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लूका
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गलातियों
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तीतुस
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व्यवस्थाविवरण 11:31
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व्यवस्थाविवरण 11:31 (08 47 am)
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व्यवस्थाविवरण 11:31
1
इसलिये
तू
अपने
परमेश्वर
यहोवा
से
अत्यन्त
प्रेम
रखना,
और
जो
कुछ
उसने
तुझे
सौंपा
है
उसका,
अर्थात
उसी
विधियों,
नियमों,
और
आज्ञाओं
का
नित्य
पालन
करना।
2
और
तुम
आज
यह
सोच
समझ
लो
(क्योंकि
मैं
तो
तुम्हारे
बाल-बच्चों
से
नहीं
कहता,)
जिन्होंने
न
तो
कुछ
देखा
और
न
जाना
है
कि
तुम्हारे
परमेश्वर
यहोवा
ने
क्या
क्या
ताड़ना
की,
और
कैसी
महिमा,
और
बलवन्त
हाथ,
और
बड़ाई
हुई
भुजा
दिखाई,
3
और
मिस्र
में
वहां
के
राजा
फिरौन
को
कैसे
कैसे
चिन्ह
दिखाए,
और
उसके
सारे
देश
में
कैसे
कैसे
चमत्कार
के
काम
किए;
4
और
उसने
मिस्र
की
सेना
के
घोड़ों
और
रथों
से
क्या
किया,
अर्थात
जब
वे
तुम्हारा
पीछा
कर
रहे
थे
तब
उसने
उन
को
लाल
समुद्र
में
डुबोकर
किस
प्रकार
नष्ट
कर
डाला,
कि
आज
तक
उनका
पता
नहीं;
5
और
तुम्हारे
इस
स्थान
में
पहुंचने
तक
उसने
जंगल
में
तुम
से
क्या
क्या
किया;
6
और
उसने
रूबेनी
एलीआब
के
पुत्र
दातान
और
अबीराम
से
क्या
क्या
किया;
अर्थात
पृथ्वी
ने
अपना
मुंह
पसार
के
उन
को
घरानों,
और
डेरों,
और
सब
अनुचरों
समेत
सब
इस्राएलियों
के
देखते
देखते
कैसे
निगल
लिया;
7
परन्तु
यहोवा
के
इन
सब
बड़े
बड़े
कामों
को
तुम
ने
अपनी
आंखों
से
देखा
है।
8
इस
कारण
जितनी
आज्ञाएं
मैं
आज
तुम्हें
सुनाता
हूं
उन
सभों
को
माना
करना,
इसलिये
कि
तुम
सामर्थी
हो
कर
उस
देश
में
जिसके
अधिकारी
होने
के
लिये
तुम
पार
जा
रहे
हो
प्रवेश
करके
उसके
अधिकारी
हो
जाओ,
9
और
उस
देश
में
बहुत
दिन
रहने
पाओ,
जिसे
तुम्हें
और
तुम्हारे
वंश
को
देने
की
शपथ
यहोवा
ने
तुम्हारे
पूर्वजों
से
खाई
थी,
और
उस
में
दूध
और
मधु
की
धाराएं
बहती
हैं।
10
देखो,
जिस
देश
के
अधिकारी
होने
को
तुम
जा
रहे
हो
वह
मिस्र
देश
के
समान
नहीं
है,
जहां
से
निकलकर
आए
हो,
जहां
तुम
बीज
बोते
थे
और
हरे
साग
के
खेत
की
रीति
के
अनुसार
अपने
पांव
की
नलियां
बनाकर
सींचते
थे;
11
परन्तु
जिस
देश
के
अधिकारी
होने
को
तुम
पार
जाने
पर
हो
वह
पहाड़ों
और
तराईयों
का
देश
है,
और
आकाश
की
वर्षा
के
जल
से
सिंचता
है;
12
वह
ऐसा
देश
है
जिसकी
तेरे
परमेश्वर
यहोवा
को
सुधि
रहती
है;
और
वर्ष
के
आदि
से
ले
कर
अन्त
तक
तेरे
परमेश्वर
यहोवा
की
दृष्टि
उस
पर
निरन्तर
लगी
रहती
है॥
13
और
यदि
तुम
मेरी
आज्ञाओं
को
जो
आज
मैं
तुम्हें
सुनाता
हूं
ध्यान
से
सुनकर,
अपने
सम्पूर्ण
मन
और
सारे
प्राण
के
साथ,
अपने
परमेश्वर
यहोवा
से
प्रेम
रखो
और
उसकी
सेवा
करते
रहो,
14
तो
मैं
तुम्हारे
देश
में
बरसात
के
आदि
और
अन्त
दोनों
समयों
की
वर्षा
को
अपने
अपने
समय
पर
बरसाऊंगा,
जिस
से
तू
अपना
अन्न,
नया
दाखमधु,
और
टटका
तेल
संचय
कर
सकेगा।
15
और
मैं
तेरे
पशुओं
के
लिये
तेरे
मैदान
में
घास
उपजाऊंगा,
और
तू
पेट
भर
खाएगा
और
सन्तुष्ट
रहेगा।
16
इसलिये
अपने
विषय
में
सावधान
रहो,
ऐसा
न
हो
कि
तुम्हारे
मन
धोखा
खाएं,
और
तुम
बहककर
दूसरे
देवताओं
की
पूजा
करने
लगो
और
उन
को
दण्डवत
करने
लगो,
17
और
यहोवा
का
कोप
तुम
पर
भड़के,
और
वह
आकाश
की
वर्षा
बन्द
कर
दे,
और
भूमि
अपनी
उपज
न
दे,
और
तुम
उस
उत्तम
देश
में
से
जो
यहोवा
तुम्हें
देता
है
शीघ्र
नष्ट
हो
जाओ।
18
इसलिये
तुम
मेरे
ये
वचन
अपने
अपने
मन
और
प्राण
में
धारण
किए
रहना,
और
चिन्हानी
के
लिये
अपने
हाथों
पर
बान्धना,
और
वे
तुम्हारी
आंखों
के
मध्य
में
टीके
का
काम
दें।
19
और
तुम
घर
में
बैठे,
मार्ग
पर
चलते,
लेटते-उठते
इनकी
चर्चा
करके
अपने
लड़केबालों
को
सिखाया
करना।
20
और
इन्हें
अपने
अपने
घर
के
चौखट
के
बाजुओं
और
अपने
फाटकों
के
ऊपर
लिखना;
21
इसलिये
कि
जिस
देश
के
विषय
में
यहोवा
ने
तेरे
पूर्वजों
से
शपथ
खाकर
कहा
था,
कि
मैं
उसे
तुम्हें
दूंगा,
उस
में
तुम्हारे
और
तुम्हारे
लड़केबालों
की
दीर्घायु
हो,
और
जब
तक
पृथ्वी
के
ऊपर
का
आकाश
बना
रहे
तब
तक
वे
भी
बने
रहें।
22
इसलिये
यदि
तुम
इन
सब
आज्ञाओं
के
मानने
में
जो
मैं
तुम्हें
सुनाता
हूं
पूरी
चौकसी
करके
अपने
परमेश्वर
यहोवा
से
प्रेम
रखो,
और
उसके
सब
मार्गों
पर
चलो,
और
उस
से
लिपटे
रहो,
23
तो
यहोवा
उन
सब
जातियों
को
तुम्हारे
आगे
से
निकाल
डालेगा,
और
तुम
अपने
से
बड़ी
और
सामर्थी
जातियों
के
अधिकारी
हो
जाओगे।
24
जिस
जिस
स्थान
पर
तुम्हारे
पांव
के
तलवे
पड़ें
वे
सब
तुम्हारे
ही
हो
जाएंगे,
अर्थात
जंगल
से
लबानोन
तक,
और
परात
नाम
महानद
से
ले
कर
पश्चिम
के
समुद्र
तक
तुम्हारा
सिवाना
होगा।
25
तुम्हारे
साम्हने
कोई
भी
खड़ा
न
रह
सकेगा;
क्योंकि
जितनी
भूमि
पर
तुम्हारे
पांव
पड़ेंगे
उस
सब
पर
रहने
वालों
के
मन
में
तुम्हारा
परमेश्वर
यहोवा
अपने
वचन
के
अनुसार
तुम्हारे
कारण
उन
में
डर
और
थरथराहट
उत्पन्न
कर
देगा।
26
सुनो,
मैं
आज
के
दिन
तुम्हारे
आगे
आशीष
और
शाप
दोनों
रख
देता
हूं।
27
अर्थात
यदि
तुम
अपने
परमेश्वर
यहोवा
की
इन
आज्ञाओं
को
जो
मैं
आज
तुम्हे
सुनाता
हूं
मानो,
तो
तुम
पर
आशीष
होगी,
28
और
यदि
तुम
अपने
परमेश्वर
यहोवा
की
आज्ञाओं
को
नहीं
मानोगे,
और
जिस
मार्ग
की
आज्ञा
मैं
आज
सुनाता
हूं
उसे
तजकर
दूसरे
देवताओं
के
पीछे
हो
लोगे
जिन्हें
तुम
नहीं
जानते
हो,
तो
तुम
पर
शाप
पड़ेगा।
29
और
जब
तेरा
परमेश्वर
यहोवा
तुझ
को
उस
देश
में
पहुंचाए
जिसके
अधिकारी
होने
को
तू
जाने
पर
है,
तब
आशीष
गरीज्जीम
पर्वत
पर
से
और
शाप
एबाल
पर्वत
पर
से
सुनाना।
30
क्या
वे
यरदन
के
पार,
सूर्य
के
अस्त
होने
की
ओर,
अराबा
के
निवासी
कनानियों
के
देश
में,
गिल्गाल
के
साम्हने,
मोरे
के
बांज
वृक्षों
के
पास
नहीं
है?
31
तुम
तो
यरदन
पार
इसी
लिये
जाने
पर
हो,
कि
जो
देश
तुम्हारा
परमेश्वर
यहोवा
तुम्हें
देता
है
उसके
अधिकारी
हो
कर
उस
में
निवास
करोगे;
32
इसलिये
जितनी
विधियां
और
नियम
मैं
आज
तुम
को
सुनाता
हूं
उन
सभों
के
मानने
में
चौकसी
करना॥
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