से
बिनती
करके
उसके
विरोध
में
यह
वर
चाहा,
कि
वह
उसे
यरूशलेम
में
बुलवाए,
क्योंकि
वे
उसे
रास्ते
ही
में
मार
डालने
की
घात
लगाए
हुए
थे।
4
फेस्तुस
ने
उत्तर
दिया,
कि
पौलुस
कैसरिया
में
पहरे
में
है,
और
मैं
आप
जल्द
वहां
आऊंगा।
5
फिर
कहा,
तुम
से
जो
अधिकार
रखते
हैं,
वे
साथ
चलें,
और
यदि
इस
मनुष्य
ने
कुछ
अनुचित
काम
किया
है,
तो
उस
पर
दोष
लगाएं॥
6
और
उन
के
बीच
कोई
आठ
दस
दिन
रहकर
वह
कैसरिया
गया:
और
दूसरे
दिन
न्याय
आसन
पर
बैठकर
पौलुस
के
लाने
की
आज्ञा
दी।
7
जब
वह
आया,
तो
जो
यहूदी
यरूशलेम
से
आए
थे,
उन्होंने
आस
पास
खड़े
होकर
उस
पर
बहुतेरे
भारी
दोष
लगाए,
जिन
का
प्रमाण
वे
नहीं
दे
सकते
थे।
8
परन्तु
पौलुस
ने
उत्तर
दिया,
कि
मैं
ने
न
तो
यहूदियों
की
व्यवस्था
का
और
न
मन्दिर
का,
और
न
कैसर
का
कुछ
अपराध
किया
है।
9
तब
फेस्तुस
ने
यहूदियों
को
खुश
करने
की
इच्छा
से
पौलुस
को
उत्तर
दिया,
क्या
तू
चाहता
है
कि
यरूशलेम
को
जाए;
और
वहां
मेरे
साम्हने
तेरा
यह
मुकद्दमा
तय
किया
जाए?
10
पौलुस
ने
कहा;
मैं
कैसर
के
न्याय
आसन
के
साम्हने
खड़ा
हूं:
मेरे
मुकद्दमें
का
यहीं
फैसला
होना
चाहिए:
जैसा
तू
अच्छी
तरह
जानता
है,
यहूदियों
का
मैं
ने
कुछ
अपराध
नहीं
किया।
11
यदि
अपराधी
हूं
और
मार
डाले
जाने
योग्य
कोई
काम
किया
है;
तो
मरने
से
नहीं
मुकरता;
परन्तु
जिन
बातों
का
ये
मुझ
पर
दोष
लगाते
हैं,
यदि
उन
में
से
कोई
बात
सच
न
ठहरे,
तो
कोई
मुझे
उन
के
हाथ
नहीं
सौंप
सकता:
मैं
कैसर
की
दोहाई
देता
हूं।
12
तब
फेस्तुस
ने
मन्त्रियों
की
सभा
के
साथ
बातें
करके
उत्तर
दिया,
तू
ने
कैसर
की
दोहाई
दी
है,
तू
कैसर
के
पास
जाएगा॥
13
और
कुछ
दिन
बीतने
के
बाद
अग्रिप्पा
राजा
और
बिरनीके
ने
कैसरिया
में
आकर
फेस्तुस
से
भेंट
की।
14
और
उन
के
बहुत
दिन
वहां
रहने
के
बाद
फेस्तुस
ने
पौलुस
की
कथा
राजा
को
बताई;
कि
एक
मनुष्य
है,
जिसे
फेलिक्स
बन्धुआ
छोड़
गया
है।
15
जब
मैं
यरूशलेम
में
था,
तो
महायाजक
और
यहूदियों
के
पुरनियों
ने
उस
की
नालिश
की;
और
चाहा,
कि
उस
पर
दण्ड
की
आज्ञा
दी
जाए।
16
परन्तु
मैं
ने
उन
को
उत्तर
दिया,
कि
रोमियों
की
यह
रीति
नहीं,
कि
किसी
मनुष्य
को
दण्ड
के
लिये
सौंप
दें,
जब
तक
मुद्दाअलैह
को
अपने
मुद्दइयों
के
आमने
सामने
खड़े
होकर
दोष
के
उत्तर
देने
का
अवसर
न
मिले।
17
सो
जब
वे
यहां
इकट्ठे
हुए,
तो
मैं
ने
कुछ
देर
न
की,
परन्तु
दूसरे
ही
दिन
न्याय
आसन
पर
बैठकर,
उस
मनुष्य
को
लाने
की
आज्ञा
दी।
18
जब
उसके
मुद्दई
खड़े
हुए,
तो
उन्होंने
ऐसी
बुरी
बातों
का
दोष
नहीं
लगाया,
जैसा
मैं
समझता
था।
19
परन्तु
अपने
मत
के,
और
यीशु
नाम
किसी
मनुष्य
के
विषय
में
जो
मर
गया
था,
और
पौलुस
उस
को
जीवित
बताता
था,
विवाद
करते
थे।
20
और
मैं
उलझन
में
था,
कि
इन
बातों
का
पता
कैसे
लगाऊं
इसलिये
मैं
ने
उस
से
पूछा,
क्या
तू
यरूशलेम
जाएगा,
कि
वहां
इन
बातों
का
फैसला
हो?
21
परन्तु
जब
पौलुस
ने
दोहाई
दी,
कि
मेरे
मुकद्दमें
का
फैसला
महाराजाधिराज
के
यहां
हो;
तो
मैं
ने
आज्ञा
दी,
कि
जब
तक
उसे
कैसर
के
पास
न
भेजूं,
उस
की
रखवाली
की
जाए।
22
तब
अग्रिप्पा
ने
फेस्तुस
से
कहा,
मैं
भी
उस
मनुष्य
की
सुनना
चाहता
हूं:
उस
ने
कहा,
तू
कल
सुन
लेगा॥
23
सो
दूसरे
दिन,
जब
अग्रिप्पा
और
बिरनीके
बड़ी
धूमधाम
से
आकर
पलटन
के
सरदारों
और
नगर
के
बड़े
लोगों
के
साथ
दरबार
में
पहुंचे,
तो
फेस्तुस
ने
आज्ञा
दी,
कि
वे
पौलुस
को
ले
आएं।
24
फेस्तुस
ने
कहा;
हे
महाराजा
अग्रिप्पा,
और
हे
सब
मनुष्यों
जो
यहां
हमारे
साथ
हो,
तुम
इस
मनुष्य
को
देखते
हो,
जिस
के
विषय
में
सारे
यहूदियों
ने
यरूशलेम
में
और
यहां
भी
चिल्ला
चिल्लाकर
मुझ
से
बिनती
की,
कि
इस
का
जीवित
रहना
उचित
नहीं।
25
परन्तु
मैं
ने
जान
लिया,
कि
उस
ने
ऐसा
कुछ
नहीं
किया
कि
मार
डाला
जाए;
और
जब
कि
उस
ने
आप
ही
महाराजाधिराज
की
दोहाई
दी,
तो
मैं
ने
उसे
भेजने
का
उपाय
निकाला।
26
परन्तु
मैं
ने
उसके
विषय
में
कोई
ठीक
बात
नहीं
पाई
कि
अपने
स्वामी
के
पास
लिखूं,
इसलिये
मैं
उसे
तुम्हारे
साम्हने
और
विशेष
करके
हे
महाराजा
अग्रिप्पा
तेरे
साम्हने
लाया
हूं,
कि
जांचने
के
बाद
मुझे
कुछ
लिखने
को
मिले।
27
क्योंकि
बन्धुए
को
भेजना
और
जो
दोष
उस
पर
लगाए
गए,
उन्हें
न
बताना,
मुझे
व्यर्थ
समझ
पड़ता
है॥
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