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1 कुरिन्थियों 7:0 (11 43 pm)
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1 कुरिन्थियों 7
1
उन
बातों
के
विषय
में
जो
तुम
ने
लिखीं,
यह
अच्छा
है,
कि
पुरूष
स्त्री
को
न
छुए।
2
परन्तु
व्यभिचार
के
डर
से
हर
एक
पुरूष
की
पत्नी,
और
हर
एक
स्त्री
का
पति
हो।
3
पति
अपनी
पत्नी
का
हक
पूरा
करे;
और
वैसे
ही
पत्नी
भी
अपने
पति
का।
4
पत्नी
को
अपनी
देह
पर
अधिकार
नहीं
पर
उसके
पति
का
अधिकार
है;
वैसे
ही
पति
को
भी
अपनी
देह
पर
अधिकार
नहीं,
परन्तु
पत्नी
को।
5
तुम
एक
दूसरे
से
अलग
न
रहो;
परन्तु
केवल
कुछ
समय
तक
आपस
की
सम्मति
से
कि
प्रार्थना
के
लिये
अवकाश
मिले,
और
फिर
एक
साथ
रहो,
ऐसा
न
हो,
कि
तुम्हारे
असंयम
के
कारण
शैतान
तुम्हें
परखे।
6
परन्तु
मैं
जो
यह
कहता
हूं
वह
अनुमति
है
न
कि
आज्ञा।
7
मैं
यह
चाहता
हूं,
कि
जैसा
मैं
हूं,
वैसा
ही
सब
मनुष्य
हों;
परन्तु
हर
एक
को
परमेश्वर
की
ओर
से
विशेष
विशेष
वरदान
मिले
हैं;
किसी
को
किसी
प्रकार
का,
और
किसी
को
किसी
और
प्रकार
का॥
8
परन्तु
मैं
अविवाहितों
और
विधवाओं
के
विषय
में
कहता
हूं,
कि
उन
के
लिये
ऐसा
ही
रहना
अच्छा
है,
जैसा
मैं
हूं।
9
परन्तु
यदि
वे
संयम
न
कर
सकें,
तो
विवाह
करें;
क्योंकि
विवाह
करना
कामातुर
रहने
से
भला
है।
10
जिन
का
ब्याह
हो
गया
है,
उन
को
मैं
नहीं,
वरन
प्रभु
आज्ञा
देता
है,
कि
पत्नी
अपने
पति
से
अलग
न
हो।
11
(और
यदि
अलग
भी
हो
जाए,
तो
बिन
दूसरा
ब्याह
किए
रहे;
या
अपने
पति
से
फिर
मेल
कर
ले)
और
न
पति
अपनी
पत्नी
को
छोड़े।
12
दूसरें
से
प्रभु
नहीं,
परन्तु
मैं
ही
कहता
हूं,
यदि
किसी
भाई
की
पत्नी
विश्वास
न
रखती
हो,
और
उसके
साथ
रहने
से
प्रसन्न
हो,
तो
वह
उसे
न
छोड़े।
13
और
जिस
स्त्री
का
पति
विश्वास
न
रखता
हो,
और
उसके
साथ
रहने
से
प्रसन्न
हो;
वह
पति
को
न
छोड़े।
14
क्योंकि
ऐसा
पति
जो
विश्वास
न
रखता
हो,
वह
पत्नी
के
कारण
पवित्र
ठहरता
है,
और
ऐसी
पत्नी
जो
विश्वास
नहीं
रखती,
पति
के
कारण
पवित्र
ठहरती
है;
नहीं
तो
तुम्हारे
लड़केबाले
अशुद्ध
होते,
परन्तु
अब
तो
पवित्र
हैं।
15
परन्तु
जो
पुरूष
विश्वास
नहीं
रखता,
यदि
वह
अलग
हो,
तो
अलग
होने
दो,
ऐसी
दशा
में
कोई
भाई
या
बहिन
बन्धन
में
नहीं;
परन्तु
परमेश्वर
ने
तो
हमें
मेल
मिलाप
के
लिये
बुलाया
है।
16
क्योंकि
हे
स्त्री,
तू
क्या
जानती
है,
कि
तू
अपने
पति
का
उद्धार
करा
ले
और
हे
पुरूष,
तू
क्या
जानता
है
कि
तू
अपनी
पत्नी
का
उद्धार
करा
ले?
17
पर
जैसा
प्रभु
ने
हर
एक
को
बांटा
है,
और
परमेश्वर
ने
हर
एक
को
बुलाया
है;
वैसा
ही
वह
चले:
और
मैं
सब
कलीसियाओं
में
ऐसा
ही
ठहराता
हूं।
18
जो
खतना
किया
हुआ
बुलाया
गया
हो,
वह
खतनारिहत
न
बने:
जो
खतनारिहत
बुलाया
गया
हो,
वह
खतना
न
कराए।
19
न
खतना
कुछ
है,
और
न
खतनारिहत
परन्तु
परमेश्वर
की
आज्ञाओं
को
मानना
ही
सब
कुछ
है।
20
हर
एक
जन
जिस
दशा
में
बुलाया
गया
हो,
उसी
में
रहे।
21
यदि
तू
दास
की
दशा
में
बुलाया
गया
हो
तो
चिन्ता
न
कर;
परन्तु
यदि
तू
स्वतंत्र
हो
सके,
तो
ऐसा
ही
काम
कर।
22
क्योंकि
जो
दास
की
दशा
में
प्रभु
में
बुलाया
गया
है,
वह
प्रभु
का
स्वतंत्र
किया
हुआ
है:
और
वैसे
ही
जो
स्वतंत्रता
की
दशा
में
बुलाया
गया
है,
वह
मसीह
का
दास
है।
23
तुम
दाम
देकर
मोल
लिये
गए
हो,
मनुष्यों
के
दास
न
बनो।
24
हे
भाइयो,
जो
कोई
जिस
दशा
में
बुलाया
गया
हो,
वह
उसी
में
परमेश्वर
के
साथ
रहे॥
25
कुंवारियों
के
विषय
में
प्रभु
की
कोई
आज्ञा
मुझे
नहीं
मिली,
परन्तु
विश्वासयोग्य
होने
के
लिये
जैसी
दया
प्रभु
ने
मुझ
पर
की
है,
उसी
के
अनुसार
सम्मति
देता
हूं।
26
सो
मेरी
समझ
में
यह
अच्छा
है,
कि
आजकल
क्लेश
के
कारण
मनुष्य
जैसा
है,
वैसा
ही
रहे।
27
यदि
तेरे
पत्नी
है,
तो
उस
से
अलग
होने
का
यत्न
न
कर:
और
यदि
तेरे
पत्नी
नहीं,
तो
पत्नी
की
खोज
न
कर:
28
परन्तु
यदि
तू
ब्याह
भी
करे,
तो
पाप
नहीं;
और
यदि
कुंवारी
ब्याही
जाए
तो
कोई
पाप
नहीं;
परन्तु
ऐसों
को
शारीरिक
दुख
होगा,
और
मैं
बचाना
चाहता
हूं।
29
हे
भाइयो,
मैं
यह
कहता
हूं,
कि
समय
कम
किया
गया
है,
इसलिये
चाहिए
कि
जिन
के
पत्नी
हों,
वे
ऐसे
हों
मानो
उन
के
पत्नी
नहीं।
30
और
रोने
वाले
ऐसे
हों,
मानो
रोते
नहीं;
और
आनन्द
करने
वाले
ऐसे
हों,
मानो
आनन्द
नहीं
करते;
और
मोल
लेने
वाले
ऐसे
हों,
कि
मानो
उन
के
पास
कुछ
है
नहीं।
31
और
इस
संसार
के
बरतने
वाले
ऐसे
हों,
कि
संसार
ही
के
न
हो
लें;
क्योंकि
इस
संसार
की
रीति
और
व्यवहार
बदलते
जाते
हैं।
32
सो
मैं
यह
चाहता
हूं,
कि
तुम्हें
चिन्ता
न
हो:
अविवाहित
पुरूष
प्रभु
की
बातों
की
चिन्ता
में
रहता
है,
कि
प्रभु
को
क्योंकर
प्रसन्न
रखे।
33
परन्तु
विवाहित
मनुष्य
संसार
की
बातों
की
चिन्ता
में
रहता
है,
कि
अपनी
पत्नी
को
किस
रीति
से
प्रसन्न
रखे।
34
विवाहिता
और
अविवाहिता
में
भी
भेद
है:
अविवाहिता
प्रभु
की
चिन्ता
में
रहती
है,
कि
वह
देह
और
आत्मा
दोनों
में
पवित्र
हो,
परन्तु
विवाहिता
संसार
की
चिन्ता
में
रहती
है,
कि
अपने
पति
को
प्रसन्न
रखे।
35
यह
बात
तुम्हारे
ही
लाभ
के
लिये
कहता
हूं,
न
कि
तुम्हें
फंसाने
के
लिये,
वरन
इसलिये
कि
जैसा
सोहता
है,
वैसा
ही
किया
जाए;
कि
तुम
एक
चित्त
होकर
प्रभु
की
सेवा
में
लगे
रहो।
36
और
यदि
कोई
यह
समझे,
कि
मैं
अपनी
उस
कुंवारी
का
हक
मार
रहा
हूं,
जिस
की
जवानी
ढल
चली
है,
और
प्रयोजन
भी
होए,
तो
जैसा
चाहे,
वैसा
करे,
इस
में
पाप
नहीं,
वह
उसका
ब्याह
होने
दे।
37
परन्तु
जो
मन
में
दृढ़
रहता
है,
और
उस
को
प्रयोजन
न
हो,
वरन
अपनी
इच्छा
पूरी
करने
में
अधिकार
रखता
हो,
और
अपने
मन
में
यह
बात
ठान
ली
हो,
कि
मैं
अपनी
कुंवारी
लड़की
को
बिन
ब्याही
रखूंगा,
वह
अच्छा
करता
है।
38
सो
जो
अपनी
कुंवारी
का
ब्याह
कर
देता
है,
वह
अच्छा
करता
है
और
जो
ब्याह
नहीं
कर
देता,
वह
और
भी
अच्छा
करता
है।
39
जब
तक
किसी
स्त्री
का
पति
जीवित
रहता
है,
तब
तक
वह
उस
से
बन्धी
हुई
है,
परन्तु
जब
उसका
पति
मर
जाए,
तो
जिस
से
चाहे
विवाह
कर
सकती
है,
परन्तु
केवल
प्रभु
में।
40
परन्तु
जेसी
है
यदि
वैसी
ही
रहे,
तो
मेरे
विचार
में
और
भी
धन्य
है,
और
मैं
समझता
हूं,
कि
परमेश्वर
का
आत्मा
मुझ
में
भी
है॥
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