पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
अय्यूब

अय्यूब अध्याय 7

1 अय्यूब ने कहा, “मनुष्य को धरती पर कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसका जीवन भाड़े के श्रमिक के जीवन जैसा होता है। 2 मनुष्य उस भाड़े के श्रमिक जैसा है जो तपते हुए दिन में मेहनत करने के बाद शीतल छाया चाहता है और मजदूरी मिलने के दिन की बाट जोहता रहता है। 3 महीने दर महीने बेचैनी के गुजर गये हैं और पीड़ा भरी रात दर रात मुझे दे दी गई है। 4 जब मैं लेटता हूँ, मैं सोचा करता हूँ कि अभी और कितनी देर है मेरे उठने का यह रात घसीटती चली जा रही है। मैं छटपटाता और करवट बदलता हूँ, जब तक सूरज नहीं निकल आता। 5 मेरा शरीर कीड़ों और धूल से ढका हुआ है। मेरी त्वचा चिटक गई है और इसमें रिसते हुए फोड़े भर गये हैं। 6 “मेरे दिन जुलाहे की फिरकी से भी अधिक तीव्र गति से बीत रहें हैं। मेरे जीवन का अन्त बिना किसी आशा के हो रहा है। 7 हे परमेश्वर, याद रख, मेरा जीवन एक फूँक मात्र है। अब मेरी आँखें कुछ भी अच्छा नहीं देखेंगी। 8 अभी तू मुझको देख रहा है किन्तु फिर तू मुझको नहीं देख पायेगा। तू मुझको ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा। 9 एक बादल छुप जाता है और लुप्त हो जाता है। इसी प्रकार एक व्यक्ति जो मर जाता है और कब्र में गाड़ दिया जाता है, वह फिर वापस नहीं आता है। 10 वह अपने पुराने घर को वापस कभी भी नहीं लौटेगा। उसका घर उसको फिर कभी भी नहीं जानेगा। 11 “अत: मैं चुप नहीं रहूँगा। मैं सब कह डालूँगा। मेरी आत्मा दु:खित है और मेरा मन कटुता से भरा है, अत: मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा। 12 हे परमेश्वर, तू मेरी रखवाली क्यों करता है क्या मैं समुद्र हूँ, अथवा समुद्र का कोई दैत्य 13 जब मुझ को लगता है कि मेरी खाट मुझे शान्ति देगी और मेरा पलंग मुझे विश्राम व चैन देगा। 14 हे परमेश्वर, तभी तू मुझे स्वप्न में डराता है, और तू दर्शन से मुझे घबरा देता है। 15 इसलिए जीवित रहने से अच्छा मुझे मर जाना ज्यादा पसन्द है। 16 मैं अपने जीवन से घृणा करता हूँ। मेरी आशा टूट चुकी है। मैं सदैव जीवित रहना नहीं चाहता। मुझे अकेला छोड़ दे। मेरा जीवन व्यर्थ है। 17 हे परमेश्वर, मनुष्य तेरे लिये क्यों इतना महत्वपूर्ण है क्यों तुझे उसका आदर करना चाहिये क्यों मनुष्य पर तुझे इतना ध्यान देना चाहिये 18 हर प्रात: क्यों तू मनुष्य के पास आता है और हर क्षण तू क्यों उसे परखा करता है 19 हे परमेश्वर, तू मुझसे कभी भी दृष्टि नहीं फेरता है और मुझे एक क्षण के लिये भी अकेला नहीं छोड़ता है। 20 हे परमेश्वर, तू लोगों पर दृष्टि रखता है। यदि मैंने पाप किया, तब मैं क्या कर सकता हूँ तूने मुझको क्यों निशाना बनाया है क्या मैं तेरे लिये कोई समस्या बना हूँ 21 क्यों तू मेरी गलतियों को क्षमा नहीं करता और मेरे पापों को क्यों तू माफ नहीं करता है मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा और कब्र में चला जाऊँगा। जब तू मुझे ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा।”
1 अय्यूब ने कहा, “मनुष्य को धरती पर कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसका जीवन भाड़े के श्रमिक के जीवन जैसा होता है। .::. 2 मनुष्य उस भाड़े के श्रमिक जैसा है जो तपते हुए दिन में मेहनत करने के बाद शीतल छाया चाहता है और मजदूरी मिलने के दिन की बाट जोहता रहता है। .::. 3 महीने दर महीने बेचैनी के गुजर गये हैं और पीड़ा भरी रात दर रात मुझे दे दी गई है। .::. 4 जब मैं लेटता हूँ, मैं सोचा करता हूँ कि अभी और कितनी देर है मेरे उठने का यह रात घसीटती चली जा रही है। मैं छटपटाता और करवट बदलता हूँ, जब तक सूरज नहीं निकल आता। .::. 5 मेरा शरीर कीड़ों और धूल से ढका हुआ है। मेरी त्वचा चिटक गई है और इसमें रिसते हुए फोड़े भर गये हैं। .::. 6 “मेरे दिन जुलाहे की फिरकी से भी अधिक तीव्र गति से बीत रहें हैं। मेरे जीवन का अन्त बिना किसी आशा के हो रहा है। .::. 7 हे परमेश्वर, याद रख, मेरा जीवन एक फूँक मात्र है। अब मेरी आँखें कुछ भी अच्छा नहीं देखेंगी। .::. 8 अभी तू मुझको देख रहा है किन्तु फिर तू मुझको नहीं देख पायेगा। तू मुझको ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा। .::. 9 एक बादल छुप जाता है और लुप्त हो जाता है। इसी प्रकार एक व्यक्ति जो मर जाता है और कब्र में गाड़ दिया जाता है, वह फिर वापस नहीं आता है। .::. 10 वह अपने पुराने घर को वापस कभी भी नहीं लौटेगा। उसका घर उसको फिर कभी भी नहीं जानेगा। .::. 11 “अत: मैं चुप नहीं रहूँगा। मैं सब कह डालूँगा। मेरी आत्मा दु:खित है और मेरा मन कटुता से भरा है, अत: मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा। .::. 12 हे परमेश्वर, तू मेरी रखवाली क्यों करता है क्या मैं समुद्र हूँ, अथवा समुद्र का कोई दैत्य .::. 13 जब मुझ को लगता है कि मेरी खाट मुझे शान्ति देगी और मेरा पलंग मुझे विश्राम व चैन देगा। .::. 14 हे परमेश्वर, तभी तू मुझे स्वप्न में डराता है, और तू दर्शन से मुझे घबरा देता है। .::. 15 इसलिए जीवित रहने से अच्छा मुझे मर जाना ज्यादा पसन्द है। .::. 16 मैं अपने जीवन से घृणा करता हूँ। मेरी आशा टूट चुकी है। मैं सदैव जीवित रहना नहीं चाहता। मुझे अकेला छोड़ दे। मेरा जीवन व्यर्थ है। .::. 17 हे परमेश्वर, मनुष्य तेरे लिये क्यों इतना महत्वपूर्ण है क्यों तुझे उसका आदर करना चाहिये क्यों मनुष्य पर तुझे इतना ध्यान देना चाहिये .::. 18 हर प्रात: क्यों तू मनुष्य के पास आता है और हर क्षण तू क्यों उसे परखा करता है .::. 19 हे परमेश्वर, तू मुझसे कभी भी दृष्टि नहीं फेरता है और मुझे एक क्षण के लिये भी अकेला नहीं छोड़ता है। .::. 20 हे परमेश्वर, तू लोगों पर दृष्टि रखता है। यदि मैंने पाप किया, तब मैं क्या कर सकता हूँ तूने मुझको क्यों निशाना बनाया है क्या मैं तेरे लिये कोई समस्या बना हूँ .::. 21 क्यों तू मेरी गलतियों को क्षमा नहीं करता और मेरे पापों को क्यों तू माफ नहीं करता है मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा और कब्र में चला जाऊँगा। जब तू मुझे ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा।”
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