1. क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो दुष्टों की योजना पर* नहीं चलता, [QBR] और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; [QBR] और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है! [QBR]
2. परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; [QBR] और उसकी व्यवस्था पर रात-दिन ध्यान करता रहता है। [QBR]
3. वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती पानी की धाराओं के किनारे लगाया गया है* [QBR] और अपनी ऋतु में फलता है, [QBR] और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। [QBR] और जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है। [QBR]
4. दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, [QBR] वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है। [QBR]
5. इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, [QBR] और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे; [QBR]
6. क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, [QBR] परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा। [PE]