1. [QS]हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, [QE][QS]पर मूर्ख स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है। [QE]
2. [QS]जो सिधाई से चलता वह यहोवा का भय माननेवाला है, [QE][QS]परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता वह उसको तुच्छ जाननेवाला ठहरता है। [QE]
3. [QS]मूर्ख के मुँह में गर्व का अंकुर है*, [QE][QS]परन्तु बुद्धिमान लोग अपने वचनों के द्वारा रक्षा पाते हैं। [QE]
4. [QS]जहाँ बैल नहीं, वहाँ गौशाला स्वच्छ तो रहती है, [QE][QS]परन्तु बैल के बल से अनाज की बढ़ती होती है। [QE]
5. [QS]सच्चा साक्षी झूठ नहीं बोलता, [QE][QS]परन्तु झूठा साक्षी झूठी बातें उड़ाता है। [QE]
6. [QS]ठट्ठा करनेवाला बुद्धि को ढूँढ़ता, परन्तु नहीं पाता, [QE][QS]परन्तु समझवाले को ज्ञान सहज से मिलता है। (नीति. 17:24) [QE]
7. [QS]मूर्ख से अलग हो जा, तू उससे ज्ञान की बात न पाएगा। [QE]
8. [QS]विवेकी मनुष्य की बुद्धि* अपनी चाल को समझना है, [QE][QS]परन्तु मूर्खों की मूर्खता छल करना है। [QE]
9. [QS]मूर्ख लोग पाप का अंगीकार करने को ठट्ठा जानते हैं, [QE][QS]परन्तु सीधे लोगों के बीच अनुग्रह होता है। [QE]
10. [QS]मन अपना ही दुःख जानता है, [QE][QS]और परदेशी उसके आनन्द में हाथ नहीं डाल सकता। [QE]
11. [QS]दुष्टों के घर का विनाश हो जाता है, [QE][QS]परन्तु सीधे लोगों के तम्बू में बढ़ती होती है। [QE]
12. [QS]ऐसा मार्ग है*, जो मनुष्य को ठीक जान पड़ता है, [QE][QS]परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है। [QE]
13. [QS]हँसी के समय भी मन उदास हो सकता है, [QE][QS]और आनन्द के अन्त में शोक हो सकता है। [QE]
14. [QS]जो बेईमान है, वह अपनी चालचलन का फल भोगता है, [QE][QS]परन्तु भला मनुष्य आप ही आप सन्तुष्ट होता है। [QE]
15. [QS]भोला तो हर एक बात को सच मानता है, [QE][QS]परन्तु विवेकी मनुष्य समझ बूझकर चलता है। [QE]
16. [QS]बुद्धिमान डरकर बुराई से हटता है, [QE][QS]परन्तु मूर्ख ढीठ होकर चेतावनी की उपेक्षा करता है। [QE]
17. [QS]जो झट क्रोध करे, वह मूर्खता का काम करेगा, [QE][QS]और जो बुरी युक्तियाँ निकालता है, उससे लोग बैर रखते हैं। [QE]
18. [QS]भोलों का भाग मूर्खता ही होता है, [QE][QS]परन्तु विवेकी मनुष्यों को ज्ञानरूपी मुकुट बाँधा जाता है। [QE]
19. [QS]बुरे लोग भलों के सम्मुख, [QE][QS]और दुष्ट लोग धर्मी के फाटक पर दण्डवत् करेंगे। [QE]
20. [QS]निर्धन का पड़ोसी भी उससे घृणा करता है, [QE][QS]परन्तु धनी के अनेक प्रेमी होते हैं। [QE]
21. [QS]जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता, वह पाप करता है, [QE][QS]परन्तु जो दीन लोगों पर अनुग्रह करता, वह धन्य होता है। [QE]
22. [QS]जो बुरी युक्ति निकालते हैं, क्या वे भ्रम में नहीं पड़ते? [QE][QS]परन्तु भली युक्ति निकालनेवालों से करुणा और सच्चाई का व्यवहार किया जाता है। [QE]
23. [QS]परिश्रम से सदा लाभ होता है, [QE][QS]परन्तु बकवाद करने से केवल घटती होती है। [QE]
24. [QS]बुद्धिमानों का धन उनका मुकुट ठहरता है, [QE][QS]परन्तु मूर्ख से केवल मूर्खता ही उत्पन्न होती है। [QE]
25. [QS]सच्चा साक्षी बहुतों के प्राण बचाता है, [QE][QS]परन्तु जो झूठी बातें उड़ाया करता है उससे धोखा ही होता है। [QE]
26. [QS]यहोवा के भय में दृढ़ भरोसा है, [QE][QS]और यह उसके संतानों के लिए शरणस्थान होगा। [QE]
27. [QS]यहोवा का भय मानना, जीवन का सोता है, [QE][QS]और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फंदों से बच जाते हैं। [QE]
28. [QS]राजा की महिमा प्रजा की बहुतायत से होती है, [QE][QS]परन्तु जहाँ प्रजा नहीं, वहाँ हाकिम नाश हो जाता है। [QE]
29. [QS]जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है वह बड़ा समझवाला है, [QE][QS]परन्तु जो अधीर होता है, वह मूर्खता को बढ़ाता है। [QE]
30. [QS]शान्त मन*, तन का जीवन है, [QE][QS]परन्तु ईर्ष्या से हड्डियाँ भी गल जाती हैं। [QE]
31. [QS]जो कंगाल पर अंधेर करता, वह उसके कर्ता की निन्दा करता है, [QE][QS]परन्तु जो दरिद्र पर अनुग्रह करता, वह उसकी महिमा करता है। [QE]
32. [QS]दुष्ट मनुष्य बुराई करता हुआ नाश हो जाता है, [QE][QS]परन्तु धर्मी को मृत्यु के समय भी शरण मिलती है। [QE]
33. [QS]समझवाले के मन में बुद्धि वास किए रहती है, [QE][QS]परन्तु मूर्ख मनुष्य बुद्धि के विषय में कुछ भी नहीं जानता। [QE]
34. [QS]जाति की बढ़ती धर्म ही से होती है, [QE][QS]परन्तु पाप से देश के लोगों का अपमान होता है। [QE]
35. [QS]जो कर्मचारी बुद्धि से काम करता है उस पर राजा प्रसन्न होता है, [QE][QS]परन्तु जो लज्जा के काम करता, उस पर वह रोष करता है। [QE]