1. {झूठे अभियोक्ता के विरुद्ध याचिका} [PS] हे परमेश्वर तू, जिसकी मैं स्तुति करता हूँ, चुप न रह! [QBR]
2. क्योंकि दुष्ट और कपटी मनुष्यों ने मेरे विरुद्ध मुँह खोला है, [QBR] वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं। [QBR]
3. उन्होंने बैर के वचनों से मुझे चारों ओर घेर लिया है, [QBR] और व्यर्थ मुझसे लड़ते हैं। (यूह. 15:25) [QBR]
4. मेरे प्रेम के बदले में वे मेरी चुगली करते हैं, [QBR] परन्तु मैं तो प्रार्थना में लौलीन रहता हूँ। [QBR]
5. उन्होंने भलाई के बदले में मुझसे बुराई की [QBR] और मेरे प्रेम के बदले मुझसे बैर किया है। [QBR]
6. तू उसको किसी दुष्ट के अधिकार में रख, [QBR] और कोई विरोधी उसकी दाहिनी ओर खड़ा रहे। [QBR]
7. जब उसका न्याय किया जाए, तब वह दोषी निकले, [QBR] और उसकी प्रार्थना पाप गिनी जाए! [QBR]
8. उसके दिन थोड़े हों, [QBR] और उसके पद को दूसरा ले! (प्रेरि. 1:20) [QBR]
9. उसके बच्चे अनाथ हो जाएँ, [QBR] और उसकी स्त्री विधवा हो जाए! [QBR]
10. और उसके बच्चे मारे-मारे फिरें, और भीख माँगा करे; [QBR] उनको अपने उजड़े हुए घर से दूर जाकर टुकड़े माँगना पड़े! [QBR]
11. महाजन फंदा लगाकर, उसका सर्वस्व ले ले*; [QBR] और परदेशी उसकी कमाई को लूट लें! [QBR]
12. कोई न हो जो उस पर करुणा करता रहे, [QBR] और उसके अनाथ बालकों पर कोई तरस न खाए! [QBR]
13. उसका वंश नाश हो जाए, [QBR] दूसरी पीढ़ी में उसका नाम मिट जाए! [QBR]
14. उसके पितरों का अधर्म यहोवा को स्मरण रहे, [QBR] और उसकी माता का पाप न मिटे! [QBR]
15. वह निरन्तर यहोवा के सम्मुख रहे, [QBR] वह उनका नाम पृथ्वी पर से मिटे! [QBR]
16. क्योंकि वह दुष्ट, करुणा करना भूल गया [QBR] वरन् दीन और दरिद्र को सताता था [QBR] और मार डालने की इच्छा से खेदित मनवालों के पीछे पड़ा रहता था। [QBR]
17. वह श्राप देने से प्रीति रखता था, और श्राप उस पर आ पड़ा; [QBR] वह आशीर्वाद देने से प्रसन्न न होता था, [QBR] इसलिए आशीर्वाद उससे दूर रहा। [QBR]
18. वह श्राप देना वस्त्र के समान पहनता था, [QBR] और वह उसके पेट में जल के समान [QBR] और उसकी हड्डियों में तेल के समान* समा गया। [QBR]
19. वह उसके लिये ओढ़ने का काम दे, [QBR] और फेंटे के समान उसकी कटि में नित्य कसा रहे। [QBR]
20. यहोवा की ओर से मेरे विरोधियों को, [QBR] और मेरे विरुद्ध बुरा कहनेवालों को यही बदला मिले! [QBR]
21. परन्तु हे यहोवा प्रभु, तू अपने नाम के निमित्त मुझसे बर्ताव कर; [QBR] तेरी करुणा तो बड़ी है, इसलिए तू मुझे छुटकारा दे! [QBR]
22. क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूँ, [QBR] और मेरा हृदय घायल हुआ है*। [QBR]
23. मैं ढलती हुई छाया के समान जाता रहा हूँ; [QBR] मैं टिड्डी के समान उड़ा दिया गया हूँ। [QBR]
24. उपवास करते-करते मेरे घुटने निर्बल हो गए; [QBR] और मुझ में चर्बी न रहने से मैं सूख गया हूँ। [QBR]
25. मेरी तो उन लोगों से नामधराई होती है; [QBR] जब वे मुझे देखते, तब सिर हिलाते हैं। (इब्रा. 10:12-13, लूका 20:42-43) [QBR]
26. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी सहायता कर! [QBR] अपनी करुणा के अनुसार मेरा उद्धार कर! [QBR]
27. जिससे वे जाने कि यह तेरा काम है, [QBR] और हे यहोवा, तूने ही यह किया है! [QBR]
28. वे मुझे कोसते तो रहें, परन्तु तू आशीष दे! [QBR] वे तो उठते ही लज्जित हों, परन्तु तेरा दास आनन्दित हो! (1 कुरि. 4:12) [QBR]
29. मेरे विरोधियों को अनादररूपी वस्त्र पहनाया जाए, [QBR] और वे अपनी लज्जा को कम्बल के समान ओढ़ें! [QBR]
30. मैं यहोवा का बहुत धन्यवाद करूँगा, [QBR] और बहुत लोगों के बीच में उसकी स्तुति करूँगा। [QBR]
31. क्योंकि वह दरिद्र की दाहिनी ओर खड़ा रहेगा, [QBR] कि उसको प्राण-दण्ड देनेवालों से बचाए। [PE]