पवित्र बाइबिल

ऐसी तो रीड वर्शन (ESV)
व्यवस्थाविवरण

व्यवस्थाविवरण अध्याय 1

मूसा इस्राएल के लोगों से बातचीत करता है 1 2 मूसा द्वारा इस्राएल के लोगों को दिया गया सन्देश यह है। उसने उन्हें यह सन्देश तब दिया जब वे यरदन की घाटी में, यरदन नदी के पूर्व के मरुभूमि में थे। यह सूप के उस पार एक तरफ पारान मरुभूमि और दूसरी तरफ तोपेल, लाबान, हसेरोत और दीजाहाब नगरों के बीच में था। होरेब (सीनै) पर्वत से सेईर पर्वत से होकर कादेशबर्ने की यात्रा केवल ग्यारह दिन की है। 3 किन्तु जब मूसा ने इस्राएल के लोगों को इस स्थान पर सन्देश दिया तब इस्राएल के लोगों को मिस्र छोड़े चालीस वर्ष हो चुके थे। यह चालीस वर्ष के ग्यारहवें महीने का पहला दिन था, जब मूसा ने लोगों से बातें कीं तब उसने उनसे वही बातें कहीं जो यहोवा ने उसे कहने का आदेश दिया था। 4 यह यहोवा की सहायता से उनके द्वारा एमोरी लोगों के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग को पराजित किए जाने के बाद हुआ। (सीहोन हेशबोन और ओग अशतारोत एवं एद्रेई में रहते थे।) 5 उस समय वे यरदन नदी के पूर्व की ओर मोआब के प्रदेश में थे और मूसा ने परमेश्वर के आदेशों की व्याख्या की। मूसा ने कहाः 6 “यहोवा, हमारे परमेश्वर ने होरेब (सीनै) पर्वत पर हमसे कहा। उसने कहा, ‘तुम लोग काफी समय तक इस पर्वत पर ठहर चुके हो। 7 यहाँ से चलने के लिए हर एक चीज तैयार कर लो। एमोरी लोगों के यरदन घाटी, पहाड़ी क्षेत्र, पश्चिमी ढाल—अराबा का पहाड़ी प्रदेश, नीची भूमी, नेगेव और समुद्र से लगे क्षेत्रों में जाओ। कनानी लोगों के देश में तथा लबानोन में परात नामक बड़ी नदी तक जाओ। 8 देखो, मैंने यह सारा देश तुम्हें दिया है। अन्दर जाओ, और स्वयं उस पर अधिकार करो। यह वही देश है जिसे देने का वचन मैंने तुम्हारे पूर्वजों इब्राहीम, इसहाक और याकूब को दिया था। मैंने यह प्रदेश उन्हें तथा उनके वंशजों को देने का वजन दिया था।’ ” मूसा प्रमुखों की नियुक्ति करता है 9 मूसा ने कहा, “उस समय जब मैने तुमसे बात की थी तब कहा था, मैं अकेले तुम लोगों का नेतृत्व करने और देखभाल करने मे समर्थ नहीं हूँ। 10 होवा तुम्हारे परमेश्वर ने क्रमशः लोगों को इतना बढ़ाया है कि तुम लोग अब उतने हो गए हो जितने आकाश में तारे हैं! 11 तुम्हें यहोवा, तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर, आज तुम जितने हो, उससे हजार गुना अधिक करे! वह तुम्हें वह आशीर्वाद दे जो उसने तुम्हें देने का वचन दिया है! 12 किन्तु मैं अकेले तुम्हारी देखभाल नहीं कर सकता और न तो तुम्हारी सारी समस्याओं और वाद—विवाद का समाधान कर सकता हूँ। 13 ‘इसलिए हर एक परिवार समूह से कुछ व्यक्तियो को चुनो और मैं उन्हें तुम्हारा नेता बनाऊँगा। उन बुद्धिमान लोगों को चुनो जो समझदार और अनुभवी हों।’ 14 15 “और तुम लोगों ने कहा, ‘हम लोग समझते हैं ऐसा करना अच्छा है।’ 16 “इसलिए मैंने, तुम लोगों द्वारा अपने परिवार समूह से चुने गए बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्तियों को लिया और उन्हें तुम्हार प्रमुख बनाया। मैंने उनमें से कुछ को हजार का, कुछ को सौ का, कुछ को पचास का और कुछ को दस का प्रमुख बनाया है। उनको मैंने तुम्हारे परिवार समूहों के लिए अधिकारी नियुक्त किया है। “उस समय, मैंने तुम्हारे इन प्रमुखों को तुम्हारा न्यायाधीश बनाया था। मैंने उनसे कहा, ‘अपने लोगों के बीच के वाद—प्रतिवाद को सुनों। हर एक मुकदमे का फैसला सही—सही करो। इसका कोई महत्व नहीं कि मुकदमा दो इस्राएली लोगों के बीच है या इस्राएली और विदेशी के बीच। तुम्हें हर एक मुकदमे का फैसला सही करना चाहिए। 17 जब तुम फैसला करो तब यह न सोचो कि कोई व्यक्ति दूसरे की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। तुम्हें हर एक व्यक्ति का फैसला एक समान समझकर करना चाहिए। किसी से डरो नहीं क्योंकि तुम्हारा फैसला परमेश्वर से आया है। किन्तु यदि कोई मुकदमा इतना जटिल हो कि तुम फैसला ही न कर सको तो उसे मेरे पास लाओ और इसका फैसला मैं करूँगा।’ 18 उसी समय, मैंने वे सभी दूसरी बातें बताई जिन्हें तुम्हें करना है। जासूस कनान देश में गए 19 “तब हम लोगों ने वह किया जो हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें आदेश दिया। हम लोगों ने होरेब पर्वत को छोड़ा और एमोरी लोगों के पहाड़ी प्रदेश की यात्रा की। हम लोग उन बड़ी और सारी भयंकर मरुभूमि से होकर गुजरे जिन्हें तुमने भी देखा। हम लोग कादेशबर्ने पहुँचे। 20 तब मैंने तुमसे कहा, ‘तुम लोग एमोरी लोगों के पहाड़ी प्रदेश में आ चुके हो। यहोवा हामारा परमेश्वर यह देश हमको देगा। 21 देखो, यह देश वहाँ है! आगे बढ़ो और भूमि को अपना बना लो! तुम्हारे पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर ने तुम लोगों को ऐसा करने को कहा है। इसलिए डरो नहीं, किसी प्रकार की चिन्ता न करो!’ 22 23 “तब तुम सभी मेरे पास आए और बोले, ‘हम लोगों के पहले उस देश को देखने के लिए व्यक्तियों को भेजो। वे वहाँ के सभी कमजोर और शक्तिशाली स्थानों को देख सकते हैं। वे तब वापस आ सकते हैं और हम लोगों को उन रास्तों को बता सकते हैं जिनसे हमें जाना है तथा उन नगरों को बता सकते हैं जिन तक हमें पहुँचना है।’ “मैंने सोचा कि यह अच्छा विचार है। इसलिए मैंने तुम लोगों में से हर परिवार समूह के लिए एक व्यक्ति के हिसाब से बारह व्यक्तियों को चुना। 24 तब वे व्यक्ति हमें छोड़कर पहाड़ी प्रदेश में गए। वे एशकोल की घाटी में गए और उन्होंने उसकी छान—बीन की। 25 उन्होंने उस प्रदेश के कुछ फल लिए और उन्हें हमारे पास लाए। उन्होंने हम लोगों को विवरण दिया और कहा, ‘यह अच्छा देश है जिसे यहोवा हमारा परमेश्वर हमें दे रहा है!’ 26 “किन्तु तुमने उसमें जाने से इन्कार किया। तुम लोगों ने अपने यहोवा परमेश्वर के आदेश को मानने से इन्कार किया। 27 तुम लोगों ने अपने खेमों में शिकायत की। तुम लोगों ने कहा, ‘यहोवा हमसे घृणा करता है! वह हमें मिस्र से बाहर एमोरी लोगों को देने के लिए ले आया। जिससे वे हमें नष्ट कर सके! 28 अब हम लोग कहाँ जायें? हमारे बारह जासूस भाईयों ने अपने विवरण से हम लोगों को डराया। उन्होंने कहा: वहाँ के लोग हम लोगों से बड़े और लम्बे हैं, नगर बड़े हैं और उनकी दीवारें आकाश को छूती हैं और हम लोगों ने दानव लोगों को वहाँदेखा।’ 29 “तब मैंने तुमसे कहा, ‘घबराओ नहीं! उन लोगों से डरो नहीं! 30 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे सामने जायेगा और तुम्हारे लिए लड़ेगा। वह यह वैसे ही करेगा जैसे उसने मिस्र में किया। तुम लोगों न वहाँ अपने सामने उसको 31 मरुभूमि में जाते देखा। तुमने दखा कि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें वैसे ले आया जैसे कोई व्यक्ति अपने पुत्र को लाता है। यहोवा न पूरे रास्ते तुम लोगों की रक्षा करते हुए तुम्हें यहाँ पहुँचाया है।’ 32 “किन्तु तब भी तुमने यहोवा अपने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया। 33 जब तुम यात्रा कर रहे थे तब वह तुम्हारे आगे तुम्हारे डेरे डालने के लिए जगह खोजने गया। तुम्हें यह बताने के लिए कि तुम्हें किस राह जाना है वह रात को आग में और दिन को बादल में चला। लोगों के कनान जाने पर प्रतिबन्ध 34 “यहोवा ने तुम्हारा कहना सुना, वह क्रोधित हुआ। उसने प्रतिज्ञा की। उने कहा, 35 ‘आज तुम जीवित बुरे लोगों में से कोई भी व्यक्ति उस अच्छे देश में नहीं जाएगा जिसे देने का वचन मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। 36 यपुन्ने का पुत्र कालेब ही केवल उस देश को देखेगा। मैं कालेब को वह देश दूँगा जिस पर वह चला और मैं उस देश को कालेब के वंशजों को दूँगा। क्यों? क्योकि कालेब ने वह सब किया जो मेरा आदेश था।’ 37 “यहोवा तुम लोगों के कारण मुझसे भी अप्रसन्न था। उसने मुझसे कहा, ‘तुम भी उस देश में नहीं जा सकते। 38 किन्तु तुम्हारा सहायक, नून का पुत्र यहोशू उस देश में जाएगा। यहोशू को उत्साहित करो, क्योंकि वही इस्राएल के लोगों को भूमि पर अपना अधिकार जामाने के लिए ले जाएगा।’ 39 और यहोवा ने हमसे कहा, ‘तुमने कहा, कि तुम्हारे छोटे बच्चे शत्रु द्वारा ले लिए जायेंगे। किन्तु वे बच्चे उस देश में जायेंगे। मैं तुम्हारी गलतियों के लिए तुम्हारे बच्चों को दोषी नहीं मानता। क्योंकि वे अभी इतने छोटे हैं कि वे यह जान नहीं सकते कि क्या सही है और क्या गलत। इसलिए मैं उन्हें वह देश दूँगा। तुम्हारे बच्चे अपने देश के रूप में उसे प्राप्त करेंगे। 40 लेकिन तुम्हें, पीछे मुड़ना चाहिए और लाल सागर जाने वाले मार्ग से मरुभूमि को जाना चाहिए।’ 41 “तब तुमने कहा, ‘मूसा, हम लोगों ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। किन्तु अब हम आगे बढ़ेंगे और जैसे पहले यहोवा हमारे परमेश्वर ने आदेश दिया था वैसे ही लड़ेंगे।’ “तब तुम में से हर एक ने युद्ध के लिए शस्त्र धारण किये। तुम लोगों ने सोचा कि पहाड़ में जाना सरस होगा। 42 किन्तु यहोवा ने मुझसे कहा, ‘लोगों से कहो कि वे वहाँ ने जायें और न लड़ें। क्यों? क्योंकि मैं उनका साथ नहीं दूँगा और उनके शत्रु उनको हरा देंगे।’ 43 “इसलिए मैंने तुम लोगों को समझाने की कोशिश की, किन्तु तुम लोगों ने मेरी एक न सुनी। तुम लोगों ने यहोवा का आदेश मानने से इन्कार कर दिया। तुम लोगों ने अपनी शक्ति का उपयोग करने की बात सोची। इसलिए तुम लोग पहाड़ी प्रदेश मे गए। 44 तब एमोरी लोग तुम्हारे विरुद्ध आए। वे उस पहाड़ी प्रदेश में रहते हें। उन्होंने तुम्हारा वैसे पीछा किया जैसे मधुमक्खियाँ लोगों का पीछा करती हैं। उन्होंने तुम्हारा सेईर से लेकर होर्मा तक पूरे रास्ते पीछा किया और तुम्हें वहाँ हराया। 45 तुम सब लौटे और यहोवा के सामने सहयता के लिए रोए चिल्लाए। किन्तु यहोवा ने तुम्हारी बात कुछ न सुनी। उसने तुम्हारी बात सुनते से इन्कार कर दिया। 46 इसलिए तुम लोग कादेश में बहुत समय तक ठहरे।
1. {#1मूसा इस्राएल के लोगों से बातचीत करता है } 2. मूसा द्वारा इस्राएल के लोगों को दिया गया सन्देश यह है। उसने उन्हें यह सन्देश तब दिया जब वे यरदन की घाटी में, यरदन नदी के पूर्व के मरुभूमि में थे। यह सूप के उस पार एक तरफ पारान मरुभूमि और दूसरी तरफ तोपेल, लाबान, हसेरोत और दीजाहाब नगरों के बीच में था। होरेब (सीनै) पर्वत से सेईर पर्वत से होकर कादेशबर्ने की यात्रा केवल ग्यारह दिन की है। 3. किन्तु जब मूसा ने इस्राएल के लोगों को इस स्थान पर सन्देश दिया तब इस्राएल के लोगों को मिस्र छोड़े चालीस वर्ष हो चुके थे। यह चालीस वर्ष के ग्यारहवें महीने का पहला दिन था, जब मूसा ने लोगों से बातें कीं तब उसने उनसे वही बातें कहीं जो यहोवा ने उसे कहने का आदेश दिया था। 4. यह यहोवा की सहायता से उनके द्वारा एमोरी लोगों के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग को पराजित किए जाने के बाद हुआ। (सीहोन हेशबोन और ओग अशतारोत एवं एद्रेई में रहते थे।) 5. उस समय वे यरदन नदी के पूर्व की ओर मोआब के प्रदेश में थे और मूसा ने परमेश्वर के आदेशों की व्याख्या की। मूसा ने कहाः 6. “यहोवा, हमारे परमेश्वर ने होरेब (सीनै) पर्वत पर हमसे कहा। उसने कहा, ‘तुम लोग काफी समय तक इस पर्वत पर ठहर चुके हो। 7. यहाँ से चलने के लिए हर एक चीज तैयार कर लो। एमोरी लोगों के यरदन घाटी, पहाड़ी क्षेत्र, पश्चिमी ढाल—अराबा का पहाड़ी प्रदेश, नीची भूमी, नेगेव और समुद्र से लगे क्षेत्रों में जाओ। कनानी लोगों के देश में तथा लबानोन में परात नामक बड़ी नदी तक जाओ। 8. देखो, मैंने यह सारा देश तुम्हें दिया है। अन्दर जाओ, और स्वयं उस पर अधिकार करो। यह वही देश है जिसे देने का वचन मैंने तुम्हारे पूर्वजों इब्राहीम, इसहाक और याकूब को दिया था। मैंने यह प्रदेश उन्हें तथा उनके वंशजों को देने का वजन दिया था।’ ” 9. {#1मूसा प्रमुखों की नियुक्ति करता है } मूसा ने कहा, “उस समय जब मैने तुमसे बात की थी तब कहा था, मैं अकेले तुम लोगों का नेतृत्व करने और देखभाल करने मे समर्थ नहीं हूँ। 10. होवा तुम्हारे परमेश्वर ने क्रमशः लोगों को इतना बढ़ाया है कि तुम लोग अब उतने हो गए हो जितने आकाश में तारे हैं! 11. तुम्हें यहोवा, तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर, आज तुम जितने हो, उससे हजार गुना अधिक करे! वह तुम्हें वह आशीर्वाद दे जो उसने तुम्हें देने का वचन दिया है! 12. किन्तु मैं अकेले तुम्हारी देखभाल नहीं कर सकता और न तो तुम्हारी सारी समस्याओं और वाद—विवाद का समाधान कर सकता हूँ। 13. ‘इसलिए हर एक परिवार समूह से कुछ व्यक्तियो को चुनो और मैं उन्हें तुम्हारा नेता बनाऊँगा। उन बुद्धिमान लोगों को चुनो जो समझदार और अनुभवी हों।’ 14. 15. “और तुम लोगों ने कहा, ‘हम लोग समझते हैं ऐसा करना अच्छा है।’ 16. “इसलिए मैंने, तुम लोगों द्वारा अपने परिवार समूह से चुने गए बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्तियों को लिया और उन्हें तुम्हार प्रमुख बनाया। मैंने उनमें से कुछ को हजार का, कुछ को सौ का, कुछ को पचास का और कुछ को दस का प्रमुख बनाया है। उनको मैंने तुम्हारे परिवार समूहों के लिए अधिकारी नियुक्त किया है। “उस समय, मैंने तुम्हारे इन प्रमुखों को तुम्हारा न्यायाधीश बनाया था। मैंने उनसे कहा, ‘अपने लोगों के बीच के वाद—प्रतिवाद को सुनों। हर एक मुकदमे का फैसला सही—सही करो। इसका कोई महत्व नहीं कि मुकदमा दो इस्राएली लोगों के बीच है या इस्राएली और विदेशी के बीच। तुम्हें हर एक मुकदमे का फैसला सही करना चाहिए। 17. जब तुम फैसला करो तब यह न सोचो कि कोई व्यक्ति दूसरे की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। तुम्हें हर एक व्यक्ति का फैसला एक समान समझकर करना चाहिए। किसी से डरो नहीं क्योंकि तुम्हारा फैसला परमेश्वर से आया है। किन्तु यदि कोई मुकदमा इतना जटिल हो कि तुम फैसला ही न कर सको तो उसे मेरे पास लाओ और इसका फैसला मैं करूँगा।’ 18. उसी समय, मैंने वे सभी दूसरी बातें बताई जिन्हें तुम्हें करना है। 19. {#1जासूस कनान देश में गए } “तब हम लोगों ने वह किया जो हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें आदेश दिया। हम लोगों ने होरेब पर्वत को छोड़ा और एमोरी लोगों के पहाड़ी प्रदेश की यात्रा की। हम लोग उन बड़ी और सारी भयंकर मरुभूमि से होकर गुजरे जिन्हें तुमने भी देखा। हम लोग कादेशबर्ने पहुँचे। 20. तब मैंने तुमसे कहा, ‘तुम लोग एमोरी लोगों के पहाड़ी प्रदेश में आ चुके हो। यहोवा हामारा परमेश्वर यह देश हमको देगा। 21. देखो, यह देश वहाँ है! आगे बढ़ो और भूमि को अपना बना लो! तुम्हारे पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर ने तुम लोगों को ऐसा करने को कहा है। इसलिए डरो नहीं, किसी प्रकार की चिन्ता न करो!’ 22. 23. “तब तुम सभी मेरे पास आए और बोले, ‘हम लोगों के पहले उस देश को देखने के लिए व्यक्तियों को भेजो। वे वहाँ के सभी कमजोर और शक्तिशाली स्थानों को देख सकते हैं। वे तब वापस आ सकते हैं और हम लोगों को उन रास्तों को बता सकते हैं जिनसे हमें जाना है तथा उन नगरों को बता सकते हैं जिन तक हमें पहुँचना है।’ “मैंने सोचा कि यह अच्छा विचार है। इसलिए मैंने तुम लोगों में से हर परिवार समूह के लिए एक व्यक्ति के हिसाब से बारह व्यक्तियों को चुना। 24. तब वे व्यक्ति हमें छोड़कर पहाड़ी प्रदेश में गए। वे एशकोल की घाटी में गए और उन्होंने उसकी छान—बीन की। 25. उन्होंने उस प्रदेश के कुछ फल लिए और उन्हें हमारे पास लाए। उन्होंने हम लोगों को विवरण दिया और कहा, ‘यह अच्छा देश है जिसे यहोवा हमारा परमेश्वर हमें दे रहा है!’ 26. “किन्तु तुमने उसमें जाने से इन्कार किया। तुम लोगों ने अपने यहोवा परमेश्वर के आदेश को मानने से इन्कार किया। 27. तुम लोगों ने अपने खेमों में शिकायत की। तुम लोगों ने कहा, ‘यहोवा हमसे घृणा करता है! वह हमें मिस्र से बाहर एमोरी लोगों को देने के लिए ले आया। जिससे वे हमें नष्ट कर सके! 28. अब हम लोग कहाँ जायें? हमारे बारह जासूस भाईयों ने अपने विवरण से हम लोगों को डराया। उन्होंने कहा: वहाँ के लोग हम लोगों से बड़े और लम्बे हैं, नगर बड़े हैं और उनकी दीवारें आकाश को छूती हैं और हम लोगों ने दानव लोगों को वहाँदेखा।’ 29. “तब मैंने तुमसे कहा, ‘घबराओ नहीं! उन लोगों से डरो नहीं! 30. यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे सामने जायेगा और तुम्हारे लिए लड़ेगा। वह यह वैसे ही करेगा जैसे उसने मिस्र में किया। तुम लोगों न वहाँ अपने सामने उसको 31. मरुभूमि में जाते देखा। तुमने दखा कि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें वैसे ले आया जैसे कोई व्यक्ति अपने पुत्र को लाता है। यहोवा न पूरे रास्ते तुम लोगों की रक्षा करते हुए तुम्हें यहाँ पहुँचाया है।’ 32. “किन्तु तब भी तुमने यहोवा अपने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया। 33. जब तुम यात्रा कर रहे थे तब वह तुम्हारे आगे तुम्हारे डेरे डालने के लिए जगह खोजने गया। तुम्हें यह बताने के लिए कि तुम्हें किस राह जाना है वह रात को आग में और दिन को बादल में चला। 34. {#1लोगों के कनान जाने पर प्रतिबन्ध } “यहोवा ने तुम्हारा कहना सुना, वह क्रोधित हुआ। उसने प्रतिज्ञा की। उने कहा, 35. ‘आज तुम जीवित बुरे लोगों में से कोई भी व्यक्ति उस अच्छे देश में नहीं जाएगा जिसे देने का वचन मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। 36. यपुन्ने का पुत्र कालेब ही केवल उस देश को देखेगा। मैं कालेब को वह देश दूँगा जिस पर वह चला और मैं उस देश को कालेब के वंशजों को दूँगा। क्यों? क्योकि कालेब ने वह सब किया जो मेरा आदेश था।’ 37. “यहोवा तुम लोगों के कारण मुझसे भी अप्रसन्न था। उसने मुझसे कहा, ‘तुम भी उस देश में नहीं जा सकते। 38. किन्तु तुम्हारा सहायक, नून का पुत्र यहोशू उस देश में जाएगा। यहोशू को उत्साहित करो, क्योंकि वही इस्राएल के लोगों को भूमि पर अपना अधिकार जामाने के लिए ले जाएगा।’ 39. और यहोवा ने हमसे कहा, ‘तुमने कहा, कि तुम्हारे छोटे बच्चे शत्रु द्वारा ले लिए जायेंगे। किन्तु वे बच्चे उस देश में जायेंगे। मैं तुम्हारी गलतियों के लिए तुम्हारे बच्चों को दोषी नहीं मानता। क्योंकि वे अभी इतने छोटे हैं कि वे यह जान नहीं सकते कि क्या सही है और क्या गलत। इसलिए मैं उन्हें वह देश दूँगा। तुम्हारे बच्चे अपने देश के रूप में उसे प्राप्त करेंगे। 40. लेकिन तुम्हें, पीछे मुड़ना चाहिए और लाल सागर जाने वाले मार्ग से मरुभूमि को जाना चाहिए।’ 41. “तब तुमने कहा, ‘मूसा, हम लोगों ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। किन्तु अब हम आगे बढ़ेंगे और जैसे पहले यहोवा हमारे परमेश्वर ने आदेश दिया था वैसे ही लड़ेंगे।’ “तब तुम में से हर एक ने युद्ध के लिए शस्त्र धारण किये। तुम लोगों ने सोचा कि पहाड़ में जाना सरस होगा। 42. किन्तु यहोवा ने मुझसे कहा, ‘लोगों से कहो कि वे वहाँ ने जायें और न लड़ें। क्यों? क्योंकि मैं उनका साथ नहीं दूँगा और उनके शत्रु उनको हरा देंगे।’ 43. “इसलिए मैंने तुम लोगों को समझाने की कोशिश की, किन्तु तुम लोगों ने मेरी एक न सुनी। तुम लोगों ने यहोवा का आदेश मानने से इन्कार कर दिया। तुम लोगों ने अपनी शक्ति का उपयोग करने की बात सोची। इसलिए तुम लोग पहाड़ी प्रदेश मे गए। 44. तब एमोरी लोग तुम्हारे विरुद्ध आए। वे उस पहाड़ी प्रदेश में रहते हें। उन्होंने तुम्हारा वैसे पीछा किया जैसे मधुमक्खियाँ लोगों का पीछा करती हैं। उन्होंने तुम्हारा सेईर से लेकर होर्मा तक पूरे रास्ते पीछा किया और तुम्हें वहाँ हराया। 45. तुम सब लौटे और यहोवा के सामने सहयता के लिए रोए चिल्लाए। किन्तु यहोवा ने तुम्हारी बात कुछ न सुनी। उसने तुम्हारी बात सुनते से इन्कार कर दिया। 46. इसलिए तुम लोग कादेश में बहुत समय तक ठहरे।
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