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हाग्गै
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मरकुस
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यूहन्ना
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2 कुरिन्थियों
गलातियों
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1 थिस्सलुनीकियों
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तीतुस
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लूका 2:44
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लूका 2:44
1
उन
दिनों
में
औगूस्तुस
कैसर
की
ओर
से
आज्ञा
निकली,
कि
सारे
जगत
के
लोगों
के
नाम
लिखे
जाएं।
2
यह
पहिली
नाम
लिखाई
उस
समय
हुई,
जब
क्विरिनियुस
सूरिया
का
हाकिम
था।
3
और
सब
लोग
नाम
लिखवाने
के
लिये
अपने
अपने
नगर
को
गए।
4
सो
यूसुफ
भी
इसलिये
कि
वह
दाऊद
के
घराने
और
वंश
का
था,
गलील
के
नासरत
नगर
से
यहूदिया
में
दाऊद
के
नगर
बैतलहम
को
गया।
5
कि
अपनी
मंगेतर
मरियम
के
साथ
जो
गर्भवती
थी
नाम
लिखवाए।
6
उन
के
वहां
रहते
हुए
उसके
जनने
के
दिन
पूरे
हुए।
7
और
वह
अपना
पहिलौठा
पुत्र
जनी
और
उसे
कपड़े
में
लपेटकर
चरनी
में
रखा:
क्योंकि
उन
के
लिये
सराय
में
जगह
न
थी।
8
और
उस
देश
में
कितने
गड़ेरिये
थे,
जो
रात
को
मैदान
में
रहकर
अपने
झुण्ड
का
पहरा
देते
थे।
9
और
प्रभु
का
एक
दूत
उन
के
पास
आ
खड़ा
हुआ;
और
प्रभु
का
तेज
उन
के
चारों
ओर
चमका,
और
वे
बहुत
डर
गए।
10
तब
स्वर्गदूत
ने
उन
से
कहा,
मत
डरो;
क्योंकि
देखो
मैं
तुम्हें
बड़े
आनन्द
का
सुसमाचार
सुनाता
हूं
जो
सब
लोगों
के
लिये
होगा।
11
कि
आज
दाऊद
के
नगर
में
तुम्हारे
लिये
एक
उद्धारकर्ता
जन्मा
है,
और
यही
मसीह
प्रभु
है।
12
और
इस
का
तुम्हारे
लिये
यह
पता
है,
कि
तुम
एक
बालक
को
कपड़े
में
लिपटा
हुआ
और
चरनी
में
पड़ा
पाओगे।
13
तब
एकाएक
उस
स्वर्गदूत
के
साथ
स्वर्गदूतों
का
दल
परमेश्वर
की
स्तुति
करते
हुए
और
यह
कहते
दिखाई
दिया।
14
कि
आकाश
में
परमेश्वर
की
महिमा
और
पृथ्वी
पर
उन
मनुष्यों
में
जिनसे
वह
प्रसन्न
है
शान्ति
हो॥
15
जब
स्वर्गदूत
उन
के
पास
से
स्वर्ग
को
चले
गए,
तो
गड़ेरियों
ने
आपस
में
कहा,
आओ,
हम
बैतलहम
जाकर
यह
बात
जो
हुई
है,
और
जिसे
प्रभु
ने
हमें
बताया
है,
देखें।
16
और
उन्होंने
तुरन्त
जाकर
मरियम
और
यूसुफ
को
और
चरनी
में
उस
बालक
को
पड़ा
देखा।
17
इन्हें
देखकर
उन्होंने
वह
बात
जो
इस
बालक
के
विषय
में
उन
से
कही
गई
थी,
प्रगट
की।
18
और
सब
सुनने
वालों
ने
उन
बातों
से
जो
गड़िरयों
ने
उन
से
कहीं
आश्चर्य
किया।
19
परन्तु
मरियम
ये
सब
बातें
अपने
मन
में
रखकर
सोचती
रही।
20
और
गड़ेरिये
जैसा
उन
से
कहा
गया
था,
वैसा
ही
सब
सुनकर
और
देखकर
परमेश्वर
की
महिमा
और
स्तुति
करते
हुए
लौट
गए॥
21
जब
आठ
दिन
पूरे
हुए,
और
उसके
खतने
का
समय
आया,
तो
उसका
नाम
यीशु
रखा
गया,
जो
स्वर्गदूत
ने
उसके
पेट
में
आने
से
पहिले
कहा
था।
22
और
जब
मूसा
की
व्यवस्था
के
अनुसार
उन
के
शुद्ध
होने
के
दिन
पूरे
हुए
तो
वे
उसे
यरूशलेम
में
ले
गए,
कि
प्रभु
के
सामने
लाएं।
23
(जैसा
कि
प्रभु
की
व्यवस्था
में
लिखा
है
कि
हर
एक
पहिलौठा
प्रभु
के
लिये
पवित्र
ठहरेगा)।
24
और
प्रभु
की
व्यवस्था
के
वचन
के
अनुसार
पंडुकों
का
एक
जोड़ा,
या
कबूतर
के
दो
बच्चे
ला
कर
बलिदान
करें।
25
और
देखो,
यरूशलेम
में
शमौन
नाम
एक
मनुष्य
था,
और
वह
मनुष्य
धर्मी
और
भक्त
था;
और
इस्राएल
की
शान्ति
की
बाट
जोह
रहा
था,
और
पवित्र
आत्मा
उस
पर
था।
26
और
पवित्र
आत्मा
से
उस
को
चितावनी
हुई
थी,
कि
जब
तक
तू
प्रभु
के
मसीह
को
देख
ने
लेगा,
तक
तक
मृत्यु
को
न
देखेगा।
27
और
वह
आत्मा
के
सिखाने
से
मन्दिर
में
आया;
और
जब
माता-पिता
उस
बालक
यीशु
को
भीतर
लाए,
कि
उसके
लिये
व्यवस्था
की
रीति
के
अनुसार
करें।
28
तो
उस
ने
उसे
अपनी
गोद
में
लिया
और
परमेश्वर
का
धन्यवाद
करके
कहा,
29
हे
स्वामी,
अब
तू
अपने
दास
को
अपने
वचन
के
अनुसार
शान्ति
से
विदा
करता
है।
30
क्योंकि
मेरी
आंखो
ने
तेरे
उद्धार
को
देख
लिया
है।
31
जिसे
तू
ने
सब
देशों
के
लोगों
के
साम्हने
तैयार
किया
है।
32
कि
वह
अन्य
जातियों
को
प्रकाश
देने
के
लिये
ज्योति,
और
तेरे
निज
लोग
इस्राएल
की
महिमा
हो।
33
और
उसका
पिता
और
उस
की
माता
इन
बातों
से
जो
उसके
विषय
में
कही
जाती
थीं,
आश्चर्य
करते
थे।
34
तब
शमौन
ने
उन
को
आशीष
देकर,
उस
की
माता
मरियम
से
कहा;
देख,
वह
तो
इस्राएल
में
बहुतों
के
गिरने,
और
उठने
के
लिये,
और
एक
ऐसा
चिन्ह
होने
के
लिये
ठहराया
गया
है,
जिस
के
विरोध
में
बातें
की
जाएगीं
--
35
वरन
तेरा
प्राण
भी
तलवार
से
वार
पार
छिद
जाएगा--
इस
से
बहुत
हृदयों
के
विचार
प्रगट
होंगे।
36
और
अशेर
के
गोत्र
में
से
हन्नाह
नाम
फनूएल
की
बेटी
एक
भविष्यद्वक्तिन
थी:
वह
बहुत
बूढ़ी
थी,
और
ब्याह
होने
के
बाद
सात
वर्ष
अपने
पति
के
साथ
रह
पाई
थी।
37
वह
चौरासी
वर्ष
से
विधवा
थी:
और
मन्दिर
को
नहीं
छोड़ती
थी
पर
उपवास
और
प्रार्थना
कर
करके
रात-दिन
उपासना
किया
करती
थी।
38
और
वह
उस
घड़ी
वहां
आकर
प्रभु
का
धन्यवाद
करने
लगी,
और
उन
सभों
से,
जो
यरूशलेम
के
छुटकारे
की
बाट
जोहते
थे,
उसके
विषय
में
बातें
करने
लगी।
39
और
जब
वे
प्रभु
की
व्यवस्था
के
अनुसार
सब
कुछ
निपटा
चुके
तो
गलील
में
अपने
नगर
नासरत
को
फिर
चले
गए॥
40
और
बालक
बढ़ता,
और
बलवन्त
होता,
और
बुद्धि
से
परिपूर्ण
होता
गया;
और
परमेश्वर
का
अनुग्रह
उस
पर
था।
41
उसके
माता-पिता
प्रति
वर्ष
फसह
के
पर्व
में
यरूशलेम
को
जाया
करते
थे।
42
जब
वह
बारह
वर्ष
का
हुआ,
तो
वे
पर्व
की
रीति
के
अनुसार
यरूशलेम
को
गए।
43
और
जब
वे
उन
दिनों
को
पूरा
करके
लौटने
लगे,
तो
वह
लड़का
यीशु
यरूशलेम
में
रह
गया;
और
यह
उसके
माता-पिता
नहीं
जानते
थे।
44
वे
यह
समझकर,
कि
वह
और
यात्रियों
के
साथ
होगा,
एक
दिन
का
पड़ाव
निकल
गए:
और
उसे
अपने
कुटुम्बियों
और
जान-पहचानों
में
ढूंढ़ने
लगे।
45
पर
जब
नहीं
मिला,
तो
ढूंढ़ते-ढूंढ़ते
यरूशलेम
को
फिर
लौट
गए।
46
और
तीन
दिन
के
बाद
उन्होंने
उसे
मन्दिर
में
उपदेशकों
के
बीच
में
बैठे,
उन
की
सुनते
और
उन
से
प्रश्न
करते
हुए
पाया।
47
और
जितने
उस
की
सुन
रहे
थे,
वे
सब
उस
की
समझ
और
उसके
उत्तरों
से
चकित
थे।
48
तब
वे
उसे
देखकर
चकित
हुए
और
उस
की
माता
ने
उस
से
कहा;
हे
पुत्र,
तू
ने
हम
से
क्यों
ऐसा
व्यवहार
किया?
देख,
तेरा
पिता
और
मैं
कुढ़ते
हुए
तुझे
ढूंढ़ते
थे।
49
उस
ने
उन
से
कहा;
तुम
मुझे
क्यों
ढूंढ़ते
थे?
क्या
नहीं
जानते
थे,
कि
मुझे
अपने
पिता
के
भवन
में
होना
अवश्य
है?
50
परन्तु
जो
बात
उस
ने
उन
से
कही,
उन्होंने
उसे
नहीं
समझा।
51
तब
वह
उन
के
साथ
गया,
और
नासरत
में
आया,
और
उन
के
वश
में
रहा;
और
उस
की
माता
ने
ये
सब
बातें
अपने
मन
में
रखीं॥
52
और
यीशु
बुद्धि
और
डील-डौल
में
और
परमेश्वर
और
मनुष्यों
के
अनुग्रह
में
बढ़ता
गया॥
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