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रोमियो 14:1
उत्पत्ति
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1 शमूएल
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रोमियो 14:1 (12 36 am)
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रोमियो 14:1
1
जो
विश्वास
में
निर्बल
है,
उसे
अपनी
संगति
में
ले
लो;
परन्तु
उसी
शंकाओं
पर
विवाद
करने
के
लिये
नहीं।
2
क्योंकि
एक
को
विश्वास
है,
कि
सब
कुछ
खाना
उचित
है,
परन्तु
जो
विश्वास
में
निर्बल
है,
वह
साग
पात
ही
खाता
है।
3
और
खानेवाला
न-खाने
वाले
को
तुच्छ
न
जाने,
और
न-खानेवाला
खाने
वाले
पर
दोष
न
लगाए;
क्योंकि
परमेश्वर
ने
उसे
ग्रहण
किया
है।
4
तू
कौन
है
जो
दूसरे
के
सेवक
पर
दोष
लगाता
है?
उसका
स्थिर
रहना
या
गिर
जाना
उसके
स्वामी
ही
से
सम्बन्ध
रखता
है,
वरन
वह
स्थिर
ही
कर
दिया
जाएगा;
क्योंकि
प्रभु
उसे
स्थिर
रख
सकता
है।
5
कोई
तो
एक
दिन
को
दूसरे
से
बढ़कर
जानता
है,
और
कोई
सब
दिन
एक
सा
जानता
है:
हर
एक
अपने
ही
मन
में
निश्चय
कर
ले।
6
जो
किसी
दिन
को
मानता
है,
वह
प्रभु
के
लिये
मानता
है:
जो
खाता
है,
वह
प्रभु
के
लिये
खाता
है,
क्योंकि
वह
परमेश्वर
का
धन्यवाद
करता
है,
और
जा
नहीं
खाता,
वह
प्रभु
के
लिये
नहीं
खाता
और
परमेश्वर
का
धन्यवाद
करता
है।
7
क्योंकि
हम
में
से
न
तो
कोई
अपने
लिये
जीता
है,
और
न
कोई
अपने
लिये
मरता
है।
8
क्योंकि
यदि
हम
जीवित
हैं,
तो
प्रभु
के
लिये
जीवित
हैं;
और
यदि
मरते
हैं,
तो
प्रभु
के
लिये
मरते
हैं;
सो
हम
जीएं
या
मरें,
हम
प्रभु
ही
के
हैं।
9
क्योंकि
मसीह
इसी
लिये
मरा
और
जी
भी
उठा
कि
वह
मरे
हुओं
और
जीवतों,
दोनों
का
प्रभु
हो।
10
तू
अपने
भाई
पर
क्यों
दोष
लगाता
है?
या
तू
फिर
क्यों
अपने
भाई
को
तुच्छ
जानता
है?
हम
सब
के
सब
परमेश्वर
के
न्याय
सिंहासन
के
साम्हने
खड़े
होंगे।
11
क्योंकि
लिखा
है,
कि
प्रभु
कहता
है,
मेरे
जीवन
की
सौगन्ध
कि
हर
एक
घुटना
मेरे
साम्हने
टिकेगा,
और
हर
एक
जीभ
परमेश्वर
को
अंगीकार
करेगी।
12
सो
हम
में
से
हर
एक
परमेश्वर
को
अपना
अपना
लेखा
देगा॥
13
सो
आगे
को
हम
एक
दूसरे
पर
दोष
न
लगाएं
पर
तुम
यही
ठान
लो
कि
कोई
अपने
भाई
के
साम्हने
ठेस
या
ठोकर
खाने
का
कारण
न
रखे।
14
मैं
जानता
हूं,
और
प्रभु
यीशु
से
मुझे
निश्चय
हुआ
है,
कि
कोई
वस्तु
अपने
आप
से
अशुद्ध
नहीं,
परन्तु
जो
उस
को
अशुद्ध
समझता
है,
उसके
लिये
अशुद्ध
है।
15
यदि
तेरा
भाई
तेरे
भोजन
के
कारण
उदास
होता
है,
तो
फिर
तू
प्रेम
की
रीति
से
नहीं
चलता:
जिस
के
लिये
मसीह
मरा
उस
को
तू
अपने
भोजन
के
द्वारा
नाश
न
कर।
16
अब
तुम्हारी
भलाई
की
निन्दा
न
होने
पाए।
17
क्योंकि
परमेश्वर
का
राज्य
खाना
पीना
नहीं;
परन्तु
धर्म
और
मिलाप
और
वह
आनन्द
है;
18
जो
पवित्र
आत्मा
से
होता
है
और
जो
कोई
इस
रीति
से
मसीह
की
सेवा
करता
है,
वह
परमेश्वर
को
भाता
है
और
मनुष्यों
में
ग्रहण
योग्य
ठहरता
है।
19
इसलिये
हम
उन
बातों
का
प्रयत्न
करें
जिनसे
मेल
मिलाप
और
एक
दूसरे
का
सुधार
हो।
20
भोजन
के
लिये
परमेश्वर
का
काम
न
बिगाड़:
सब
कुछ
शुद्ध
तो
है,
परन्तु
उस
मनुष्य
के
लिये
बुरा
है,
जिस
को
उस
के
भोजन
करने
से
ठोकर
लगती
है।
21
भला
तो
यह
है,
कि
तू
न
मांस
खाए,
और
न
दाख
रस
पीए,
न
और
कुछ
ऐसा
करे,
जिस
से
तेरा
भाई
ठोकर
खाए।
22
तेरा
जो
विश्वास
हो,
उसे
परमेश्वर
के
साम्हने
अपने
ही
मन
में
रख:
धन्य
है
वह,
जो
उस
बात
में,
जिस
वह
ठीक
समझता
है,
अपने
आप
को
दोषी
नहीं
ठहराता।
23
परन्तु
जो
सन्देह
कर
के
खाता
है,
वह
दण्ड
के
योग्य
ठहर
चुका,
क्योंकि
वह
निश्चय
धारणा
से
नहीं
खाता,
और
जो
कुछ
विश्वास
से
नहीं,
वह
पाप
है॥
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