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ओबद्दाह
योना
मीका
नहूम
हबक्कूक
सपन्याह
हाग्गै
जकर्याह
मलाकी
नई टैस्टमैंट
मत्ती
मरकुस
लूका
यूहन्ना
प्रेरितों के काम
रोमियो
1 कुरिन्थियों
2 कुरिन्थियों
गलातियों
इफिसियों
फिलिप्पियों
कुलुस्सियों
1 थिस्सलुनीकियों
2 थिस्सलुनीकियों
1 तीमुथियुस
2 तीमुथियुस
तीतुस
फिलेमोन
इब्रानियों
याकूब
1 पतरस
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1 यूहन्ना
2 यूहन्ना
3 यूहन्ना
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अधिक
1 कुरिन्थियों 12
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1 शमूएल
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1 कुरिन्थियों 12:0 (11 48 pm)
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1 कुरिन्थियों 12
1
हे
भाइयों,
मैं
नहीं
चाहता
कि
तुम
आत्मिक
वरदानों
के
विषय
में
अज्ञात
रहो।
2
तुम
जानते
हो,
कि
जब
तुम
अन्यजाति
थे,
तो
गूंगी
मूरतों
के
पीछे
जैसे
चलाए
जाते
थे
वैसे
चलते
थे।
3
इसलिये
मैं
तुम्हें
चितौनी
देता
हूं
कि
जो
कोई
परमेश्वर
की
आत्मा
की
अगुआई
से
बोलता
है,
वह
नहीं
कहता
कि
यीशु
स्त्रापित
है;
और
न
कोई
पवित्र
आत्मा
के
बिना
कह
सकता
है
कि
यीशु
प्रभु
है॥
4
वरदान
तो
कई
प्रकार
के
हैं,
परन्तु
आत्मा
एक
ही
है।
5
और
सेवा
भी
कई
प्रकार
की
है,
परन्तु
प्रभु
एक
ही
है।
6
और
प्रभावशाली
कार्य
कई
प्रकार
के
हैं,
परन्तु
परमेश्वर
एक
ही
है,
जो
सब
में
हर
प्रकार
का
प्रभाव
उत्पन्न
करता
है।
7
किन्तु
सब
के
लाभ
पहुंचाने
के
लिये
हर
एक
को
आत्मा
का
प्रकाश
दिया
जाता
है।
8
क्योंकि
एक
को
आत्मा
के
द्वारा
बुद्धि
की
बातें
दी
जाती
हैं;
और
दूसरे
को
उसी
आत्मा
के
अनुसार
ज्ञान
की
बातें।
9
और
किसी
को
उसी
आत्मा
से
विश्वास;
और
किसी
को
उसी
एक
आत्मा
से
चंगा
करने
का
वरदान
दिया
जाता
है।
10
फिर
किसी
को
सामर्थ
के
काम
करने
की
शक्ति;
और
किसी
को
भविष्यद्वाणी
की;
और
किसी
को
आत्माओं
की
परख,
और
किसी
को
अनेक
प्रकार
की
भाषा;
और
किसी
को
भाषाओं
का
अर्थ
बताना।
11
परन्तु
ये
सब
प्रभावशाली
कार्य
वही
एक
आत्मा
करवाता
है,
और
जिसे
जो
चाहता
है
वह
बांट
देता
है॥
12
क्योंकि
जिस
प्रकार
देह
तो
एक
है
और
उसके
अंग
बहुत
से
हैं,
और
उस
एक
देह
के
सब
अंग,
बहुत
होने
पर
भी
सब
मिलकर
एक
ही
देह
हैं,
उसी
प्रकार
मसीह
भी
है।
13
क्योंकि
हम
सब
ने
क्या
यहूदी
हो,
क्या
युनानी,
क्या
दास,
क्या
स्वतंत्र
एक
ही
आत्मा
के
द्वारा
एक
देह
होने
के
लिये
बपतिस्मा
लिया,
और
हम
सब
को
एक
ही
आत्मा
पिलाया
गया।
14
इसलिये
कि
देह
में
एक
ही
अंग
नहीं,
परन्तु
बहुत
से
हैं।
15
यदि
पांव
कहे
कि
मैं
हाथ
नहीं,
इसलिये
देह
का
नहीं,
तो
क्या
वह
इस
कारण
देह
का
नहीं?
16
और
यदि
कान
कहे;
कि
मैं
आंख
नहीं,
इसलिये
देह
का
नहीं,
तो
क्या
वह
इस
कारण
देह
का
नहीं?
17
यदि
सारी
देह
आंख
की
होती
तो
सुनना
कहां
से
होता?
यदि
सारी
देह
कान
ही
होती
तो
सूंघना
कहां
होता?
18
परन्तु
सचमुच
परमेश्वर
ने
अंगो
को
अपनी
इच्छा
के
अनुसार
एक
एक
कर
के
देह
में
रखा
है।
19
यदि
वे
सब
एक
ही
अंग
होते,
तो
देह
कहां
होती?
20
परन्तु
अब
अंग
तो
बहुत
से
हैं,
परन्तु
देह
एक
ही
है।
21
आंख
हाथ
से
नहीं
कह
सकती,
कि
मुझे
तेरा
प्रयोजन
नहीं,
और
न
सिर
पांवों
से
कह
सकता
है,
कि
मुझे
तुम्हारा
प्रयोजन
नहीं।
22
परन्तु
देह
के
वे
अंग
जो
औरों
से
निर्बल
देख
पड़ते
हैं,
बहुत
ही
आवश्यक
हैं।
23
और
देह
के
जिन
अंगो
को
हम
आदर
के
योग्य
नहीं
समझते
हैं
उन्ही
को
हम
अधिक
आदर
देते
हैं;
और
हमारे
शोभाहीन
अंग
और
भी
बहुत
शोभायमान
हो
जाते
हैं।
24
फिर
भी
हमारे
शोभायमान
अंगो
को
इस
का
प्रयोजन
नहीं,
परन्तु
परमेश्वर
ने
देह
को
ऐसा
बना
दिया
है,
कि
जिस
अंग
को
घटी
थी
उसी
को
और
भी
बहुत
आदर
हो।
25
ताकि
देह
में
फूट
न
पड़े,
परन्तु
अंग
एक
दूसरे
की
बराबर
चिन्ता
करें।
26
इसलिये
यदि
एक
अंग
दु:ख
पाता
है,
तो
सब
अंग
उसके
साथ
दु:ख
पाते
हैं;
और
यदि
एक
अंग
की
बड़ाई
होती
है,
तो
उसके
साथ
सब
अंग
आनन्द
मनाते
हैं।
27
इसी
प्रकार
तुम
सब
मिल
कर
मसीह
की
देह
हो,
और
अलग
अलग
उसके
अंग
हो।
28
और
परमेश्वर
ने
कलीसिया
में
अलग
अलग
व्यक्ति
नियुक्त
किए
हैं;
प्रथम
प्रेरित,
दूसरे
भविष्यद्वक्ता,
तीसरे
शिक्षक,
फिर
सामर्थ
के
काम
करने
वाले,
फिर
चंगा
करने
वाले,
और
उपकार
करने
वाले,
और
प्रधान,
और
नाना
प्रकार
की
भाषा
बोलने
वाले।
29
क्या
सब
प्रेरित
हैं?
क्या
सब
भविष्यद्वक्ता
हैं?
क्या
सब
उपदेशक
हैं?
क्या
सब
सामर्थ
के
काम
करने
वाले
हैं?
30
क्या
सब
को
चंगा
करने
का
वरदान
मिला
है?
क्या
सब
नाना
प्रकार
की
भाषा
बोलते
हैं?
31
क्या
सब
अनुवाद
करते
हैं?
तुम
बड़े
से
बड़े
वरदानों
की
धुन
में
रहो!
परन्तु
मैं
तुम्हें
और
भी
सब
से
उत्तम
मार्ग
बताता
हूं॥
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