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2 थिस्सलुनीकियों
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तीतुस
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लूका 8:1
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लूका 8:1 (01 27 pm)
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लूका 8:1
1
इस
के
बाद
वह
नगर
नगर
और
गांव
गांव
प्रचार
करता
हुआ,
और
परमेश्वर
के
राज्य
का
सुसमाचार
सुनाता
हुआ,
फिरने
लगा।
2
और
वे
बारह
उसके
साथ
थे:
और
कितनी
स्त्रियां
भी
जो
दुष्टात्माओं
से
और
बीमारियों
से
छुड़ाई
गई
थीं,
और
वे
यह
हैं,
मरियम
जो
मगदलीनी
कहलाती
थी,
जिस
में
से
सात
दुष्टात्माएं
निकली
थीं।
3
और
हेरोदेस
के
भण्डारी
खोजा
की
पत्नी
योअन्ना
और
सूसन्नाह
और
बहुत
सी
और
स्त्रियां:
ये
तो
अपनी
सम्पत्ति
से
उस
की
सेवा
करती
थीं॥
4
जब
बड़ी
भीड़
इकट्ठी
हुई,
और
नगर
नगर
के
लोग
उसके
पास
चले
आते
थे,
तो
उस
ने
दृष्टान्त
में
कहा।
5
कि
एक
बोने
वाला
बीज
बोने
निकला:
बोते
हुए
कुछ
मार्ग
के
किनारे
गिरा,
और
रौंदा
गया,
और
आकाश
के
पक्षियों
ने
उसे
चुग
लिया।
6
और
कुछ
चट्टान
पर
गिरा,
और
उपजा,
परन्तु
तरी
न
मिलने
से
सूख
गया।
7
कुछ
झाड़ियों
के
बीच
में
गिरा,
और
झाड़ियों
ने
साथ
साथ
बढ़कर
उसे
दबा
लिया।
8
और
कुछ
अच्छी
भूमि
पर
गिरा,
और
उगकर
सौ
गुणा
फल
लाया:
यह
कहकर
उस
ने
ऊंचे
शब्द
से
कहा;
जिस
के
सुनने
के
कान
होंवह
सुन
ले॥
9
उसके
चेलों
ने
उस
से
पूछा,
कि
यह
दृष्टान्त
क्या
है?
उस
ने
कहा;
10
तुम
को
परमेश्वर
के
राज्य
के
भेदोंकी
समझ
दी
गई
है,
पर
औरों
को
दृष्टान्तों
में
सुनाया
जाता
है,
इसलिये
कि
वे
देखते
हुए
भी
न
देखें,
और
सुनते
हुए
भी
न
समझें।
11
दृष्टान्त
यह
है;
बीज
तो
परमेश्वर
का
वचन
है।
12
मार्ग
के
किनरे
के
वे
हैं,
जिन्हों
ने
सुना;
तब
शैतान
आकर
उन
के
मन
में
से
वचन
उठा
ले
जाता
है,
कि
कहीं
ऐसा
न
हो
कि
वे
विश्वास
करके
उद्धार
पाएं।
13
चट्टान
पर
के
वे
हैं,
कि
जब
सुनते
हैं,
तो
आनन्द
से
वचन
को
ग्रहण
तो
करते
हैं,
परन्तु
जड़
न
पकड़ने
से
वे
थोड़ी
देर
तक
विश्वास
रखते
हैं,
और
परीक्षा
के
समय
बहक
जाते
हैं।
14
जो
झाड़ियों
में
गिरा,
सो
वे
हैं,
जो
सुनते
हैं,
पर
होते
होते
चिन्ता
और
धन
और
जीवन
के
सुख
विलास
में
फंस
जाते
हैं,
और
उन
का
फल
नहीं
पकता।
15
पर
अच्छी
भूमि
में
के
वे
हैं,
जो
वचन
सुनकर
भले
और
उत्तम
मन
में
सम्भाले
रहते
हैं,
और
धीरज
से
फल
लाते
हैं॥
16
कोई
दीया
बार
के
बरतन
से
नहीं
छिपाता,
और
न
खाट
के
नीचे
रखता
है,
परन्तु
दीवट
पर
रखता
है,
कि
भीतर
आने
वाले
प्रकाश
पांए।
17
कुछ
छिपा
नहीं,
जो
प्रगट
न
हो;
और
न
कुछ
गुप्त
है,
जो
जाना
न
जाए,
और
प्रगट
न
हो।
18
इसलिये
चौकस
रहो,
कि
तुम
किस
रीति
से
सुनते
हो
क्योंकि
जिस
के
पास
है,
उसे
दिया
जाएगा;
और
जिस
के
पास
नहीं
है,
उस
से
वे
वह
भी
ले
लिया
जाएगा,
जिसे
वह
अपना
समझता
है॥
19
उस
की
माता
और
भाई
उसके
पास
आए,
पर
भीड़
के
कारण
उस
से
भेंट
न
कर
सके।
20
और
उस
से
कहा
गया,
कि
तेरी
माता
और
तेरे
भाई
बाहर
खड़े
हुए
तुझ
से
मिलना
चाहते
हैं।
21
उस
ने
उसके
उत्तर
में
उन
से
कहा
कि
मेरी
माता
और
मेरे
भाई
ये
ही
हैं,
जो
परमेश्वर
का
वचन
सुनते
और
मानते
हैं॥
22
फिर
एक
दिन
वह
और
उसके
चेले
नाव
पर
चढ़े,
और
उस
ने
उन
से
कहा;
कि
आओ,
झील
के
पार
चलें:
सो
उन्होंने
नाव
खोल
दी।
23
पर
जब
नाव
चल
रही
थी,
तो
वह
सो
गया:
और
झील
पर
आन्धी
आई,
और
नाव
पानी
से
भरने
लगी
और
वे
जोखिम
में
थे।
24
तब
उन्होंने
पास
आकर
उसे
जगाया,
और
कहा;
हे
स्वामी!
स्वामी!
हम
नाश
हुए
जाते
हैं:
तब
उस
ने
उठकर
आन्धी
को
और
पानी
की
लहरों
को
डांटा
और
वे
थम
गए,
और
चैन
हो
गया।
25
और
उस
ने
उन
से
कहा;
तुम्हारा
विश्वास
कहां
था?
पर
वे
डर
गए,
और
अचम्भित
होकर
आपस
में
कहने
लगे,
यह
कौन
है
जो
आन्धी
और
पानी
को
भी
आज्ञा
देता
है,
और
वे
उस
की
मानते
हैं॥
26
फिर
वे
गिरासेनियों
के
देश
में
पहुंचे,
जो
उस
पार
गलील
के
साम्हने
है।
27
जब
वह
किनारे
पर
उतरा,
तो
उस
नगर
का
एक
मनुष्य
उसे
मिला,
जिस
में
दुष्टात्माएं
थीं
और
बहुत
दिनों
से
न
कपड़े
पहिनता
था
और
न
घर
में
रहता
था
वरन
कब्रों
में
रहा
करता
था।
28
वह
यीशु
को
देखकर
चिल्लाया,
और
उसके
साम्हने
गिरकर
ऊंचे
शब्द
से
कहा;
हे
परम
प्रधान
परमेश्वर
के
पुत्र
यीशु,
मुझे
तुझ
से
क्या
काम!
मैं
तेरी
बिनती
करता
हूं,
मुझे
पीड़ा
न
दे!
29
क्योंकि
वह
उस
अशुद्ध
आत्मा
को
उस
मनुष्य
में
से
निकलने
की
आज्ञा
दे
रहा
था,
इसलिये
कि
वह
उस
पर
बार
बार
प्रबल
होती
थी;
और
यद्यपि
लोग
उसे
सांकलों
और
बेडिय़ों
से
बांधते
थे,
तौभी
वह
बन्धनों
को
तोड़
डालता
था,
और
दुष्टात्मा
उसे
जंगल
में
भगाये
फिरती
थी।
30
यीशु
ने
उस
से
पूछा;
तेरा
क्या
नाम
है?
उसने
कहा,
सेना;
क्योंकि
बहुत
दुष्टात्माएं
उसमें
पैठ
गईं
थीं।
31
और
उन्होंने
उस
से
बिनती
की,
कि
हमें
अथाह
गड़हे
में
जाने
की
आज्ञा
न
दे।
32
वहां
पहाड़
पर
सूअरों
का
एक
बड़ा
झुण्ड
चर
रहा
था,
सो
उन्होंने
उस
से
बिनती
की,
कि
हमें
उन
में
पैठने
दे,
सो
उस
ने
उन्हें
जाने
दिया।
33
तब
दुष्टात्माएं
उस
मनुष्य
से
निकल
कर
सूअरों
में
गईं
और
वह
झुण्ड
कड़ाडे
पर
से
झपटकर
झील
में
जा
गिरा
और
डूब
मरा।
34
चरवाहे
यह
जो
हुआ
था
देखकर
भागे,
और
नगर
में,
और
गांवों
में
जाकर
उसका
समाचार
कहा।
35
और
लोग
यह
जो
हुआ
था
उसके
देखने
को
निकले,
और
यीशु
के
पास
आकर
जिस
मनुष्य
से
दुष्टात्माएं
निकली
थीं,
उसे
यीशु
के
पांवों
के
पास
कपड़े
पहिने
और
सचेत
बैठे
हुए
पाकर
डर
गए।
36
और
देखने
वालों
ने
उन
को
बताया,
कि
वह
दुष्टात्मा
का
सताया
हुआ
मनुष्य
किस
प्रकार
अच्छा
हुआ।
37
तब
गिरासेनियों
के
आस
पास
के
सब
लोगों
ने
यीशु
से
बिनती
की,
कि
हमारे
यहां
से
चला
जा;
क्योंकि
उन
पर
बड़ा
भय
छा
गया
था:
सो
वह
नाव
पर
चढ़कर
लौट
गया।
38
जिस
मनुष्य
से
दुष्टात्माऐं
निकली
थीं
वह
उस
से
बिनती
करने
लगा,
कि
मुझे
अपने
साथ
रहने
दे,
परन्तु
यीशु
ने
उसे
विदा
करके
कहा।
39
अपने
घर
को
लौट
जा
और
लोगों
से
कह
दे,
कि
परमेश्वर
ने
तेरे
लिये
कैसे
बड़े
काम
किए
हैं:
वह
जाकर
सारे
नगर
में
प्रचार
करने
लगा,
कि
यीशु
ने
मेरे
लिये
कैसे
बड़े
काम
किए॥
40
जब
यीशु
लौट
रहा
था,
तो
लोग
उस
से
आनन्द
के
साथ
मिले;
क्योंकि
वे
सब
उस
की
बाट
जोह
रहे
थे।
41
और
देखो,
याईर
नाम
एक
मनुष्य
जो
आराधनालय
का
सरदार
था,
आया,
और
यीशु
के
पांवों
पर
गिर
के
उस
से
बिनती
करने
लगा,
कि
मेरे
घर
चल।
42
क्योंकि
उसके
बारह
वर्ष
की
एकलौती
बेटी
थी,
और
वह
मरने
पर
थी:
जब
वह
जा
रहा
था,
तब
लोग
उस
पर
गिरे
पड़ते
थे॥
43
और
एक
स्त्री
ने
जिस
को
बारह
वर्ष
से
लोहू
बहने
का
रोग
था,
और
जो
अपनी
सारी
जिविका
वैद्यों
के
पीछे
व्यय
कर
चुकी
थी
और
तौभी
किसी
के
हाथ
से
चंगी
न
हो
सकी
थी।
44
पीछे
से
आकर
उसके
वस्त्र
के
आंचल
को
छूआ,
और
तुरन्त
उसका
लोहू
बहना
थम
गया।
45
इस
पर
यीशु
ने
कहा,
मुझे
किस
ने
छूआ
जब
सब
मुकरने
लगे,
तो
पतरस
और
उसके
साथियों
ने
कहा;
हे
स्वामी,
तुझे
तो
भीड़
दबा
रही
है
और
तुझ
पर
गिरी
पड़ती
है।
46
परन्तु
यीशु
ने
कहा:
किसी
ने
मुझे
छूआ
है
क्योंकि
मैं
ने
जान
लिया
है
कि
मुझ
में
से
सामर्थ
निकली
है।
47
जब
स्त्री
ने
देखा,
कि
मैं
छिप
नहीं
सकती,
तब
कांपती
हुई
आई,
और
उसके
पांवों
पर
गिरकर
सब
लोगों
के
साम्हने
बताया,
कि
मैं
ने
किस
कारण
से
तुझे
छूआ,
और
क्योंकर
तुरन्त
चंगी
हो
गई।
48
उस
ने
उस
से
कहा,
बेटी
तेरे
विश्वास
ने
तुझे
चंगा
किया
है,
कुशल
से
चली
जा।
49
वह
यह
कह
ही
रहा
था,
कि
किसी
ने
आराधनालय
के
सरदार
के
यहां
से
आकर
कहा,
तेरी
बेटी
मर
गई:
गुरु
को
दु:ख
न
दे।
50
यीशु
ने
सुनकर
उसे
उत्तर
दिया,
मत
डर;
केवल
विश्वास
रख;
तो
वह
बच
जाएगी।
51
घर
में
आकर
उस
ने
पतरस
और
यूहन्ना
और
याकूब
और
लड़की
के
माता-पिता
को
छोड़
और
किसी
को
अपने
साथ
भीतर
आने
न
दिया।
52
और
सब
उसके
लिये
रो
पीट
रहे
थे,
परन्तु
उस
ने
कहा;
रोओ
मत;
वह
मरी
नहीं
परन्तु
सो
रही
है।
53
वे
यह
जानकर,
कि
मर
गई
है,
उस
की
हंसी
करने
लगे।
54
परन्तु
उस
ने
उसका
हाथ
पकड़ा,
और
पुकारकर
कहा,
हे
लड़की
उठ!
55
तब
उसके
प्राण
फिर
आए
और
वह
तुरन्त
उठी;
फिर
उस
ने
आज्ञा
दी,
कि
उसे
कुछ
खाने
को
दिया
जाए।
56
उसके
माता-पिता
चकित
हुए,
परन्तु
उस
ने
उन्हें
चिताया,
कि
यह
जो
हुआ
है,
किसी
से
न
कहना॥
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