पवित्र बाइबिल

ऐसी तो रीड वर्शन (ESV)
अय्यूब

अय्यूब अध्याय 2

शैतान द्वारा अय्यूब को फिर दु:ख देना 1 फिर एक दिन, यहोवा से मिलने के लिये स्वर्गदूत आये। शैतान भी उनके साथ था। शैतान यहोवा से मिलने आया था। 2 यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू कहाँ रहा” 3 शैतान ने उत्तर देते हुए यहोवा से कहा, “मैं धरती पर इधर—उधर घूमता रहा हूँ।” 4 इस पर यहोवा ने शैतान से पूछा, “क्या तू मेरे सेवक अय्यूब पर ध्यान देता रहा है उसके जैसा विश्वासी धरती पर कोई नहीं है। सचमुच वह अच्छा और वह बहुत विश्वासी व्यक्ति है। वह परमेश्वर की उपासना करता है, बुरी बातें से दूर रहता है। वह अब भी आस्थावान है। यद्यपि तूने मुझे प्रेरित किया था कि मैं अकारण ही उसे नष्ट कर दूँ।” शैतान ने उत्तर दिया, “खाल के बदले खाल! एक व्यक्ति जीवित रहने के लिये, जो कुछ उसके पास है, सब कुछ दे डालता है। 5 सो यदि तू अपनी शक्ति का प्रयोग उसके शरीर को हानि पहुँचाने में करे तो तेरे मुँह पर ही वह तुझे कोसने लगेगा!” 6 7 सो यहोवा ने शैतान से कहा, “अच्छा, मैंने अय्यूब को तुझे सौंपा, किन्तु तुझे उसे मार डालने की छूट नहीं है।” इसके बाद शैतान यहोवा के पास से चला गया और उसने अय्यूब को बड़े दु:खदायी फोड़े दे दिये। ये दु:खदायी फोड़े उसके पाँव के तलवे से लेकर उसके सिर के ऊपर तक शरीर में फैल गये थे। 8 सो अय्यूब कूड़े की ढेरी के पास बैठ गया। उसके पास एक ठीकरा था, जिससे वह अपने फोड़ों को खुजलाया करता था। 9 अय्यूब की पत्नी ने उससे कहा, “क्या परमेश्वर में अब भी तेरा विश्वास है तू परमेश्वर को कोस कर मर क्यों नहीं जाता!” 10 11 अय्यूब ने उत्तर देते हुए अपनी पत्नी से कहा, “तू तो एक मूर्खस्त्री की तरह बातें करती है! देख, परमेश्वर जब उत्तम वस्तुएं देता है, हम उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। सो हमें दु:ख को भी अपनाना चाहिये और शिकायत नहीं करनी चाहिये।” इस समूचे दु:ख में भी अय्यूब ने कोई पाप नहीं किया। परमेश्वर के विरोध में वह कुछ नहीं बोला। अय्यूब के तीन मित्रों का उससे मिलने आना अय्यूब के तीन मित्र थे:तेमानी का एलीपज, शूही का बिलदद और नामाती का सोपर। इन तीनों मित्रों ने अय्यूब के साथ जो बुरी घटनाएँ घटी थीं, उन सब के बारे में सुना। ये तीनों मित्र अपना—अपना घर छोड़कर आपस में एक दूसरे से मिले। उन्होंने निश्चय किया कि वे अय्यूब के पास जा कर उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करें और उसे ढाढस बँधायें। 12 किन्तु इन तीनों मित्रों ने जब दूर से अय्यूब को देखा तो वे निश्चय नहीं कर पाये कि वह अय्यूब है क्योंकि वह एकदम अलग दिखाई दे रहा था। वे दहाड़ मार कर रोने लगे। उन्होंने अपने कपड़े फाड़ डाले। अपने दु:ख और अपनी बेचैनी को दर्शाने के लिये उन्होंने हवा में धूल उड़ाते हुए अपने अपने सिरों पर मिट्टी डाली। 13 फिर वे तीनों मित्र अय्यूब के साथ सात दिन और सात रात तक भूमि पर बैठे रहे। अय्यूब से किसी ने एक शब्द तक नहीं कहा क्योंकि वे देख रहे थे कि अय्यूब भयानक पीड़ा में था।
1. {#1शैतान द्वारा अय्यूब को फिर दु:ख देना } फिर एक दिन, यहोवा से मिलने के लिये स्वर्गदूत आये। शैतान भी उनके साथ था। शैतान यहोवा से मिलने आया था। 2. यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू कहाँ रहा” 3. शैतान ने उत्तर देते हुए यहोवा से कहा, “मैं धरती पर इधर—उधर घूमता रहा हूँ।” 4. इस पर यहोवा ने शैतान से पूछा, “क्या तू मेरे सेवक अय्यूब पर ध्यान देता रहा है उसके जैसा विश्वासी धरती पर कोई नहीं है। सचमुच वह अच्छा और वह बहुत विश्वासी व्यक्ति है। वह परमेश्वर की उपासना करता है, बुरी बातें से दूर रहता है। वह अब भी आस्थावान है। यद्यपि तूने मुझे प्रेरित किया था कि मैं अकारण ही उसे नष्ट कर दूँ।” शैतान ने उत्तर दिया, “खाल के बदले खाल! एक व्यक्ति जीवित रहने के लिये, जो कुछ उसके पास है, सब कुछ दे डालता है। 5. सो यदि तू अपनी शक्ति का प्रयोग उसके शरीर को हानि पहुँचाने में करे तो तेरे मुँह पर ही वह तुझे कोसने लगेगा!” 6. 7. सो यहोवा ने शैतान से कहा, “अच्छा, मैंने अय्यूब को तुझे सौंपा, किन्तु तुझे उसे मार डालने की छूट नहीं है।” इसके बाद शैतान यहोवा के पास से चला गया और उसने अय्यूब को बड़े दु:खदायी फोड़े दे दिये। ये दु:खदायी फोड़े उसके पाँव के तलवे से लेकर उसके सिर के ऊपर तक शरीर में फैल गये थे। 8. सो अय्यूब कूड़े की ढेरी के पास बैठ गया। उसके पास एक ठीकरा था, जिससे वह अपने फोड़ों को खुजलाया करता था। 9. अय्यूब की पत्नी ने उससे कहा, “क्या परमेश्वर में अब भी तेरा विश्वास है तू परमेश्वर को कोस कर मर क्यों नहीं जाता!” 10. 11. अय्यूब ने उत्तर देते हुए अपनी पत्नी से कहा, “तू तो एक मूर्खस्त्री की तरह बातें करती है! देख, परमेश्वर जब उत्तम वस्तुएं देता है, हम उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। सो हमें दु:ख को भी अपनाना चाहिये और शिकायत नहीं करनी चाहिये।” इस समूचे दु:ख में भी अय्यूब ने कोई पाप नहीं किया। परमेश्वर के विरोध में वह कुछ नहीं बोला। {#1अय्यूब के तीन मित्रों का उससे मिलने आना } अय्यूब के तीन मित्र थे:तेमानी का एलीपज, शूही का बिलदद और नामाती का सोपर। इन तीनों मित्रों ने अय्यूब के साथ जो बुरी घटनाएँ घटी थीं, उन सब के बारे में सुना। ये तीनों मित्र अपना—अपना घर छोड़कर आपस में एक दूसरे से मिले। उन्होंने निश्चय किया कि वे अय्यूब के पास जा कर उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करें और उसे ढाढस बँधायें। 12. किन्तु इन तीनों मित्रों ने जब दूर से अय्यूब को देखा तो वे निश्चय नहीं कर पाये कि वह अय्यूब है क्योंकि वह एकदम अलग दिखाई दे रहा था। वे दहाड़ मार कर रोने लगे। उन्होंने अपने कपड़े फाड़ डाले। अपने दु:ख और अपनी बेचैनी को दर्शाने के लिये उन्होंने हवा में धूल उड़ाते हुए अपने अपने सिरों पर मिट्टी डाली। 13. फिर वे तीनों मित्र अय्यूब के साथ सात दिन और सात रात तक भूमि पर बैठे रहे। अय्यूब से किसी ने एक शब्द तक नहीं कहा क्योंकि वे देख रहे थे कि अय्यूब भयानक पीड़ा में था।
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