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नहूम
हबक्कूक
सपन्याह
हाग्गै
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नई टैस्टमैंट
मत्ती
मरकुस
लूका
यूहन्ना
प्रेरितों के काम
रोमियो
1 कुरिन्थियों
2 कुरिन्थियों
गलातियों
इफिसियों
फिलिप्पियों
कुलुस्सियों
1 थिस्सलुनीकियों
2 थिस्सलुनीकियों
1 तीमुथियुस
2 तीमुथियुस
तीतुस
फिलेमोन
इब्रानियों
याकूब
1 पतरस
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उत्पत्ति 50:13
उत्पत्ति
निर्गमन
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यहोशू
न्यायियों
रूत
1 शमूएल
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योना
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नहूम
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सपन्याह
हाग्गै
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मरकुस
लूका
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1 कुरिन्थियों
2 कुरिन्थियों
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1 थिस्सलुनीकियों
2 थिस्सलुनीकियों
1 तीमुथियुस
2 तीमुथियुस
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उत्पत्ति 50:13 (05 41 am)
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उत्पत्ति 50:13
1
तब
यूसुफ
अपने
पिता
के
मुंह
पर
गिरकर
रोया
और
उसे
चूमा।
2
और
यूसुफ
ने
उन
वैद्यों
को,
जो
उसके
सेवक
थे,
आज्ञा
दी,
कि
मेरे
पिता
की
लोथ
में
सुगन्धद्रव्य
भरो;
तब
वैद्यों
ने
इस्राएल
की
लोथ
में
सुगन्धद्रव्य
भर
दिए।
3
और
उसके
चालीस
दिन
पूरे
हुए।
क्योंकि
जिनकी
लोथ
में
सुगन्धद्रव्य
भरे
जाते
हैं,
उन
को
इतने
ही
दिन
पूरे
लगते
हैं:
और
मिस्री
लोग
उसके
लिये
सत्तर
दिन
तक
विलाप
करते
रहे॥
4
जब
उसके
विलाप
के
दिन
बीत
गए,
तब
यूसुफ
फिरौन
के
घराने
के
लोगों
से
कहने
लगा,
यदि
तुम्हारी
अनुग्रह
की
दृष्टि
मुझ
पर
हो
तो
मेरी
यह
बिनती
फिरौन
को
सुनाओ,
5
कि
मेरे
पिता
ने
यह
कहकर,
कि
देख
मैं
मरने
पर
हूं,
मुझे
यह
शपथ
खिलाई,
कि
जो
कबर
तू
ने
अपने
लिये
कनान
देश
में
खुदवाई
है
उसी
में
मैं
तुझे
मिट्टी
दूंगा
इसलिये
अब
मुझे
वहां
जा
कर
अपने
पिता
को
मिट्टी
देने
की
आज्ञा
दे,
तत्पश्चात्
मैं
लौट
आऊंगा।
6
तब
फिरौन
ने
कहा,
जा
कर
अपने
पिता
की
खिलाई
हुई
शपथ
के
अनुसार
उन
को
मिट्टी
दे।
7
सो
यूसुफ
अपने
पिता
को
मिट्टी
देने
के
लिये
चला,
और
फिरौन
के
सब
कर्मचारी,
अर्थात
उसके
भवन
के
पुरनिये,
और
मिस्र
देश
के
सब
पुरनिये
उसके
संग
चले।
8
और
यूसुफ
के
घर
के
सब
लोग,
और
उसके
भाई,
और
उसके
पिता
के
घर
के
सब
लोग
भी
संग
गए;
पर
वे
अपने
बालबच्चों,
और
भेड़-बकरियों,
और
गाय-बैलों
को
गोशेन
देश
में
छोड़
गए।
9
और
उसके
संग
रथ
और
सवार
गए,
सो
भीड़
बहुत
भारी
हो
गई।
10
जब
वे
आताद
के
खलिहान
तक,
जो
यरदन
नदी
के
पार
है
पहुंचे,
तब
वहां
अत्यन्त
भारी
विलाप
किया,
और
यूसुफ
ने
अपने
पिता
के
सात
दिन
का
विलाप
कराया।
11
आताद
के
खलिहान
में
के
विलाप
को
देखकर
उस
देश
के
निवासी
कनानियों
ने
कहा,
यह
तो
मिस्रियों
का
कोई
भारी
विलाप
होगा,
इसी
कारण
उस
स्थान
का
नाम
आबेलमिस्रैम
पड़ा,
और
वह
यरदन
के
पार
है।
12
और
इस्राएल
के
पुत्रों
ने
उससे
वही
काम
किया
जिसकी
उसने
उन
को
आज्ञा
दी
थी:
13
अर्थात
उन्होंने
उसको
कनान
देश
में
ले
जाकर
मकपेला
की
उस
भूमिवाली
गुफा
में,
जो
मम्रे
के
साम्हने
हैं,
मिट्टी
दी;
जिस
को
इब्राहीम
ने
हित्ती
एप्रोन
के
हाथ
से
इस
निमित्त
मोल
लिया
था,
कि
वह
कबरिस्तान
के
लिये
उसकी
निज
भूमि
हो॥
14
अपने
पिता
को
मिट्टी
देकर
यूसुफ
अपने
भाइयोंऔर
उन
सब
समेत,
जो
उसके
पिता
को
मिट्टी
देने
के
लिये
उसके
संग
गए
थे,
मिस्र
में
लौट
आया।
15
जब
यूसुफ
के
भाइयों
ने
देखा
कि
हमारा
पिता
मर
गया
है,
तब
कहने
लगे,
कदाचित
यूसुफ
अब
हमारे
पीछे
पड़े,
और
जितनी
बुराई
हम
ने
उससे
की
थी
सब
का
पूरा
पलटा
हम
से
ले।
16
इसलिये
उन्होंने
यूसुफ
के
पास
यह
कहला
भेजा,
कि
तेरे
पिता
ने
मरने
से
पहिले
हमें
यह
आज्ञा
दी
थी,
17
कि
तुम
लोग
यूसुफ
से
इस
प्रकार
कहना,
कि
हम
बिनती
करते
हैं,
कि
तू
अपने
भाइयों
के
अपराध
और
पाप
को
क्षमा
कर;
हम
ने
तुझ
से
बुराई
तो
की
थी,
पर
अब
अपने
पिता
के
परमेश्वर
के
दासों
का
अपराध
क्षमा
कर।
उनकी
ये
बातें
सुनकर
यूसुफ
रो
पड़ा।
18
और
उसके
भाई
आप
भी
जाकर
उसके
साम्हने
गिर
पड़े,
और
कहा,
देख,
हम
तेरे
दास
हैं।
19
यूसुफ
ने
उन
से
कहा,
मत
डरो,
क्या
मैं
परमेश्वर
की
जगह
पर
हूं?
20
यद्यपि
तुम
लोगों
ने
मेरे
लिये
बुराई
का
विचार
किया
था;
परन्तु
परमेश्वर
ने
उसी
बात
में
भलाई
का
विचार
किया,
जिस
से
वह
ऐसा
करे,
जैसा
आज
के
दिन
प्रगट
है,
कि
बहुत
से
लोगों
के
प्राण
बचे
हैं।
21
सो
अब
मत
डरो:
मैं
तुम्हारा
और
तुम्हारे
बाल-बच्चों
का
पालन
पोषण
करता
रहूंगा;
इस
प्रकार
उसने
उन
को
समझा
बुझाकर
शान्ति
दी॥
22
और
यूसुफ
अपने
पिता
के
घराने
समेत
मिस्र
में
रहता
रहा,
और
यूसुफ
एक
सौ
दस
वर्ष
जीवित
रहा।
23
और
यूसुफ
एप्रैम
के
परपोतों
तक
देखने
पाया:
और
मनश्शे
के
पोते,
जो
माकीर
के
पुत्र
थे,
वे
उत्पन्न
हो
कर
यूसुफ
से
गोद
में
लिए
गए।
24
और
यूसुफ
ने
अपने
भाइयों
से
कहा
मैं
तो
मरने
पर
हूं;
परन्तु
परमेश्वर
निश्चय
तुम्हारी
सुधि
लेगा,
और
तुम्हें
इस
देश
से
निकाल
कर
उस
देश
में
पहुंचा
देगा,
जिसके
देने
की
उसने
इब्राहीम,
इसहाक,
और
याकूब
से
शपथ
खाई
थी।
25
फिर
यूसुफ
ने
इस्राएलियों
से
यह
कहकर,
कि
परमेश्वर
निश्चय
तुम्हारी
सुधि
लेगा,
उन
को
इस
विषय
की
शपथ
खिलाई,
कि
हम
तेरी
हड्डियों
को
वहां
से
उस
देश
में
ले
जाएंगे।
26
निदान
यूसुफ
एक
सौ
दस
वर्ष
का
हो
कर
मर
गया:
और
उसकी
लोथ
में
सुगन्धद्रव्य
भरे
गए,
और
वह
लोथ
मिस्र
में
एक
सन्दूक
में
रखी
गई॥
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