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1 थिस्सलुनीकियों
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तीतुस
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इब्रानियों 11
1
अब
विश्वास
आशा
की
हुई
वस्तुओं
का
निश्चय,
और
अनदेखी
वस्तुओं
का
प्रमाण
है।
2
क्योंकि
इसी
के
विषय
में
प्राचीनों
की
अच्छी
गवाही
दी
गई।
3
विश्वास
ही
से
हम
जान
जाते
हैं,
कि
सारी
सृष्टि
की
रचना
परमेश्वर
के
वचन
के
द्वारा
हुई
है।
यह
नहीं,
कि
जो
कुछ
देखने
में
आता
है,
वह
देखी
हुई
वस्तुओं
से
बना
हो।
4
विश्वास
की
से
हाबिल
ने
कैन
से
उत्तम
बलिदान
परमेश्वर
के
लिये
चढ़ाया;
और
उसी
के
द्वारा
उसके
धर्मी
होने
की
गवाही
भी
दी
गई:
क्योंकि
परमेश्वर
ने
उस
की
भेंटों
के
विषय
में
गवाही
दी;
और
उसी
के
द्वारा
वह
मरने
पर
भी
अब
तक
बातें
करता
है।
5
विश्वास
ही
से
हनोक
उठा
लिया
गया,
कि
मृत्यु
को
न
देखे,
और
उसका
पता
नहीं
मिला;
क्योंकि
परमेश्वर
ने
उसे
उठा
लिया
था,
और
उसके
उठाए
जाने
से
पहिले
उस
की
यह
गवाही
दी
गई
थी,
कि
उस
ने
परमेश्वर
को
प्रसन्न
किया
है।
6
और
विश्वास
बिना
उसे
प्रसन्न
करना
अनहोना
है,
क्योंकि
परमेश्वर
के
पास
आने
वाले
को
विश्वास
करना
चाहिए,
कि
वह
है;
और
अपने
खोजने
वालों
को
प्रतिफल
देता
है।
7
विश्वास
ही
से
नूह
ने
उन
बातों
के
विषय
में
जो
उस
समय
दिखाई
न
पड़ती
थीं,
चितौनी
पाकर
भक्ति
के
साथ
अपने
घराने
के
बचाव
के
लिये
जहाज
बनाया,
और
उसके
द्वारा
उस
ने
संसार
को
दोषी
ठहराया;
और
उस
धर्म
का
वारिस
हुआ,
जो
विश्वास
से
होता
है।
8
विश्वास
ही
से
इब्राहीम
जब
बुलाया
गया
तो
आज्ञा
मानकर
ऐसी
जगह
निकल
गया
जिसे
मीरास
में
लेने
वाला
था,
और
यह
न
जानता
था,
कि
मैं
किधर
जाता
हूं;
तौभी
निकल
गया।
9
विश्वास
ही
से
उस
ने
प्रतिज्ञा
किए
हुए
देश
में
जैसे
पराए
देश
में
परदेशी
रह
कर
इसहाक
और
याकूब
समेत
जो
उसके
साथ
उसी
प्रतिज्ञा
के
वारिस
थे,
तम्बूओं
में
वास
किया।
10
क्योंकि
वह
उस
स्थिर
नेव
वाले
नगर
की
बाट
जोहता
था,
जिस
का
रचने
वाला
और
बनाने
वाला
परमेश्वर
है।
11
विश्वास
से
सारा
ने
आप
बूढ़ी
होने
पर
भी
गर्भ
धारण
करने
की
सामर्थ
पाई;
क्योंकि
उस
ने
प्रतिज्ञा
करने
वाले
को
सच्चा
जाना
था।
12
इस
कारण
एक
ही
जन
से
जो
मरा
हुआ
सा
था,
आकाश
के
तारों
और
समुद्र
के
तीर
के
बालू
की
नाईं,
अनगिनित
वंश
उत्पन्न
हुआ॥
13
ये
सब
विश्वास
ही
की
दशा
में
मरे;
और
उन्होंने
प्रतिज्ञा
की
हुई
वस्तुएं
नहीं
पाईं;
पर
उन्हें
दूर
से
देखकर
आनन्दित
हुए
और
मान
लिया,
कि
हम
पृथ्वी
पर
परदेशी
और
बाहरी
हैं।
14
जो
ऐसी
ऐसी
बातें
कहते
हैं,
वे
प्रगट
करते
हैं,
कि
स्वदेश
की
खोज
में
हैं।
15
और
जिस
देश
से
वे
निकल
आए
थे,
यदि
उस
की
सुधि
करते
तो
उन्हें
लौट
जाने
का
अवसर
था।
16
पर
वे
एक
उत्तम
अर्थात
स्वर्गीय
देश
के
अभिलाषी
हैं,
इसी
लिये
परमेश्वर
उन
का
परमेश्वर
कहलाने
में
उन
से
नहीं
लजाता,
सो
उस
ने
उन
के
लिये
एक
नगर
तैयार
किया
है॥
17
विश्वास
ही
से
इब्राहीम
ने,
परखे
जाने
के
समय
में,
इसहाक
को
बलिदान
चढ़ाया,
और
जिस
ने
प्रतिज्ञाओं
को
सच
माना
था।
18
और
जिस
से
यह
कहा
गया
था,
कि
इसहाक
से
तेरा
वंश
कहलाएगा;
वह
अपने
एकलौते
को
चढ़ाने
लगा।
19
क्योंकि
उस
ने
विचार
किया,
कि
परमेश्वर
सामर्थी
है,
कि
मरे
हुओं
में
से
जिलाए,
सो
उन्हीं
में
से
दृष्टान्त
की
रीति
पर
वह
उसे
फिर
मिला।
20
विश्वास
ही
से
इसहाक
ने
याकूब
और
ऐसाव
को
आने
वाली
बातों
के
विषय
में
आशीष
दी।
21
विश्वास
ही
से
याकूब
ने
मरते
समय
यूसुफ
के
दोनों
पुत्रों
में
से
एक
एक
को
आशीष
दी,
और
अपनी
लाठी
के
सिरे
पर
सहारा
लेकर
दण्डवत
किया।
22
विश्वास
ही
से
यूसुफ
ने,
जब
वह
मरने
पर
था,
तो
इस्त्राएल
की
सन्तान
के
निकल
जाने
की
चर्चा
की,
और
अपनी
हड्डियों
के
विषय
में
आज्ञा
दी।
23
विश्वास
ही
से
मूसा
के
माता
पिता
ने
उस
को,
उत्पन्न
होने
के
बाद
तीन
महीने
तक
छिपा
रखा;
क्योंकि
उन्होंने
देखा,
कि
बालक
सुन्दर
है,
और
वे
राजा
की
आज्ञा
से
न
डरे।
24
विश्वास
ही
से
मूसा
ने
सयाना
होकर
फिरौन
की
बेटी
का
पुत्र
कहलाने
से
इन्कार
किया।
25
इसलिये
कि
उसे
पाप
में
थोड़े
दिन
के
सुख
भोगने
से
परमेश्वर
के
लोगों
के
साथ
दुख
भोगना
और
उत्तम
लगा।
26
और
मसीह
के
कारण
निन्दित
होने
को
मिसर
के
भण्डार
से
बड़ा
धन
समझा:
क्योंकि
उस
की
आंखे
फल
पाने
की
ओर
लगी
थीं।
27
विश्वास
ही
से
राजा
के
क्रोध
से
न
डर
कर
उस
ने
मिसर
को
छोड़
दिया,
क्योंकि
वह
अनदेखे
को
मानों
देखता
हुआ
दृढ़
रहा।
28
विश्वास
ही
से
उस
ने
फसह
और
लोहू
छिड़कने
की
विधि
मानी,
कि
पहिलौठों
का
नाश
करने
वाला
इस्त्राएलियों
पर
हाथ
न
डाले।
29
विश्वास
ही
से
वे
लाल
समुद्र
के
पार
ऐसे
उतर
गए,
जैसे
सूखी
भूमि
पर
से;
और
जब
मिस्रियों
ने
वैसा
ही
करना
चाहा,
तो
सब
डूब
मरे।
30
विश्वास
ही
से
यरीहो
की
शहरपनाह,
जब
सात
दिन
तक
उसका
चक्कर
लगा
चुके
तो
वह
गिर
पड़ी।
31
विश्वास
ही
से
राहाब
वेश्या
आज्ञा
ने
मानने
वालों
के
साथ
नाश
नहीं
हुई;
इसलिये
कि
उस
ने
भेदियों
को
कुशल
से
रखा
था।
32
अब
और
क्या
कहूँ
क्योंकि
समय
नहीं
रहा,
कि
गिदोन
का,
और
बाराक
और
समसून
का,
और
यिफतह
का,
और
दाऊद
का
और
शामुएल
का,
और
भविष्यद्वक्ताओं
का
वर्णन
करूं।
33
इन्होंने
विश्वास
ही
के
द्वारा
राज्य
जीते;
धर्म
के
काम
किए;
प्रतिज्ञा
की
हुई
वस्तुएं
प्राप्त
की,
सिंहों
के
मुंह
बन्द
किए।
34
आग
की
ज्वाला
को
ठंडा
किया;
तलवार
की
धार
से
बच
निकले,
निर्बलता
में
बलवन्त
हुए;
लड़ाई
में
वीर
निकले;
विदेशियों
की
फौजों
को
मार
भगाया।
35
स्त्रियों
ने
अपने
मरे
हुओं
को
फिर
जीवते
पाया;
कितने
तो
मार
खाते
खाते
मर
गए;
और
छुटकारा
न
चाहा;
इसलिये
कि
उत्तम
पुनरुत्थान
के
भागी
हों।
36
कई
एक
ठट्ठों
में
उड़ाए
जाने;
और
कोड़े
खाने;
वरन
बान्धे
जाने;
और
कैद
में
पड़ने
के
द्वारा
परखे
गए।
37
पत्थरवाह
किए
गए;
आरे
से
चीरे
गए;
उन
की
परीक्षा
की
गई;
तलवार
से
मारे
गए;
वे
कंगाली
में
और
क्लेश
में
और
दुख
भोगते
हुए
भेड़ों
और
बकिरयों
की
खालें
ओढ़े
हुए,
इधर
उधर
मारे
मारे
फिरे।
38
और
जंगलों,
और
पहाड़ों,
और
गुफाओं
में,
और
पृथ्वी
की
दरारों
में
भटकते
फिरे।
39
संसार
उन
के
योगय
न
था:
और
विश्वास
ही
के
द्वारा
इन
सब
के
विषय
में
अच्छी
गवाही
दी
गई,
तौभी
उन्हें
प्रतिज्ञा
की
हुई
वस्तु
न
मिली।
40
क्योंकि
परमेश्वर
ने
हमारे
लिये
पहिले
से
एक
उत्तम
बात
ठहराई,
कि
वे
हमारे
बिना
सिद्धता
को
न
पहुंचे॥
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