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नहूम
हबक्कूक
सपन्याह
हाग्गै
जकर्याह
मलाकी
नई टैस्टमैंट
मत्ती
मरकुस
लूका
यूहन्ना
प्रेरितों के काम
रोमियो
1 कुरिन्थियों
2 कुरिन्थियों
गलातियों
इफिसियों
फिलिप्पियों
कुलुस्सियों
1 थिस्सलुनीकियों
2 थिस्सलुनीकियों
1 तीमुथियुस
2 तीमुथियुस
तीतुस
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अधिक
नीतिवचन 27:1
उत्पत्ति
निर्गमन
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गिनती
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यहोशू
न्यायियों
रूत
1 शमूएल
2 शमूएल
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योना
मीका
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हबक्कूक
सपन्याह
हाग्गै
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मलाकी
मत्ती
मरकुस
लूका
यूहन्ना
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रोमियो
1 कुरिन्थियों
2 कुरिन्थियों
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1 थिस्सलुनीकियों
2 थिस्सलुनीकियों
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नीतिवचन 27:1 (12 12 pm)
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नीतिवचन 27:1
1
कल
के
दिन
के
विषय
में
मत
फूल,
क्योंकि
तू
नहीं
जानता
कि
दिन
भर
में
क्या
होगा।
2
तेरी
प्रशंसा
और
लोग
करें
तो
करें,
परन्तु
तू
आप
न
करना;
दूसरा
तूझे
सराहे
तो
सराहे,
परन्तु
तू
अपनी
सराहना
न
करना।
3
पत्थर
तो
भारी
है
और
बालू
में
बोझ
है,
परन्तु
मूढ
का
क्रोध
उन
दोनों
से
भी
भारी
है।
4
क्रोध
तो
क्रूर,
और
प्रकोप
धारा
के
समान
होता
है,
परन्तु
जब
कोई
जल
उठता
है,
तब
कौन
ठहर
सकता
है?
5
खुली
हुई
डांट
गुप्त
प्रेम
से
उत्तम
है।
6
जो
घाव
मित्र
के
हाथ
से
लगें
वह
विश्वासयोग्य
है
परन्तु
बैरी
अधिक
चुम्बन
करता
है।
7
सन्तुष्ट
होने
पर
मधु
का
छत्ता
भी
फीका
लगता
है,
परन्तु
भूखे
को
सब
कड़वी
वस्तुएं
भी
मीठी
जान
पड़ती
हैं।
8
स्थान
छोड़
कर
घूमने
वाला
मनुष्य
उस
चिडिय़ा
के
समान
है,
जो
घोंसला
छोड़
कर
उड़ती
फिरती
है।
9
जैसे
तेल
और
सुगन्ध
से,
वैसे
ही
मित्र
के
हृदय
की
मनोहर
सम्मति
से
मन
आनन्दित
होता
है।
10
जो
तेरा
और
तेरे
पिता
का
भी
मित्र
हो
उसे
न
छोड़ना;
और
अपनी
विपत्ति
के
दिन
अपने
भाई
के
घर
न
जाना।
प्रेम
करने
वाला
पड़ोसी,
दूर
रहने
वाले
भाई
से
कहीं
उत्तम
है।
11
हे
मेरे
पुत्र,
बुद्धिमान
हो
कर
मेरा
मन
आनन्दित
कर,
तब
मैं
अपने
निन्दा
करने
वाले
को
उत्तर
दे
सकूंगा।
12
बुद्धिमान
मनुष्य
विपत्ति
को
आती
देख
कर
छिप
जाता
है;
परन्तु
भोले
लोग
आगे
बढ़े
चले
जाते
और
हानि
उठाते
हैं।
13
जो
पराए
का
उत्तरदायी
हो
उसका
कपड़ा,
और
जो
अनजान
का
उत्तरदायी
हो
उस
से
बन्धक
की
वस्तु
ले
ले।
14
जो
भोर
को
उठ
कर
अपने
पड़ोसी
को
ऊंचे
शब्द
से
आशीर्वाद
देता
है,
उसके
लिये
यह
शाप
गिना
जाता
है।
15
झड़ी
के
दिन
पानी
का
लगातार
टपकना,
और
झगडालू
पत्नी
दोनों
एक
से
हैं;
16
जो
उस
को
रोक
रखे,
वह
वायु
को
भी
रोक
रखेगा
और
दाहिने
हाथ
से
वह
तेल
पकड़ेगा।
17
जैसे
लोहा
लोहे
को
चमका
देता
है,
वैसे
ही
मनुष्य
का
मुख
अपने
मित्र
की
संगति
से
चमकदार
हो
जाता
है।
18
जो
अंजीर
के
पेड़
की
रक्षा
करता
है
वह
उसका
फल
खाता
है,
इसी
रीति
से
जो
अपने
स्वामी
की
सेवा
करता
उसकी
महिमा
होती
है।
19
जैसे
जल
में
मुख
की
परछाई
सुख
से
मिलती
है,
वैसे
ही
एक
मनुष्य
का
मन
दूसरे
मनुष्य
के
मन
से
मिलता
है।
20
जैसे
अधोलोक
और
विनाशलोक,
वैसे
ही
मनुष्य
की
आंखें
भी
तृप्त
नहीं
होती।
21
जैसे
चान्दी
के
लिये
कुठाई
और
सोने
के
लिये
भट्ठी
हैं,
वैसे
ही
मनुष्य
के
लिये
उसकी
प्रशंसा
है।
22
चाहे
तू
मूर्ख
को
अनाज
के
बीच
ओखली
में
डाल
कर
मूसल
से
कूटे,
तौभी
उसकी
मूर्खता
नहीं
जाने
की।
23
अपनी
भेड़-बकरियों
की
दशा
भली-भांति
मन
लगा
कर
जान
ले,
और
अपने
सब
पशुओं
के
झुण्डों
की
देखभाल
उचित
रीति
से
कर;
24
क्योंकि
सम्पत्ति
सदा
नहीं
ठहरती;
और
क्या
राजमुकुट
पीढ़ी-पीढ़ी
चला
जाता
है?
25
कटी
हुई
घास
उठ
गई,
नई
घास
दिखाई
देती
हैं,
पहाड़ों
की
हरियाली
काट
कर
इकट्ठी
की
गई
है;
26
भेड़ों
के
बच्चे
तेरे
वस्त्र
के
लिये
हैं,
और
बकरों
के
द्वारा
खेत
का
मूल्य
दिया
जाएगा;
27
और
बकरियों
का
इतना
दूध
होगा
कि
तू
अपने
घराने
समेत
पेट
भर
के
पिया
करेगा,
और
तेरी
लौण्डियों
का
भी
जीवन
निर्वाह
होता
रहेगा॥
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