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मरकुस 14:1
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मरकुस 14:1 (12 41 pm)
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मरकुस 14:1
1
दो
दिन
के
बाद
फसह
और
अखमीरी
रोटी
का
पर्व्व
होनेवाला
था:
और
महायाजक
और
शास्त्री
इस
बात
की
खोज
में
थे
कि
उसे
क्योंकर
छल
से
पकड़
कर
मार
डालें।
2
परन्तु
कहते
थे,
कि
पर्व्व
के
दिन
नहीं,
कहीं
ऐसा
न
हो
कि
लोगों
में
बलवा
मचे॥
3
जब
वह
बैतनिय्याह
में
शमौन
कोढ़ी
के
घर
भोजन
करने
बैठा
हुआ
था
तब
एक
स्त्री
संगमरमर
के
पात्र
में
जटामांसी
का
बहुमूल्य
शुद्ध
इत्र
लेकर
आई;
और
पात्र
तोड़
कर
इत्र
को
उसके
सिर
पर
उण्डेला।
4
परन्तु
कोई
कोई
अपने
मन
में
रिसयाकर
कहने
लगे,
इस
इत्र
को
क्यों
सत्यनाश
किया
गया?
5
क्योंकि
यह
इत्र
तो
तीन
सौ
दीनार
से
अधिक
मूल्य
में
बेचकर
कंगालों
को
बांटा
जा
सकता
था,
ओर
वे
उस
को
झिड़कने
लगे।
6
यीशु
ने
कहा;
उसे
छोड़
दो;
उसे
क्यों
सताते
हो?
उस
ने
तो
मेरे
साथ
भलाई
की
है।
7
कंगाल
तुम्हारे
साथ
सदा
रहते
हैं:
और
तुम
जब
चाहो
तब
उन
से
भलाई
कर
सकते
हो;
पर
मैं
तुम्हारे
साथ
सदा
न
रहूंगा।
8
जो
कुछ
वह
कर
सकी,
उस
ने
किया;
उस
ने
मेरे
गाड़े
जाने
की
तैयारी
में
पहिले
से
मेरी
देह
पर
इत्र
मला
है।
9
मैं
तुम
से
सच
कहता
हूं,
कि
सारे
जगत
में
जहां
कहीं
सुसमाचार
प्रचार
किया
जाएगा,
वहां
उसके
इस
काम
की
चर्चा
भी
उसके
स्मरण
में
की
जाएगी॥
10
तब
यहूदा
इसकिरयोती
जो
बारह
में
से
एक
था,
महायाजकों
के
पास
गया,
कि
उसे
उन
के
हाथ
पकड़वा
दे।
11
वे
यह
सुनकर
आनन्दित
हुए,
और
उस
को
रूपये
देना
स्वीकार
किया,
और
यह
अवसर
ढूंढ़ने
लगा
कि
उसे
किसी
प्रकार
पकड़वा
दे॥
12
अखमीरी
रोटी
के
पर्व्व
के
पहिले
दिन,
जिस
में
वे
फसह
का
बलिदान
करते
थे,
उसके
चेलों
ने
उस
से
पूछा,
तू
कहां
चाहता
है,
कि
हम
जाकर
तेरे
लिये
फसह
खाने
की
तैयारी
करें?
13
उस
ने
अपने
चेलों
में
से
दो
को
यह
कहकर
भेजा,
कि
नगर
में
जाओ,
और
एक
मनुष्य
जल
का
घड़ा
उठाए,
हुए
तुम्हें
मिलेगा,
उसके
पीछे
हो
लेना।
14
और
वह
जिस
घर
में
जाए
उस
घर
के
स्वामी
से
कहना;
गुरू
कहता
है,
कि
मेरी
पाहुनशाला
जिस
में
मैं
अपने
चेलों
के
साथ
फसह
खाऊं
कहां
है?
15
वह
तुम्हें
एक
सजी
सजाई,
और
तैयार
की
हुई
बड़ी
अटारी
दिखा
देगा,
वहां
हमारे
लिये
तैयारी
करो।
16
सो
चेले
निकलकर
नगर
में
आये
और
जैसा
उस
ने
उन
से
कहा
था,
वैसा
ही
पाया,
और
फसह
तैयार
किया॥
17
जब
सांझ
हुई,
तो
वह
बारहों
के
साथ
आया।
18
और
जब
वे
बैठे
भोजन
कर
रहे
थे,
तो
यीशु
ने
कहा;
मैं
तुम
से
सच
कहता
हूं,
कि
तुम
में
से
एक,
जो
मेरे
साथ
भोजन
कर
रहा
है,
मुझे
पकड़वाएगा।
19
उन
पर
उदासी
छा
गई
और
वे
एक
एक
करके
उस
से
कहने
लगे;
क्या
वह
मैं
हूं?
20
उस
ने
उन
से
कहा,
वह
बारहों
में
से
एक
है,
जो
मेरे
साथ
थाली
में
हाथ
डालता
है।
21
क्योंकि
मनुष्य
का
पुत्र
तो,
जैसा
उसके
विषय
में
लिखा
है,
जाता
ही
है;
परन्तु
उस
मनुष्य
पर
हाय
जिस
के
द्वारा
मनुष्य
का
पुत्र
पकड़वाया
जाता
है!
यदि
उस
मनुष्य
का
जन्म
ही
न
होता,
तो
उसके
लिये
भला
होता॥
22
और
जब
वे
खा
ही
रहे
थे
तो
उस
ने
रोटी
ली,
और
आशीष
मांगकर
तोड़ी,
और
उन्हें
दी,
और
कहा,
लो,
यह
मेरी
देह
है।
23
फिर
उस
ने
कटोरा
लेकर
धन्यवाद
किया,
और
उन्हें
दिया;
और
उन
सब
ने
उस
में
से
पीया।
24
और
उस
ने
उन
से
कहा,
यह
वाचा
का
मेरा
वह
लोहू
है,
जो
बहुतों
के
लिये
बहाया
जाता
है।
25
मैं
तुम
से
सच
कहता
हूं,
कि
दाख
का
रस
उस
दिन
तक
फिर
कभी
न
पीऊंगा,
जब
तक
परमेश्वर
के
राज्य
में
नया
न
पीऊं॥
26
फिर
वे
भजन
गाकर
बाहर
जैतून
के
पहाड़
पर
गए॥
27
तब
यीशु
ने
उन
से
कहा;
तुम
सब
ठोकर
खाओगे,
क्योंकि
लिखा
है,
कि
मैं
रखवाले
को
मारूंगा,
और
भेड़
तित्तर
बित्तर
हो
जाएंगी।
28
परन्तु
मैं
अपने
जी
उठने
के
बाद
तुम
से
पहिले
गलील
को
जाऊंगा।
29
पतरस
ने
उस
से
कहा;
यदि
सब
ठोकर
खाएं
तो
खांए,
पर
मैं
ठोकर
नहीं
खाऊंगा।
30
यीशु
ने
उस
से
कहा;
मैं
तुझ
से
सच
कहता
हूं,
कि
आज
ही
इसी
रात
को
मुर्गे
के
दो
बार
बांग
देने
से
पहिले,
तू
तीन
बार
मुझ
से
मुकर
जाएगा।
31
पर
उस
ने
और
भी
जोर
देकर
कहा,
यदि
मुझे
तेरे
साथ
मरना
भी
पड़े
तौभी
तेरा
इन्कार
कभी
न
करूंगा:
इसी
प्रकार
और
सब
ने
भी
कहा॥
32
फिर
वे
गतसमने
नाम
एक
जगह
में
आए,
और
उस
ने
अपने
चेलों
से
कहा,
यहां
बैठे
रहो,
जब
तक
मैं
प्रार्थना
करूं।
33
और
वह
पतरस
और
याकूब
और
यूहन्ना
को
अपने
साथ
ले
गया:
और
बहुत
ही
अधीर,
और
व्याकुल
होने
लगा।
34
और
उन
से
कहा;
मेरा
मन
बहुत
उदास
है,
यहां
तक
कि
मैं
मरने
पर
हूं:
तुम
यहां
ठहरो,
और
जागते
रहो।
35
और
वह
थोड़ा
आगे
बढ़ा,
और
भूमि
पर
गिरकर
प्रार्थना
करने
लगा,
कि
यदि
हो
सके
तो
यह
घड़ी
मुझ
पर
से
टल
जाए।
36
और
कहा,
हे
अब्बा,
हे
पिता,
तुझ
से
सब
कुछ
हो
सकता
है;
इस
कटोरे
को
मेरे
पास
से
हटा
ले:
तौभी
जैसा
मैं
चाहता
हूं
वैसा
नहीं,
पर
जो
तू
चाहता
है
वही
हो।
37
फिर
वह
आया,
और
उन्हें
सोते
पाकर
पतरस
से
कहा;
हे
शमौन
तू
सो
रहा
है?
क्या
तू
एक
घड़ी
भी
न
जाग
सका?
38
जागते
और
प्रार्थना
करते
रहो
कि
तुम
परीक्षा
में
न
पड़ो:
आत्मा
तो
तैयार
है,
पर
शरीर
दुर्बल
है।
39
और
वह
फिर
चला
गया,
और
वही
बात
कहकर
प्रार्थना
की।
40
और
फिर
आकर
उन्हें
सोते
पाया,
क्योंकि
उन
की
आंखे
नींद
से
भरी
थीं;
और
नहीं
जानते
थे
कि
उसे
क्या
उत्तर
दें।
41
फिर
तीसरी
बार
आकर
उन
से
कहा;
अब
सोते
रहो
और
विश्राम
करो,
बस,
घड़ी
आ
पहुंची;
देखो
मनुष्य
का
पुत्र
पापियों
के
हाथ
पकड़वाया
जाता
है।
42
उठो,
चलें:
देखो,
मेरा
पकड़वाने
वाला
निकट
आ
पहुंचा
है॥
43
वह
यह
कह
ही
रहा
था,
कि
यहूदा
जो
बारहों
में
से
था,
अपने
साथ
महायाजकों
और
शास्त्रियों
और
पुरनियों
की
ओर
से
एक
बड़ी
भीड़
तलवारें
और
लाठियां
लिए
हुए
तुरन्त
आ
पहुंची।
44
और
उसके
पकड़ने
वाले
ने
उन्हें
यह
पता
दिया
था,
कि
जिस
को
मैं
चूमूं
वही
है,
उसे
पकड़
कर
यतन
से
ले
जाना।
45
और
वह
आया,
और
तुरन्त
उसके
पास
जाकर
कहा;
हे
रब्बी
और
उस
को
बहुत
चूमा।
46
तब
उन्होंने
उस
पर
हाथ
डालकर
उसे
पकड़
लिया।
47
उन
में
से
जो
पास
खड़े
थे,
एक
ने
तलवार
खींच
कर
महायाजक
के
दास
पर
चलाई,
और
उसका
कान
उड़ा
दिया।
48
यीशु
ने
उन
से
कहा;
क्या
तुम
डाकू
जानकर
मेरे
पकड़ने
के
लिये
तलवारें
और
लाठियां
लेकर
निकले
हो?
49
मैं
तो
हर
दिन
मन्दिर
में
तुम्हारे
साथ
रहकर
उपदेश
दिया
करता
था,
और
तब
तुम
ने
मुझे
न
पकड़ा:
परन्तु
यह
इसलिये
हुआ
है
कि
पवित्र
शास्त्र
की
बातें
पूरी
हों।
50
इस
पर
सब
चेले
उसे
छोड़कर
भाग
गए॥
51
और
एक
जवान
अपनी
नंगी
देह
पर
चादर
ओढ़े
हुए
उसके
पीछे
हो
लिया;
और
लोगों
ने
उसे
पकड़ा।
52
पर
वह
चादर
छोड़कर
नंगा
भाग
गया॥
53
फिर
वे
यीशु
को
महायाजक
के
पास
ले
गए;
और
सब
महायाजक
और
पुरिनए
और
शास्त्री
उसके
यहां
इकट्ठे
हो
गए।
54
पतरस
दूर
ही
दूर
से
उसके
पीछे
पीछे
महायाजक
के
आंगन
के
भीतर
तक
गया,
और
प्यादों
के
साथ
बैठ
कर
आग
तापने
लगा।
55
महायाजक
और
सारी
महासभा
यीशु
के
मार
डालने
के
लिये
उसके
विरोध
में
गवाही
की
खोज
में
थे,
पर
न
मिली।
56
क्योंकि
बहुतेरे
उसके
विरोध
में
झूठी
गवाही
दे
रहे
थे,
पर
उन
की
गवाही
एक
सी
न
थी।
57
तब
कितनों
ने
उठकर
उस
पर
यह
झूठी
गवाही
दी।
58
कि
हम
ने
इसे
यह
कहते
सुना
है
कि
मैं
इस
हाथ
के
बनाए
हुए
मन्दिर
को
ढ़ा
दूंगा,
और
तीन
दिन
में
दूसरा
बनाऊंगा,
जो
हाथ
से
न
बना
हो।
59
इस
पर
भी
उन
की
गवाही
एक
सी
न
निकली।
60
तब
महायाजक
ने
बीच
में
खड़े
होकर
यीशु
से
पूछा;
कि
तू
कोई
उत्तर
नहीं
देता?
ये
लोग
तेरे
विरोध
में
क्या
गवाही
देते
हैं?
61
परन्तु
वह
मौन
साधे
रहा,
और
कुछ
उत्तर
न
दिया:
महायाजक
ने
उस
से
फिर
पूछा,
क्या
तू
उस
पर
म
धन्य
का
पुत्र
मसीह
है?
62
यीशु
ने
कहा;
हां
मैं
हूं:
और
तुम
मनुष्य
के
पुत्र
को
सर्वशक्तिमान
की
दाहिनी
और
बैठे,
और
आकाश
के
बादलों
के
साथ
आते
देखोगे।
63
तब
महायाजक
ने
अपने
वस्त्र
फाड़कर
कहा;
अब
हमें
गवाहों
का
और
क्या
प्रयोजन
है
64
तुम
ने
यह
निन्दा
सुनी:
तुम्हारी
क्या
राय
है?
उन
सब
ने
कहा,
वह
वध
के
योग्य
है।
65
तब
कोई
तो
उस
पर
थूकने,
और
कोई
उसका
मुंह
ढांपने
और
उसे
घूसे
मारने,
और
उस
से
कहने
लगे,
कि
भविष्यद्वाणी
कर:
और
प्यादों
ने
उसे
लेकर
थप्पड़
मारे॥
66
जब
पतरस
नीचे
आंगन
में
था,
तो
महायाजक
की
लौंडियों
में
से
एक
वहां
आई।
67
और
पतरस
को
आग
तापते
देखकर
उस
पर
टकटकी
लगाकर
देखा
और
कहने
लगी,
तू
भी
तो
उस
नासरी
यीशु
के
साथ
था।
68
वह
मुकर
गया,
और
कहा,
कि
मैं
तो
नहीं
जानता
और
नहीं
समझता
कि
तू
क्या
कह
रही
है:
फिर
वह
बाहर
डेवढ़ी
में
गया;
और
मुर्गे
ने
बांग
दी।
69
वह
लौंडी
उसे
देखकर
उन
से
जो
पास
खड़े
थे,
फिर
कहने
लगी,
कि
वह
उन
में
से
एक
है।
70
परन्तु
वह
फिर
मुकर
गया
और
थोड़ी
देर
बाद
उन्होंने
जो
पास
खड़े
थे
फिर
पतरस
से
कहा;
निश्चय
तू
उन
में
से
एक
है;
क्योंकि
तू
गलीली
भी
है।
71
तब
वह
धिक्कारने
देने
और
शपथ
खाने
लगा,
कि
मैं
उस
मनुष्य
को,
जिस
की
तुम
चर्चा
करते
हो,
नहीं
जानता।
72
तब
तुरन्त
दूसरी
बार
मुर्ग
ने
बांग
दी:
पतरस
को
वह
बात
जो
यीशु
ने
उस
से
कही
थी
स्मरण
आई,
कि
मुर्ग
के
दो
बार
बांग
देने
से
पहिले
तू
तीन
बार
मेरा
इन्कार
करेगा:
वह
इस
बात
को
सोचकर
रोने
लगा॥
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