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अय्यूब 24:12
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अय्यूब 24:12 (06 02 pm)
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अय्यूब 24:12
1
सर्वशक्तिमान
ने
समय
क्यों
नहीं
ठहराया,
और
जो
लोग
उसका
ज्ञान
रखते
हैं
वे
उसके
दिन
क्यों
देखने
नहीं
पाते?
2
कुछ
लोग
भूमि
की
सीमा
को
बढ़ाते,
और
भेड़
बकरियां
छीन
कर
चराते
हैं।
3
वे
अनाथों
का
गदहा
हांक
ले
जाते,
और
विधवा
का
बैल
बन्धक
कर
रखते
हैं।
4
वे
दरिद्र
लोगों
को
मार्ग
से
हटा
देते,
और
देश
के
दीनों
को
इकट्ठे
छिपना
पड़ता
है।
5
देखो,
वे
जंगली
गदहों
की
नाईं
अपने
काम
को
और
कुछ
भोजन
यत्न
से
ढूंढ़ने
को
निकल
जाते
हैं;
उनके
लड़के-बालों
का
भोजन
उन
को
जंगल
से
मिलता
है।
6
उन
को
खेत
में
चारा
काटना,
और
दुष्टों
की
बची
बचाई
दाख
बटोरना
पड़ता
है।
7
रात
को
उन्हें
बिना
वस्त्र
नंगे
पड़े
रहना
और
जाड़े
के
समय
बिना
ओढ़े
पड़े
रहना
पड़ता
है।
8
वे
पहाड़ों
पर
की
झडिय़ों
से
भीगे
रहते,
और
शरण
न
पाकर
चट्टान
से
लिपट
जाते
हैं।
9
कुछ
लोग
अनाथ
बालक
को
माँ
की
छाती
पर
से
छीन
लेते
हैं,
और
दीन
लोगों
से
बन्धक
लेते
हैं।
10
जिस
से
वे
बिना
वस्त्र
नंगे
फिरते
हैं;
और
भूख
के
मारे,
पूलियां
ढोते
हैं।
11
वे
उनकी
भीतों
के
भीतर
तेल
पेरते
और
उनके
कुणडों
में
दाख
रौंदते
हुए
भी
प्यासे
रहते
हैं।
12
वे
बड़े
नगर
में
कराहते
हैं,
और
घायल
किए
हुओं
का
जी
दोहाई
देता
है;
परन्तु
ईश्वर
मूर्खता
का
हिसाब
नहीं
लेता।
13
फिर
कुछ
लोग
उजियाले
से
बैर
रखते,
वे
उसके
मार्गों
को
नहीं
पहचानते,
और
न
उसके
मार्गों
में
बने
रहते
हैं।
14
खूनी,
पह
फटते
ही
उठ
कर
दीन
दरिद्र
मनुष्य
को
घात
करता,
और
रात
को
चोर
बन
जाता
है।
15
व्यभिचारी
यह
सोच
कर
कि
कोई
मुझ
को
देखने
न
पाए,
दिन
डूबने
की
राह
देखता
रहता
है,
और
वह
अपना
मुंह
छिपाए
भी
रखता
है।
16
वे
अन्धियारे
के
समय
घरों
में
सेंध
मारते
और
दिन
को
छिपे
रहते
हैं;
वे
उजियाले
को
जानते
भी
नहीं।
17
इसलिये
उन
सभों
को
भोर
का
प्रकाश
घोर
अन्धकार
सा
जान
पड़ता
है,
क्योंकि
घोर
अन्धकार
का
भय
वे
जानते
हैं।
18
वे
जल
के
ऊपर
हलकी
वस्तु
के
सरीखे
हैं,
उनके
भाग
को
पृथ्वी
के
रहने
वाले
कोसते
हैं,
और
वे
अपनी
दाख
की
बारियों
में
लौटने
नहीं
पाते।
19
जैसे
सूखे
और
घाम
से
हिम
का
जल
सूख
जाता
है
वैसे
ही
पापी
लोग
अधोलोक
में
सूख
जाते
हैं।
20
माता
भी
उसको
भूल
जाती,
और
कीड़े
उसे
चूसते
हें,
भवीष्य
में
उसका
स्मरण
न
रहेगा;
इस
रीति
टेढ़ा
काम
करने
वाला
वृक्ष
की
नाईं
कट
जाता
है।
21
वह
बांज
स्त्री
को
जो
कभी
नहीं
जनी
लूटता,
और
विधवा
से
भलाई
करना
नहीं
चाहता
है।
22
बलात्कारियों
को
भी
ईश्वर
अपनी
शक्ति
से
खींच
लेता
है,
जो
जीवित
रहने
की
आशा
नहीं
रखता,
वह
भी
फिर
उठ
बैठता
है।
23
उन्हें
ऐसे
बेखटके
कर
देता
है,
कि
वे
सम्भले
रहते
हैं;
उौर
उसकी
कृपादृष्टि
उनकी
चाल
पर
लगी
रहती
है।
24
वे
बढ़ते
हैं,
तब
थोड़ी
बेर
में
जाते
रहते
हैं,
वे
दबाए
जाते
और
सभोंनकी
नाईं
रख
लिये
जाते
हैं,
और
अनाज
की
बाल
की
नाईं
काटे
जाते
हैं।
25
क्या
यह
सब
सच
नहीं!
कौन
मुझे
झुठलाएगा?
कौन
मेरी
बातें
निकम्मी
ठहराएगा?
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